यूपी चमका तो मिटेगा अज्ञान का अंधकार

देश-दुनिया में अपनी मेधा का लोहा मनवाते रहे उत्तर प्रदेश की यह उलटबासी नहीं तो और क्या है कि उसकी सबसे कमजोर नब्ज शिक्षा ही है। देश की 74 फीसदी साक्षरता दर के मुकाबले 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में प्रति 100 व्यक्तियों में 70 लोग ही साक्षर हैं। कुल मिलाकर देश के 27 करोड़ अनपढ़ों में इस उत्तर प्रदेश से ही स

By Edited By: Publish:Fri, 28 Sep 2012 12:25 PM (IST) Updated:Fri, 28 Sep 2012 12:52 PM (IST)
यूपी चमका तो मिटेगा अज्ञान का अंधकार

नई दिल्ली। देश-दुनिया में अपनी मेधा का लोहा मनवाते रहे उत्तर प्रदेश की यह उलटबासी नहीं तो और क्या है कि उसकी सबसे कमजोर नब्ज शिक्षा ही है।

देश की 74 फीसदी साक्षरता दर के मुकाबले 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में प्रति 100 व्यक्तियों में 70 लोग ही साक्षर हैं। कुल मिलाकर देश के 27 करोड़ अनपढ़ों में इस उत्तर प्रदेश से ही सवा पाच करोड़ निरक्षर आते हैं। यह शर्मनाक आंकड़ा मायूस करने वाला है, लेकिन दूसरा पहलू यह है कि थोड़े से प्रयास उत्तर प्रदेश न सिर्फ अपना, बल्कि पूरे देश की साक्षरता की तस्वीर बदल सकता है।

यह कोरी उम्मीद नहीं, तथ्य है। थोड़े से प्रयासों के जो नतीजे आए हैं,उससे उत्तर प्रदेश के भी हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिलने की उम्मीदें जवान हुई हैं। शिक्षा की तरफ लोगों की जागरूकता बढ़ी है। अब जिम्मेदारी सरकार व समाज के दूसरे सबल व सक्षम तबकों की है। चुनौती बड़ी है, लेकिन वास्तव में उम्मीद की किरण इस तथ्य से पैदा होती है कि दाखिले के बाद अब 80 फीसदी बच्चे स्कूल में टिकने लगे हैं। वरना पहले स्थिति बहुत ज्यादा खराब थी।

हालांकि, इस मामले में गौतमबुद्धनगर, रायबरेली, सुलतानपुर समेत 30 जिलों में स्थिति अब भी बदतर है। प्रदेश सरकार का ध्यान इस तरफ गया है तो नतीजे बदलने की उम्मीद की जानी चाहिए। बीच में पढ़ाई छोड़ने की स्थिति में सुधार भी बेहतरी की तरफ इशारा कर रहा है। प्राइमरी में अभी 11.06 प्रतिशत बच्चे बीच में पढ़ाई छोड़ रहे हैं। जबकि, पहले 16.71 प्रतिशत बच्चे दाखिला तो लेते थे, लेकिन मंजिल तक नहीं पहुंचते थे। इधर, तीन लाख से अधिक अतिरिक्त क्लासरूम बनाए जा चुकें हैं। इस साल 15 हजार से अधिक और बनेंगे। साथ ही प्रदेश सरकार ने शहरों में स्कूलों से वंचित बच्चों की पहचान के लिए लखनऊ, कानपुर, आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी में सर्वे कराने का भी फैसला भी किया है।

हालाकि, चुनौती अभी बहुत बड़ी है। बीस करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में लगभग तीन करोड़ बीस लाख बच्चे स्कूलों में हैं। छह से चौदह साल के महज एक लाख बच्चों को ही स्कूल तक पहुंचाने की चुनौती सामने है। उसमें भी प्रदेश के सीतापुर, हरदोई, महराजगंज, मिर्जापुर और फतेहपुर जिलों में सबसे ज्यादा फोकस करने की जरूरत है। वैसे राज्य सरकार के प्रस्ताव पर केंद्र ने प्रदेश के लिए दस हजार से अधिक प्राइमरी, एक हजार से अधिक अपर प्राइमरी और लगभग सवा सौ कंपोजिट स्कूलों को खोलने की मंजूरी दे रखी है।

खुद, केंद्र सरकार अकेले बूते शिक्षा के लिए सब कुछ कर पाने में हाथ खड़ा कर चुकी है। वह निजी क्षेत्र की ओर निहार रही है। जाहिर है उत्तर प्रदेश को भी इसकी दरकार है। प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विकास परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक-निजी क्षेत्र भागीदारी [पीपीपी] की पैरवी लगातार कर रहे हैं। बावजूद इसके जरूरतमंदों में शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के लिए ही प्रदेश सरकार शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में 70 आवासीय स्कूल अपने बूते खोलना चाहती है। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत स्कूल तक जाने-आने के साधनों की दिशा में कदम उठे हैं। प्रदेश सरकार ने शिक्षा के बजट में लगभग 11 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है। 13वें वित्त आयोग ने भी चालू वित्तीय वर्ष में प्रारंभिक शिक्षा के लिए 1027 करोड़ की मंजूरी दी है। इसमें केंद्र व राज्य मिलकर सहयोग करेंगे।

स्कूली शिक्षा प्रगति रिपोर्ट एक नजर-

-खर्च [मार्च-2012 तक] उपलब्ध धन का 87 प्रतिशत

सर्वशिक्षा अभियान- 13वें वित्त आयोग के अनुदान में राज्य ने अपने हिस्से का 871 करोड़ जारी किया

सिविल कार्य- 26 प्रतिशत कार्य पूरा

सामाजिक सहभागिता- 370 विकलाग लड़कियों का कस्तूरबा गाधी बालिका विद्यालयों में दाखिला

राजकेश्वर सिंह

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