गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, याहू कानून का सम्मान नहीं करती हैं: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने तीनों कंपनियों से ऐसी सामग्री की पहचान करने और उसे हटाने के लिए आंतरिक व्यवस्था बनाने को कहा।
नई दिल्ली, प्रेट्र । लडकियों की घटती संख्या मानव जाति के लिए घातक संकेत है। यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग जांच से जड़ी सामग्री पर सर्च इंजनों गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू को क़़डी फटकार लगाई। कोर्ट ने तीनों कंपनियों से ऐसी सामग्री की पहचान करने और उसे हटाने के लिए आंतरिक व्यवस्था बनाने को कहा।
घटते लिंगानुपात पर चिंता जाहिर करते हुए हालांकि कोर्ट ने तीनों कंपनियों से कहा कि वह उनके खिलाफ कोई अवमानना कार्रवाई शुरू नहीं करेगी। वह सिर्फ इतना चाहती है कि तीनों कंपनियां लिंग जांच को प्रतिबंधित करने से जु़ड़े कानूनों के प्रति जवाबदेह बनें। जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस आर. भानुमती की पीठ ने कहा कि तीनों कंपनियां अपने यहां आंतरिक विशेषज्ञ समूह बनाएं जो लिंग जांच से जु़ड़ी सामग्री की पहचान करे और उसे अपनी-अपनी वेबसाइटों से हटाएं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट सर्च इंजनों को इस तरह के विज्ञापन और सामग्री हटाने का आदेश दे चुका है।
कोर्ट ने कई सर्च की--वर्ड ब्लॉक करने को भी कहा था लेकिन गुरवार को सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने शिकायत की कि इंटरनेट कंपनियां कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं। सॉलिसीटर जनरल ने अपने मोबाइल पर कुछ की--वर्ड डालकर नतीजा कोर्ट को दिखाया। इस पर पीठ ने गहरी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा, 'ये कंपनियां भारत में काम कर रही हैं। ये कंपनियां भारत में पैसा बनाना जानती हैं लेकिन भारत के कानून का सम्मान नहीं करती हैं। मूल समस्या यही है।' इस टिप्पणी के साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया कि इन कंपनियों को वह सभी सामग्रियां हटानी होंगी जो किसी भी रूप में गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग निर्धारण में मदद करती हैं और कानून का उल्लंघन करती हैं।
कंपनियों ने कहा--मानते हैं निर्देश गूगल इंडिया ने कहा कि वह कोर्ट के निर्देशों का पालन करती है। अपने बयान में गूगल ने कहा कि लिंग जांच से जु़़डे विज्ञापनों को हटाने के कोर्ट के निर्देश का पालन किया गया है। गूगल की तरफ से पेश वकील अभिषषेक मनु सिंघवी ने दावा किया कि पहले ही काफी आपत्तिजनक सामग्री हटाई जा चुकी है। बाकी कंपनियों ने भी कहा कि वे भारत के कानूनों का सम्मान करती हैं। कोर्ट के आदेश का पूरी तरह से पालन करने के कोशिश की जा रही है।
कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 11 अप्रैल तय की है। सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता साबू मैथ्यू जॉर्ज ने इस मसले पर जनहित याचिका दाखिल कर रखी है। याचिका में कहा गया है कि भारत में गर्भ में बच्चे के लिंग जांच की मनाही है। इसके बावजूद इंटरनेट पर तमाम ऐसे विज्ञापन और सामग्री मौजूद हैं, जिनमें लोगों को भ्रूण के लिंग जांच की सुविधा मुहैया कराई जा रही है।