ब्रिटेन का कानून नीरव मोदी और विजय माल्‍या जैसे भगोड़ों के प्रर्त्‍यपण में सबसे बड़ी रुकावट

ब्रिटेन का कानून नीरव मोदी और विजय माल्‍या जैसे भगोड़ों के प्रत्‍यर्पण को लेकर वहां का कानून सबसे बड़ी बाधा है। वहां पर आरोपी व्‍यक्ति को कई स्‍तरों पर अनुमति लेनी होती है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Wed, 20 Mar 2019 06:00 PM (IST) Updated:Wed, 20 Mar 2019 06:02 PM (IST)
ब्रिटेन का कानून नीरव मोदी और विजय माल्‍या जैसे भगोड़ों के प्रर्त्‍यपण में सबसे बड़ी रुकावट
ब्रिटेन का कानून नीरव मोदी और विजय माल्‍या जैसे भगोड़ों के प्रर्त्‍यपण में सबसे बड़ी रुकावट

नई दिल्‍ली, जेएनएन। भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी और शराब कारोबारी विजय माल्‍या की यूनाइटेड किंगडम (यूके) में राजनीतिक शरण लेने की अपील को लेकर कानूनी अड़चन हाल के वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में उभर कर सामने आया है। इस कारण भारतीय नागरिकों के प्रत्यर्पण को लेकर कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

ब्रिटेन से 2002 से अब तक भारत के 28 भगोड़ों में से सिर्फ एक समीरभाई बीनूभाई पटेल को अब तक प्रत्‍यर्पण किया है। इस मुद्दे के जानकारों के अनुसार ब्रिटेन ने 28 भगोड़ों की की सूची में नौ भारतीय नागरिकों को प्रत्यर्पित करने से इनकार कर दिया है। ब्रिटेन की अदालतों ने तीन भारतीय भगोड़ों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने से इनकार कर दिया है। विजय माल्या और टाइगर हनीफ समेत कुल 15 मामले हैं जिनके खिलाफ भारत के प्रत्यर्पण का अनुरोध ब्रिटेन के पास लंबित हैं।

ब्रिटेन की कानूनी प्रणाली प्रत्यर्पण की प्रक्रिया में कर्इ प्रकार के चेक एंड बैलेंस की प्रक्रिया में सबसे बड़ी बाधा है। भारत और यूके ने 1992 में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए और यह 1993 में प्रभावी हो गया। यूके से प्रत्यर्पण की प्रक्रिया काफी जटिल है। भारत द्वारा ब्रिटेन के राज्य सचिव को प्रत्यर्पण का अनुरोध भेजे जाने के बाद वह अनुरोध को प्रमाणित करता है कि इस पर निर्णय लिया जाए या नहीं।

उसके बाद एक अदालत तय करती है कि गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जाए या नहीं। इसके बाद वांछित व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और अदालत के सामने लाया जाता है। इसके बाद प्रारंभिक सुनवाई होती है और फिर प्रत्यर्पण की सुनवाई होती है। यदि अदालत प्रत्यर्पण के पक्ष में आदेश देती है तो राज्य के सचिव यह तय करते हैं कि इसके लिए क्या आदेश देना है।

ब्र‍िटेन की अदालत में प्रत्‍यर्पण की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश को संतुष्ट होना चाहिए कि वारंट में बताए गए अपराध के आचरण को लेकर प्रत्यर्पण हो और वह मिले। लगभग सभी मामलों में जरूरी है कि दंडनीय अपराध ब्रिटेन में हुआ हो। इसके सजा की गंभीरता के न्यूनतम स्तर पर हो।

जज यह भी तय करते हैं कि प्रत्यर्पण असंगत न हो या अनुरोध करने वाले  व्यक्ति के मानवाधिकारों के साथ असंगत न हो। राज्‍य के सचिव फैसले की अपील हाईकोर्ट में कर सकते हैं और हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है। व्‍यक्ति को मौत की सजा के मामले में प्रत्यर्पण निषिद्ध है।  

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