Oxford Coronavirus Vaccine: कोरोना के खिलाफ ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन ऐसे करेगी काम

Oxford Coronavirus Vaccine ऑक्सफोर्ड यूनिर्विसटी की वैक्सीन जिसे एजेडडी1222 भी कहा जाता है। यह भी चीन के कैनसिनो बायोलॉजिस्ट की ही तरह की ही वैक्सीन है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 23 Jul 2020 08:57 AM (IST) Updated:Thu, 23 Jul 2020 04:12 PM (IST)
Oxford Coronavirus Vaccine: कोरोना के खिलाफ ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन ऐसे करेगी काम
Oxford Coronavirus Vaccine: कोरोना के खिलाफ ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन ऐसे करेगी काम

नई दिल्ली, जेएनएन। Oxford Coronavirus Vaccine ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिर्विसटी और एस्ट्राजेनेका कंपनी की कोविड-19 वैक्सीन शुरुआती ट्रायल में सुरक्षित और प्रभावी रही है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मुताबिक वह भारत में अगस्त के आखिर में इसके तीसरे चरण का ट्रायल करने जा रही है। इसमें करीब 4 से 5 हजार लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाएगा। बड़ी उम्र के लोगों के साथ ही स्वास्थ्यकर्मी भी इस ट्रायल का हिस्सा होंगे। इस वैक्सीन को भारत में ‘कोविडशील्ड’ नाम दिया गया है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने इसके उत्पादन को लेकर ऑक्सफोर्ड के साथ समझौता किया है। आइए जानते हैं कि कैसे यह वैक्सीन काम करती है।

नए वायरस के लिए नया वैक्सीन: कोरोना वायरस की चुनौती से निपटने के लिए वैक्सीन के कई प्रकारों को आजमाया जा रहा है। ऑक्सफोर्ड यूनिर्विसटी की वैक्सीन जिसे एजेडडी1222 भी कहा जाता है। यह भी चीन के कैनसिनो बायोलॉजिस्ट की ही तरह की ही वैक्सीन है। इसी तरह की वैक्सीन में अमेरिका की जॉनसन एंड जॉनसन भी एक है, जो वायरस की जेनेटिक इंजीनियरिंग पर भरोसा करती है। यह एडिनोवायरस को इस उद्देश्य से पेश करती है कि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रेरित करेगा।

इम्यून सिस्टम बाहरी तत्वों को हराने के लिए बनाता है एंटीबॉडी: ऑक्सफोर्ड यूनिर्विसटी की यह वैक्सीन साधारण सर्दी के वायरस के कमजोर वर्जन या एडिनोवायरस (सीएचएडीओएक्स1) पर आधारित है, जिसके कारण चिंपैंजियों में संक्रमण होता है। इसे चिंपैंजियों से आए एडिनोवायरस से लिया गया है। साथ ही इसकी जेनेटिक इंजीनियरिंग की जाती है, जिससे मानव शरीर में इसकी प्रतिकृति नहीं बनती है।

जब कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन के साथ जेनेटिक इंजीनियर्ड सीएचएडीओएक्स1 व्यक्ति को दिया जाता है तो यह स्पाइक प्रोटीन का निर्माण करता है। शरीर का इम्यून सिस्टम इसे पहचानता है और बाहरी तत्वों को हराने के लिए एंडीबॉडी बनाना शुरू करता है। पहले और दूसरे चरण के प्राथमिक परिणामों के अनुसार, इंजेक्शन के जरिए इस वैक्सीन की एक खुराक देने के महीने भर बाद 95 फीसद प्रतिभागियों में सार्स-सीओवी-2 वायरस स्पाइक के खिलाफ एंटीबॉडी में चार गुना की वृद्धि दर्ज की गई। इसके साथ ही सफेद रक्त कोशिकाओं के एक प्रकार टी-सेल याद रखती हैं और कोरोना वायरस पर हमला करती हैं।

कब तक आ जाएगी वैक्सीन: ब्रिटेन में 10 हजार लोगों पर दूसरे और तीसरे चरण का ट्रायल किया जा रहा है, इसके बाद ही वैक्सीन के लाइसेंस के लिए इसका मूल्यांकन किया जाएगा। बड़े पैमाने पर ट्रायल भी ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में किए जा रहे हैं, जबकि अमेरिका में 30 हजार लोग अध्ययन के लिए तैयार हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मनचाहे परिणाम प्राप्त करने के बाद इस साल के अंत तक यह वैक्सीन आ जाएगी। एस्ट्राजेनेका ने कहा है कि वह सरकारों और अन्य एजेंसियों को 2 अरब वैक्सीन की आर्पूति करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत में पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने मध्यम और कम आय वाले देशों में एक अरब खुराक की आर्पूति के लिए समझौता किया है, जिसमें भारत भी शामिल है।

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