तेलंगाना पर कांग्रेस की उल्टी चाल

प्रशांत मिश्र। स्वतंत्र भारत के इतिहास में लोकसभा में गुरुवार सबसे शर्मनाक दिन था। आंध्र प्रदेश के 'माननीय सांसदों' ने संसदीय मर्यादा तार-तार कर दी। कांग्रेस के आलाकमान, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उनके सलाहकार सदन के बाहर से तथा नायब राहुल गांधी से लेकर अधिकांश केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के संकटमोचक सदन के अंदर यह शर्मनाक नजारा टुकुर-टुकुर देखते रहे। यह नजारा कांग्रेस के वोट बैंक की राजनीति के अतीत का ही नहीं वर्तमान का भी सबसे जीता-जागता उदाहरण है। वोट बैंक की राजनीति ने एक राज्य का ऐसा बंटवारा किया जिसने नफरत की आग ही नहीं सुलगाई बल्कि राज्य के लोगों के दिलों को भी बांट दिया।

By Edited By: Publish:Thu, 13 Feb 2014 09:21 PM (IST) Updated:Thu, 13 Feb 2014 09:22 PM (IST)
तेलंगाना पर कांग्रेस की उल्टी चाल

नई दिल्ली [प्रशांत मिश्र]। स्वतंत्र भारत के इतिहास में लोकसभा में गुरुवार सबसे शर्मनाक दिन था। आंध्र प्रदेश के 'माननीय सांसदों' ने संसदीय मर्यादा तार-तार कर दी। कांग्रेस के आलाकमान, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उनके सलाहकार सदन के बाहर से तथा नायब राहुल गांधी से लेकर अधिकांश केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के संकटमोचक सदन के अंदर यह शर्मनाक नजारा टुकुर-टुकुर देखते रहे। यह नजारा कांग्रेस के वोट बैंक की राजनीति के अतीत का ही नहीं वर्तमान का भी सबसे जीता-जागता उदाहरण है। वोट बैंक की राजनीति ने एक राज्य का ऐसा बंटवारा किया जिसने नफरत की आग ही नहीं सुलगाई बल्कि राज्य के लोगों के दिलों को भी बांट दिया। संप्रदाय के आधार पर देश का बंटवारा होने के बाद यह संभवत: दूसरी घटना होगी जब किसी प्रदेश की जनता के दिल इतने बंटे हों।

अलग तेलंगाना की मांग कोई नई नहीं है। यह मांग तीन दशक से भी अधिक पुरानी है। नंदमुरि तारक रामाराव के आंध्र प्रदेश में सरकार चलाने से पहले भी राज्य में अलग तेलंगाना को लेकर छिटपुट प्रदर्शन चलते रहते थे। चंद्रबाबू नायडू की सरकार रही तो भी तेलंगाना की मांग को लेकर रह रहकर चिंगारी भड़कती रही। चूंकि भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) वाली सरकार में चंद्रबाबू नायडू एक प्रमुख घटक के रूप में शामिल थे इसलिए छोटे राज्यों की सबसे बड़ी हिमायती भाजपा भी अनमनी सी रही। वजह थी चंद्रबाबू नायडू आंध्र के बंटवारे के खिलाफ थे। भाजपा के पितृ पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी और पार्टी के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवाणी तेलंगाना की इस लड़ाई के सबसे बड़े गवाह हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी की ही सदारत और आडवाणी की सक्रिय भूमिका के बाद ही उत्तर प्रदेश के विभाजन से उत्तराखंड बना। बिहार से अलग होकर झारखंड और पुराने मध्य प्रांत या आज के मध्य प्रदेश से विभाजित होकर छत्तीसगढ़ का उदय हुआ। इतिहास गवाह है तब भी प्रदेशों में दिलों का बंटवारा नहीं हुआ था। बिहार की तत्कालीन सरकार ने इसका शुरुआती विरोध किया था। लेकिन अटल सरकार ने विरोध की चिंगारी भड़कने नहीं दी थी।

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भाजपा के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद की एक जनसभा में संभवत: ठीक ही कहा था 'भाजपा नेतृत्व वाले राजग के शासन काल में जब उपरोक्त तीनों राज्यों का गठन हुआ था तो राज्यों की जनता ने आपस में मिठाई बांटी थी। लेकिन कांग्रेस ने जब आंध्र प्रदेश में राज्य का विभाजन किया तो प्रदेश की जनता में नफरत ही नहीं बांटी, बल्कि दिलों को भी बांट दिया।' शायद आंध्र प्रदेश की जनता की इस जबरदस्त आकांक्षा को देखकर ही 2009 के लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में अलग तेलंगाना के गठन का समर्थन भी किया।

आंध्र प्रदेश को ग्रहण तब लगा जब तत्कालीन मुख्यमंत्री और राज्य के कद्दावर नेता वाइएसआर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। उसके बाद प्रदेश में कांग्रेस बंटी तो साथ ही वोट बैंक की बिसात भी बिछने लगी। इसी चाहत में कांग्रेस आलाकमान के सलाहकारों ने शतरंज की ऐसी चाल चली कि उसने गुरुवार को लोकसभा के इतिहास में काला अध्याय लिख दिया। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने जो बीज बोए उसके राजदार तत्कालीन गृह मंत्री और आज के वित्त मंत्री पी चिदंबरम से लेकर गुलाम नबी आजाद, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं आंध्र प्रदेश के वर्तमान प्रभारी दिग्विजय सिंह तथा कांग्रेस के तमाम स्वनामधन्य नेता भी हैं। यह भी बताते हैं कि वर्तमान प्रभारी दिग्विजय सिंह अलग तेलंगाना के पक्ष में नहीं थे। लेकिन हुकुम जहांपनाह का तो बजाना ही था। स्थिति यह है कि आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के समर्थक और विरोधी सभी सांसद कह रहे हैं कि कांग्रेस ने हमें 'ठगा' है।

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