‘रामायण’ सीरियल के निर्माण में थी दैवीय शक्तियों की प्रेरणा और साधुओं का मार्गदर्शन

धारावाहिक के निर्माता निर्देशक रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर का कहना है कि सीरियल के निर्माण के पीछे दैवीय शक्तियों और साधुओं का मार्गदर्शन भी था जिसके साक्षी वे खुद भी रहे हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Sun, 19 Apr 2020 02:05 PM (IST) Updated:Sun, 19 Apr 2020 02:05 PM (IST)
‘रामायण’ सीरियल के निर्माण में थी दैवीय शक्तियों की प्रेरणा और साधुओं का मार्गदर्शन
‘रामायण’ सीरियल के निर्माण में थी दैवीय शक्तियों की प्रेरणा और साधुओं का मार्गदर्शन

मुंबई [स्मिता श्रीवास्तव]। करीब 33 साल पहले दूरदर्शन पर प्रसारित हुए रामायण का पुन: प्रसारण आज खत्म हो रहा है। इतने अर्से बाद दिखाए गए इस शो ने टीआरपी के मामले में कीर्तिमान स्थापित किया। धारावाहिक के निर्माता निर्देशक रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर का कहना है कि सीरियल के निर्माण के पीछे दैवीय शक्तियों और साधुओं का मार्गदर्शन भी था, जिसके साक्षी वे खुद भी रहे हैं।

उन वृतांतों का जिक्र करते हुए प्रेम सागर बताते हैं, शिलांग में फिल्म ललकार की शूटिंग से पहले हमारे डिस्ट्रीब्यूटर शंकर लाल गोयनका हमें कामाख्या देवी के मंदिर लेकर गए। मैं भी साथ था। यह कहानी अविश्वसनीय है मगर उसका जिक्र पापाजी की बायोग्राफी एन एपिक लाइफ : रामानंद सागर में भी मैंने किया है।

हम दर्शन करके जैसे ही निकले छोटी सी तेजस्वी कन्या ने आकर कहा- एक बाबा आपसे मिलना चाहते हैं...। पापाजी आध्यात्मिक तो थे ही, साधु से मिलने पहुंच गए। साधु महाराज उन्हें देखते रहे। कुछ नहीं बोले। पापाजी ने पूछा कोई सेवा चाहते हैं तो आदेश दें। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। पापाजी प्रणाम करके चले आए।

यह 1970 की बात है। दस साल बाद फिल्म कोहिनूर की शूटिंग के लिए हम उत्तराखंड में हर की पैड़ी से दो किमी दूर गंगातट पर थे। अचानक बरसात होने लगी। एक तरफ गंगा मैया थी दूसरी ओर तूफान। दूर-दूर तक कोई मकान नहीं था। तभी पापाजी को वहां पर साधु का आश्रम दिखा।

उन्होंने अपने असिस्टेंट से कहा कि साधु से आश्रय देने का निवेदन करें। पहले तो साधु बाबा नाराज हो गए। फिर पूछा डायरेक्टर का नाम क्या है। उसने भागते हुए कहा रामानंद सागर। यह सुनकर उनके चेहरे के हावभाव बदल गए। उन्होंने माफी मांगी। आदर के साथ सबको आश्रम में लेकर आए। पापाजी को आसन पर बैठाया। सबको काढ़ा पिलाया। बाद में पता चलता है कि वह साधु स्वामी रामानुज सरस्वती थे।

वह एटामिक साइंटिस्ट थे। वहां आश्रम बना शोध कर रहे थे कि गंगा के पानी में एटामिक इनर्जी कितनी है। उसके बाद साधुओं की टोली आई। उन्होंने जब पापाजी को कामाख्या मंदिर का वृतांत सुनाया तो हम सुनकर दंग रह गए कि उन्हें कैसे पता। साधुओं ने बताया कि वह साधु महाराज कोई और नहीं सिद्ध महाअवतार बाबाजी थे। मान्यता है कि वह बद्रीनारायण की आरती पर ही आते हैं। किसी को दर्शन नहीं देते। हम समझ गए कि तुम्हें एक बड़े दैवीय कार्य का जिम्मा मिला है।

प्रेम ने बताया, इस घटना के बाद पापाजी बद्रीनाथ गए। यह सोचकर कि बाबाजी वहां पर आरती में आते हैं। उस समय मेरे बड़े भाई पापाजी के साथ थे। एक साधु ने आकर पापाजी को प्रसाद दिया। लेकिन प्रसाद छूटकर गिर गया। एक अन्य साधु ने लपककर खा लिया और मुस्कुराते हुए पापाजी की तरफ देखा। जब तक कुछ समझ पाते साधु बाबा गायब हो चुके थे। वह बाहर भागे। तब वहां राम बाबा नामक साधु मिले। उन्होंने पापाजी से कहा, तुम सिनेमा छोड़ दो और टीवी के लिए रामायण बनाओ। एक साल के अंदर रामायण का निर्माण प्रारंभ हो गया। आचार्य श्रीराम शर्मा ने भी इसके लिए प्रेरित किया था।

प्रेम सागर ने बताया, इसी तरह एक दिन एक साधु बाबा हमारे घर पर पहुंचे। चेहरे पर अलौकिक तेज था। कहा कि मैं हिमालय से अपने गुरु का संदेश लाया हूं। पापाजी ने संदेश बताने को कहा। उसने कहा कि तुम क्या समझते हो कि तुम रामायण बना रहे हो। इसे ईश्वर का कार्य मानो और किसी बात की चिंता न करो। तुम तो आए ही इस काम के लिए हो। इतना कहकर चले गए। यह वह वक्त था जब पापा जी रामायण के निर्माण में आ रही शुरुआती समस्या को लेकर परेशान थे।

ऐसे हुई काकभुशुण्डि वाले सीन की शूटिंग

प्रेम सागर ने दैनिक जागरण से चर्चा में कहा, जब काकभुशुण्डि बालक राम की परीक्षा लेने आते हैं, इस कहानी से सभी परिचित हैं। उसकी शूटिंग से जुड़ा एक आंखोंदेखा वाकया बताता हूं। कौव्वे वाले उस सीन का फिल्मांकन बेहद कठिन था। नन्हें बालक और कौव्वे को भला कैसे निर्देशित किया जाता। बड़ी मुश्किल से कौव्वा पकड़ा। कौव्वे को सेट पर लाया गया। लाइट और कैमरा ऑन हुआ। तब पापाजी कौव्वे के पास गए। हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा काकभुशुण्डि जी मैं संकट में हूं। कृपया मेरी मदद कीजिए। उन्होंने उस कौव्वे को मानो पूरा सीक्वेंस समझा दिया। उसके बाद पापाजी ने कहा एक्शन। दस मिनट की रील थी।

मंझा एक्टर जैसे काम करता है कौव्वे ने वैसे ही किया। पापाजी कहते बच्चे को देखो, वह तुरंत देखता। रोटी लो, रोटी ले लेता। बच्चे के साथ इस तरह खेलता मानो पालतू हो। दस मिनट तक जैसे काकभुशुण्डि जी स्वयं शॉट दे रहो हों। जैसे ही दस मिनट की रील पूरी हुई। कैमरा और लाइट ऑफ हुई कौव्वा उड़कर चला गया। मैं सेट पर था तो यह वाकया भूल नहीं पाता हूं।  

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