मुख्‍य न्‍यायाधीश के ऑफिस को आरटीआइ के दायरे में लाने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) का दफ्तर सूचना कानून के दायरे में आएगा कि नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया

By Prateek KumarEdited By: Publish:Thu, 04 Apr 2019 04:26 PM (IST) Updated:Thu, 04 Apr 2019 09:11 PM (IST)
मुख्‍य न्‍यायाधीश के ऑफिस को आरटीआइ के दायरे में लाने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
मुख्‍य न्‍यायाधीश के ऑफिस को आरटीआइ के दायरे में लाने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) का दफ्तर सूचना कानून के दायरे में आएगा कि नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। शुक्रवार को मामले में हुई बहस के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि कोई भी व्यवस्था को अपारदर्शी बनाए रखने का पक्षधर नहीं है लेकिन एक संतुलन कायम करने और रेखा खींचने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक छोर (रजिस्ट्री) ने मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर को आटीआइ के दायरे में घोषित करने और सूचना देने के दिल्ली हाईकोर्ट और सीआईसी के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट मेें चुनौती दे रखी है। हाईकोर्ट और सीआइसी ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर पब्लिक अथारिटी माना जाएगा और सूचना का अधिकार कानून उस पर लागू होगा।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत मे ही अपील पर सुनवाई करते हुए सूचना देने के हाईकोर्ट और सीआइसी के आदेश पर रोक लगा दी थी। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ कर रही है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की ओर से पक्ष रखते हुए अटार्नी जनरल ने दलील दी थी कि सीजेआइ दफ्तर में आरटीआइ लागू करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है। उनका कहना था कि कोलीजियम की कार्यवाही और जजों की नियुक्ति से संबंधित सूचना सार्वजनिक करना जनहित में नहीं है।

शुक्रवार को अटार्नी जनरल की दलीलों का जवाब देते हुए आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट हमेशा से पारदर्शिता का हिमायती रहा है और इस कोर्ट ने पारदर्शिता कायम रखने व सूचना के अधिकार के पक्ष में बहुत से फैसले दिये हैं लेकिन अपने मामले में वह सूचना नहीं देना चाहता और अपील दाखिल कर रखी है।

भूषण ने अपनी दलीलें को पक्ष में एसपी गुप्ता मामले में सात जजों के फैसले का हवाला दिया। भूषण की दलीलों पर पीठ ने कहा कि अटार्नी जनरल का कहना था कि पूरी सूचना सार्वजनिक करना हानिकारक हो सकता है इससे संस्था को नुकसान पहुंच सकता है। पीठ ने कहा कि उन्होंने देखा है कि कई अच्छे उम्मीदवारों ने जज बनने की सहमति इस भय के चलते वापस ले ली कि सूचना बाहर आयी तो उनकी छवि को नुकसान पहुंच सकता है।

जस्टिस गोगोई ने कहा कि एसपी गुप्ता का फैसला बहुत पुराना है उस समय आरटीआई कानून नहीं था। अब स्थिति बदल चुकी है। अब जजों की नियुक्ति कोलिजियम करती है। कोलिजियम उम्मीदवारों से बातचीत करती है। कई सोर्स से आयी सूचनाओं की जांच करती है। भूषण ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि मुख्य न्यायाधीश और कोलिजियम के अन्य जज बेहतरीन जजों की नियुक्ति सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सूचना नहीं दी जा सकती।

पीठ ने कहा कि एक संतुलन कायम करने की जरूरत है। जस्टिस गोगोई ने भूषण से कहा कि कोलिजियम द्वारा जारी ताजा प्रस्ताव देखो यह पहले से अलग है। इसमे संतुलन कायम किया गया है। पीठ ने कहा कि कोई भी व्यवस्था को अपारदर्शी रखने का पक्षधर नहीं है, लेकिन पारदर्शिता के नाम पर संस्था को नष्ट नहीं किया जा सकता।

भूषण ने हाईकोर्ट के एक वकील के मामले का उदाहरण दिया जिसे कोलिजियम ने जज बनाने की सिफारिश की थी। सरकार ने सिफारिश विचार के लिए वापस कर दी थी। कोलिजियम ने दूसरी बार उसकी सिफारिश की और सरकार ने फिर वापस कर दी इसके बाद कोलिजियम ने अपना फैसला वापस ले लिया था।

भूषण ने कहा कि क्या इस मामले में वकील का नाम खारिज करने का कारण नहीं बताया जाना चाहिए। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा यह इस तरह का सबसे बड़ा मामला है और इस बारे मे आपकी बात सही है लेकिन हमें रेखा खींचनी होगी।बहस पूरी होने पर कोर्ट ने पक्षकारों से लिखित दलीलें देने को कहा और फैसला सुरक्षित रख लिया।

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