जिससे खौफ खाती थी ब्रिटिश हुकूमत, उनका नाम था Vinayak Damodar Savarkar

सावरकर के मुताबिक इस जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। क्रांतिकारियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 28 May 2019 09:57 AM (IST) Updated:Tue, 28 May 2019 10:54 AM (IST)
जिससे खौफ खाती थी ब्रिटिश हुकूमत, उनका नाम था Vinayak Damodar Savarkar
जिससे खौफ खाती थी ब्रिटिश हुकूमत, उनका नाम था Vinayak Damodar Savarkar

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने अपने चिंतन, लेखन और ओजस्वी वक्ता होने की वजह से ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। भारत की स्वतंत्रता में सावरकर का योगदान अमूल्य रहा है। उन्होंने देश के भीतर और बाहर रहते हुए आजादी के लिए केवल क्रांतिकारी गतिविधियों को चलाया और कई अन्‍यों के लिए प्रेरणास्रोत भी बने। उन्‍हें भारतीय इतिहास में हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद के विस्तार के लिए जाना जाता है। सावरकर को अण्डमान निकोबार द्वीप समूह स्थित सैल्यूलर जेल में यातनाएं दी गईं।

काला पानी की सजा
नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें 8 अप्रैल,1911 को काला पानी की सजा सुनाई गई और सैल्यूलर जेल पोर्ट ब्लेयर भेज दिया गया। वीर सावरकर को सैल्यूलर जेल की तीसरी मंजिल की छोटी-सी कोठरी में रखा गया था। इसमें पानी वाला घड़ा और लोहे का गिलास रखा था। कैद में सावरकर के हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां जकड़ी रहती थीं। कहा जाता है कि वीर सावरकर के साथ ही यहां पर उनके बड़े भाई गणेश सावरकर भी कैद थे लेकिन उन्‍हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी। दस वर्षों तक सावरकर इस काल कोठरी में एकाकी कैद की सजा भोगते रहे। यहां पर वह अप्रैल 1911 से मई 1921 तक रहे।

अमानवीय यातनाएं
सैल्यूलर जेल में उन क्रांतिकारियों को रखा जाता था जिनसे ब्रिटिश शासन खौफ खाता था। सावरकर ने ही एक बार वहां पर कैदियों पर होने वाली ज्‍यादतियों के बारे में बताया था। यहां पर स्‍वतंत्रता सेनानियों को कोल्‍हू में लगाया जाता था और तेल निकलवाया जाता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमि व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थी।

एक नजर यहां भी 
1904 में उन्‍होंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। 1905 में सावरकर ने बंगाल के विभाजन के बाद पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। उनके लेख इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। कई लेख कलकत्ता के युगान्तर में भी छपे। सावरकर रूसी क्रान्तिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे। 10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई थी। मई 1909 में इन्होंने लन्दन से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें वहांं वकालत करने की अनुमति नहीं मिली।

लंदन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इंडिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लंदन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लंदन पहुंचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन जुलाई में वह एसएस मोरिया जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। 24 दिसंबर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद जनवरी 1911 को सावरकर को एक अन्‍य मामले में भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। 26 फरवरी 1966 में 82 वर्ष की उम्र में उनका बंबई में निधन हो गया था।

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