सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना के आंकड़ों की महाराष्ट्र की मांग खारिज की, केंद्र बता चुका है अनुपयोगी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार की वह याचिका खारिज कर दी जिसमें केंद्र सरकार को 2011 की जनगणना के सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना (एसईसीसी-2011) के आंकड़े महाराष्ट्र सरकार को देने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Wed, 15 Dec 2021 09:29 PM (IST) Updated:Wed, 15 Dec 2021 09:32 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना के आंकड़ों की महाराष्ट्र की मांग खारिज की, केंद्र बता चुका है अनुपयोगी
सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत जनगणना के आंकड़े महाराष्ट्र सरकार को देने के निर्देश देने की मांग खारिज कर दी।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार की वह याचिका खारिज कर दी जिसमें केंद्र सरकार को 2011 की जनगणना के सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना (एसईसीसी-2011) के आंकड़े महाराष्ट्र सरकार को देने के निर्देश देने की मांग की गई थी। शीर्ष कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि जब केंद्र सरकार इस कोर्ट में कह चुकी है कि वे आंकड़े अनुपयोगी और त्रुटिपूर्ण हैं तो फिर उन्हें राज्य को किसी भी उद्देश्य के लिए देने का निर्देश कैसे दिया जा सकता है, इससे भ्रम की स्थिति पैदा होगी।

ये आदेश जस्टिस एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने दिए हालांकि कोर्ट ने राज्य सरकार को कानून में उपलब्ध अन्य उपाय अपनाने की छूट दी है। वैसे तो यह मामला महाराष्ट्र का था, लेकिन इसका असर अन्य राज्यों के मामलों पर भी पड़ सकता है क्योंकि राज्य सरकारें अक्सर केंद्र सरकार से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आंकड़े जारी करने की मांग करती रहती हैं।

केंद्र सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि एसईसीसी-2011 में ओबीसी से संबंधित आंकड़े नहीं हैं। इसे त्रुटिपूर्ण पाया गया था इसलिए सार्वजनिक नहीं किया गया क्योंकि इससे भ्रम पैदा होता।बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की मांग खारिज करते हुए कहा कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने से पहले राज्य ट्रिपल टेस्ट (तीन शर्तों) का पालन करने को बाध्य है, इसका मतलब यह नहीं है कि केंद्र सरकार को उस जानकारी को साझा करने का निर्देश दिया जा सकता है जिसे वह स्वयं अनुपयोगी बता रही है।

कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया कि महाराष्ट्र ने स्थानीय निकायों में आरक्षण के उद्देश्य से जातिगत आंकड़े एकत्र करने के लिए एक आयोग का गठन किया है।महाराष्ट्र सरकार ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्र से 2011 के जनगणना आंकड़ों की मांग की थी। इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा था कि एसईसीसी-2011 जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत की गई जनगणना नही थी।

यह लक्षित लाभों के वितरण के लिए परिवारों की जाति की स्थिति की गणना करने से संबंधित मंत्रालय के कार्यकारी निर्देशों के आधार पर की गई थी। केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दाखिल हलफनामे का हवाला देते हुए कहा था कि एसईसीसी-2011 ओबीसी आंकड़े एकत्र करने के लिए नहीं थी। उन आंकड़ों का उपयोग नहीं किया जा सकता। उनका यह भी कहना था कि स्थानीय निकायों में आरक्षण के उद्देश्य के लिए राजनीतिक पिछड़ेपन का पता लगाना महत्वपूर्ण कारक है। इस तरह की कवायद स्थानीय निकाय के अनुसार की जानी चाहिए।

मेहता ने कहा था कि महाराष्ट्र सरकार ने अनुच्छेद-32 के तहत याचिका दाखिल की है। यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि इसमें राज्य मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकता। जबकि महाराष्ट्र का कहना था कि केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह जनगणना में जाति गणना करे ताकि स्थानीय निकायों में आरक्षण लागू किया जा सके। राज्य सरकार ने एसईसीसी-2011 के आंकड़े त्रुटिपूर्ण होने की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि केंद्र सरकार स्वयं यह तय नहीं कर सकती, विशेषज्ञ समिति द्वारा इसकी जांच की जानी चाहिए। 

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