WomensDay: हिंसा, शोषण और असमानता के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं महिलाएं

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। दुनिया भर की महिलाओं को उनके हक की आवाज बुलंद बनाने के लिए यह दिन हर साल मनाया जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 08 Mar 2018 09:08 AM (IST) Updated:Thu, 08 Mar 2018 11:55 AM (IST)
WomensDay: हिंसा, शोषण और असमानता के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं महिलाएं
WomensDay: हिंसा, शोषण और असमानता के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं महिलाएं

नई दिल्ली (जेएनएन)। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। दुनिया भर की महिलाओं को उनके हक की आवाज बुलंद बनाने के लिए यह दिन हर साल मनाया जाता है। इस दिशा में तरक्की भी दिखती है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना शेष है। तभी आधी आबादी आज भी अपने पूरे हक के लिए लड़ रही है।

पिछले एक साल में महिलाओं ने देश-दुनिया की सीमाओं को लांघकर अपनी आवाज बुलंद की है। हिंसा, शोषण और असमानता के खिलाफ मीटू व टाइम्स अप जैसे कई अभियान चलाकर महिलाएं समानता के सिद्धांत को धरातल पर लाने की कोशिशों में जुटी हैं। लैंगिक असमानता को मिटाना संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एजेंडे में शामिल है। इस वर्ष महिला दिवस की थीम है- यही समय है : महिलाओं का जीवन बदल रहे ग्रामीण और शहरी कार्यकता

अधिकारों का सवाल

1908 में 28 फरवरी को पहली बार अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने महिला दिवस का आयोजन किया। एक वर्ष बाद तय किया गया कि महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने और उनके संघर्षों को दुनिया के सामने लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाना चाहिए। 1913 में इस दिवस के लिए 8 मार्च का दिन तय किया गया। तब इसका उद्देश्य था महिलाओं को मतदान का अधिकार देने और समान काम के लिए समान वेतन दिए जाने के लिए अभियान चलाना। ये दिन आज तक इसलिए मनाया जाता है क्योंकि आज भी महिलाएं समानता के अधिकारों से वंचित हैं।

गहरी है असमानता की खाई

दुनिया के 500 सबसे अमीर लोगों में सिर्फ 55 महिलाएं हैं। वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम का अनुमान है कि महिला और पुरुष के बीच आर्थिक असमानता अगले 118 वर्षों तक खत्म नहीं होगी। एक दशक पहले के मुकाबले मौजूदा समय में वैश्विक श्रमिकों की संख्या में 25 करोड़ अधिक महिलाएं हैं, लेकिन वे सिर्फ उतना ही कमा रही हैं जो पुरुष 2006 में कमाते थे।

तन-मन पर लगते घाव

दुनियाभर में 20 वर्ष से कम उम्र की 12 करोड़ (तकरीबन 10 फीसद) लड़कियां शारीरिक शोषण का शिकार हुई हैं। दुनिया की कुल महिलाओं में से एक तिहाई ने अपने जीवन में कभी न कभी शोषण र्या हिंसा झेली है।

देश का हाल

श्रम हिस्सेदारी : दुनिया के सबसे बड़े मानव संसाधन संगठन सोसायटी फॉर हयुमन रिसोर्स मैनेजमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की श्रम भागीदारी काफी कम है। हालांकि 1990 के बाद इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है। नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि शहरों में महिला श्रम भागीदारी 26-28 फीसद पर ठहरी है जबकि 1987 से 2011 के बीच ग्रामीण इलाकों में यही श्रम भागीदारी 57 फीसद से घटकर 44 फीसद रह गई। श्रमशक्ति के साथ इनके बीच वेतन असमानता भी अत्यधिक दिखती है।

आय में बड़ा अंतर : मॉन्स्टर सेलरी इंडेक्स की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में महिलाओं का पुरुषों से 20 फीसद कम वेतन है। एक पुरुष की प्रतिघंटे की औसत आय 231 रुपये रही, जबकि महिला की प्रतिघंटा औसत आय महज 184.8 रुपये थी। वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के वैश्विक लैंगिक भेद सूचकांक 2017 में 144 देशों की सूची में हम 108वें पायदान पर हैं। 2016 की तुलना में हम 21 पायदान नीचे गिरे हैं। भारत में महिलाओं को औसतन 66 फीसद श्रम का भुगतान नहीं किया जाता। पुरुषों में यह आंकड़ा महज 12 फीसद है।

संपत्ति का अधिकार : कानून के तहत महिलाओं को संपत्ति और उत्तराधिकार में बराबरी का अधिकार है, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं दिखता। शोध बताते हैं कि गांवों में आज भी 70 फीसद जमीन का मालिकाना हक पुरुषों के पास है। 

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