मौत नहीं जिंदगी बांटता है यह बम, जहां मिले खाली जगह; वहीं गिरा दें

पीठ जबलपुर जबलपुर में जापानी पद्धति से किया जा रहा पौधरोपण, नर्मदा और सड़कों के किनारे लगाए जा रहे पौधे

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 11 Jul 2018 10:00 AM (IST) Updated:Wed, 11 Jul 2018 11:53 AM (IST)
मौत नहीं जिंदगी बांटता है यह बम, जहां मिले खाली जगह; वहीं गिरा दें
मौत नहीं जिंदगी बांटता है यह बम, जहां मिले खाली जगह; वहीं गिरा दें

जबलपुर [प्रवीण कुमार सिंह]। संस्कारधानी के रूप में ख्यात मध्यप्रदेश की संगमरमर नगरी जबलपुर में बीज-बम फेंक कर पौधरोपण को गति दी जा रही है। अब नर्सरी में डेढ़ से दो महीने पौध तैयार करने की जरूरत नहीं है और ना ही गड्ढा खोदने की। बस कुछ बीज-बम साथ लेकर निकलिये और जहां मुफीद जगह दिखे, बम फेंक दीजिए। पौधा खुद-ब-खुद तैयार हो जाएगा। इस युक्ति से आप ट्रेन, बस, कार या किसी अन्य वाहन से सफर करते हुए भी सड़क किनारे पौधरोपण करते हुए चल सकते हैं।

बीज बम से पौधरोपण का यह अभिनव प्रयोग इन दिनों जबलपुर में चल रहा है। बीज बम से नर्मदा नदी, सड़क के किनारे और खाली हो रहे जंगलों को बारिश के मौसम में हरा-भरा करने की तैयारी है। इस पद्धति से लगभग 10 हजार पौधे रोपने की तैयारी है।

जबलपुर स्थित गायत्री पीठ के सदस्य नौ सालों से गड्ढे खोदकर पौधरोपण करते आ रहे थे। इसमें काफी समय और मेहनत की जरूरत पड़ती थी। लागत भी ज्यादा आती थी। हर साल 1500 ही पौधे इससे रोपे जा रहे थे। लिहाजा, संस्था के युवा समन्यवक संतोष ताम्रकार पौधरोपण की नई तकनीक इंटरनेट पर तलाश रहे थे, जिससे कम समय में ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपे जा सकें। सर्च के दौरान उन्हें जापान की यह सीड (बीज) बम पद्धति मिल गई। इसके बाद संस्था के सदस्यों को यूट्यूब वीडियो के जरिये बीज बम बनाने का काम सिखाया गया।

ऐसे तैयार होता है बीज बम

बीज बम मिट्टी का गोला होता है। इसमें दो तिहाई मिट्टी और एक तिहाई जैविक खाद रहता है। इसमें दो बीज अंदर धंसा दिए जाते हैं। इसे छह घंटे धूप में रखा जाता है। इसके बाद नमी रहने तक छांव में खुले में रख दिया जाता है। ठोस रूप लेते ही बीज बम तैयार हो जाता है। बारिश में इसे जमीन पर डालने से बीज जमीन पकड़ लेता है। पोषण के लिए उसमें पहले ही जैविक खाद रहती है।

जबलपुर में बीज बम बनाने में नीम, जामुन, परिजात, कपास और सीताफल के बीज का उपयोग किया जा रहा है। यह जापानी पद्धति है। वहां सालों से इस तरह से पौधरोपण और खेती की जाती है। यूट्यूब पर वीडियो देखकर हमने भी इस तरह की तकनीकी का उपयोग शुरू किया है। इससे लागत और समय में कमी आती है।

-संतोष ताम्रकार, युवा समन्यवक, गायत्री 

chat bot
आपका साथी