हलाला-बहुविवाह मामले में पक्षकार बनना चाहता है जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

हलाला प्रथा के मुताबिक, तलाक देने वाले व्यक्ति से दोबारा शादी के लिए महिला को किसी अन्य व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है और तलाक लेना होता है, तभी वह पूर्व पति से दोबारा शादी कर सकती है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Mon, 02 Apr 2018 07:54 PM (IST) Updated:Mon, 02 Apr 2018 10:39 PM (IST)
हलाला-बहुविवाह मामले में पक्षकार बनना चाहता है जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
हलाला-बहुविवाह मामले में पक्षकार बनना चाहता है जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, माला दीक्षित। हलाला और बहुविवाह के मामलों को लेकर जमीयत उलेमा ए हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है। इस मामले में उलेमा ने मुसलमानों मे प्रचलित निकाह, हलाला और बहुविवाह के मामले में पक्षकार बनाने और उनका भी पक्ष सुनने का अनुरोध किया है। जमीयत ने हलाला और बहुविवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का विरोध किया है।

जमीयत ने ये याचिका नफ़ीसा खान की याचिका में पक्षकार बनाए जाने के लिए दाखिल की है। उन्होंने इस याचिका में कहा है कि उनका संगठन इस्लाम की संस्कृति और परंपरा के संरक्षण के लिए काम करता है, इसलिए मामले में उन्हें भी पक्ष रखने का मौका दिया जाए।

नफ़ीसा खान के साथ तीन अन्य ने सुप्रीम कोर्ट मे मुसलमानों में प्रचलित निकाह हलाला और बहुविवाह की परंपरा को चुनौती दी है। कोर्ट ने 26 मार्च को याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए मामला 5 जजो की संविधान पीठ को सुनवाई के लिए भेज दिया था।

जमीयत ने हलाला और बहुविवाह पर कोर्ट की सुनवाई का विरोध किया और कहा कि संविधान निर्माता सभी के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की दिक्‍कतों से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने जानबूझकर पर्सनल ला को नहीं छेड़ा और कामन सिविल कोड को नीति निदेशक भाग में रखा। जमीयत ने अपनी याचिका में कहा है कि अनुच्छेद 44 इसके साथ ही सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू होने तक विभिन्न धर्मों के पर्सनल ला के लागू रहने की इजाज़त देता है।

जमीयत ने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 44 सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की बात करता है, लेकिन ये अनुच्छेद सिर्फ राज्य के नीति निदेशक तत्व का हिस्सा है ये ज़रूर लागू नहीं कराया जा सकता। जमीयत ने अर्जी में कहा, 'मुस्लिम पर्सनल ला क़ुरान और हदीस पर आधारित है। ऐसे में उसे संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत लागू कानून नही कहा जा सकता। पर्सनल ला को मौलिक अधिकारों के हनन के आधार पर चुनौती नही दी जा सकती।

क्‍या है हलाला और बहुविवाह प्रथा?
हलाला प्रथा के मुताबिक, तलाक देने वाले व्यक्ति से दोबारा शादी के लिए महिला को किसी अन्य व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है और तलाक लेना होता है, तभी वह पूर्व पति से दोबारा शादी कर सकती है। इस प्रक्रिया को हलाला कहते है। इसके अलावा मुस्लिम पुरुष एक समय में चार बीवियां रख सकता है, जिसे बहुविवाह कहते हैं। जमीयत ने कोर्ट के पूर्व फ़ैसलों का हवाला देते हुए मुसलमानों मे प्रचलित निकाह हलाला और बहुविवाह पर विचार न करने का कोर्ट से अनुरोध किया है।

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