नासा ने नए बैक्टीरिया को दिया कलाम का नाम

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम को अनोखी श्रद्धांजलि..

By Gunateet OjhaEdited By: Publish:Sun, 21 May 2017 09:48 PM (IST) Updated:Sun, 21 May 2017 09:48 PM (IST)
नासा ने नए बैक्टीरिया को दिया कलाम का नाम
नासा ने नए बैक्टीरिया को दिया कलाम का नाम

लॉस एंजिलिस, प्रेट्र। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने नए खोजे गए बैक्टीरिया को 'सोलीबैकिलस कलामी' का नाम देकर भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम को अनोखी श्रद्धाजंलि दी है। अब तक यह नया सूक्ष्म जीव सोलीबैकिलस इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में ही पाया जाता था। यह पृथ्वी पर नहीं था। नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी ने अंतरग्रही यात्रा पर काम करते हुए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के फिल्टरों में इस नए बैक्टीरिया को खोजा। यह बैक्टीरिया ऐसे फिल्टर पर पाया गया, जो स्पेस स्टेशन में 40 महीने तक रहा। यह फिल्टर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की स्वच्छता प्रणाली का हिस्सा है। इस फिल्टर का जेपीएल (जेट प्रोपल्शन लैब) में विश्लेषण किया गया। इस खोज को लैब के वरिष्ठ अनुसंधान वैज्ञानिक डॉ. कस्तूरी वेंकटस्वर्ण ने इसी साल इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सिस्टमेटिक एंड एवोल्यूशनरी माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित किया है।

जीवाणुओं का घर होता स्पेस स्टेशन: पृथ्वी के कक्ष से 400 किमी ऊपर होने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर कई प्रकार के बैक्टीरिया व फफूंद पाए जाते हैं। स्टेशन पर अंतरिक्षयात्रियों के साथ ही इनका अस्तित्व बना रहता है। डॉ. कस्तूरी वेंकटस्वर्ण मानते हैं कि हालांकि सोलीबैकिलस कलामी अब तक पृथ्वी पर नहीं पाया गया है लेकिन ऐसा नहीं है कि इसका पृथ्वी से अलग कोई जीवन है। वह निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि यह जीव किसी कार्गो के साथ स्पेस स्टेशन पहुंचा होगा और वहां की प्रतिकूल परिस्थिति में भी अपने को ढालने में सफल रहा होगा। नासा में डा. वेंकटस्वर्ण के पास यह अहम दायित्व है कि दूसरे ग्रहों पर जाने वाले अंतरिक्षयान बैक्टीरिया सूक्ष्म जीवों से मुक्त रहें।

कहां होते हैं बैक्टीरिया: बैक्टीरिया पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल धाराओं में, नाभिकीय पदार्थो में, जल में, यहां तक कि कार्बनिक पदार्थो, पौधों तथा जंतुओं के शरीर में पाए जाते हैं।

क्यों दिया कलाम का नाम: केरल के थुंबा से 21 नवंबर 1963 की शाम भारत ने पहले रॉकेट 'नाइक अपाचे' का प्रक्षेपण किया। इस रॉकेट को अमेरिका ने दिया था। इस प्रक्षेपण के साथ भारतीय रॉकेट विज्ञान का उद्भव हुआ। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक डा. विक्रम साराभाई ने 1963 में ही डा. एपीजे अब्दुल कलाम को छह महीने के विशेष प्रशिक्षण पर नासा भेजा था। कलाम के सामने रॉकेट का निर्माण हुआ था। डा. वेंकटस्वर्ण ने कहा कि वह भी डा. कलाम की तरह तमिल हैं। उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान में डा. कलाम के महती योगदान का पता है। प्राय: नये खोजे गए बैक्टीरिया को किसी महान वैज्ञानिक का नाम मिलता आया है।

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