सेना में महिला अधिकारियों से कमांड लेने में पूरी तरह सहज नहीं पुरुष जवान, केंद्र ने SC में दिया जवाब

केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया गया कि सेना में महिला अधिकारियों से कमांड लेने में अभी भी पुरुष जवान पूरी तरह से सहज नहीं हैं।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Wed, 05 Feb 2020 12:57 PM (IST) Updated:Wed, 05 Feb 2020 03:52 PM (IST)
सेना में महिला अधिकारियों से कमांड लेने में पूरी तरह सहज नहीं पुरुष जवान, केंद्र ने SC में दिया जवाब
सेना में महिला अधिकारियों से कमांड लेने में पूरी तरह सहज नहीं पुरुष जवान, केंद्र ने SC में दिया जवाब

नई दिल्ली, माला दीक्षित। सुप्रीम कोर्ट में आज सेना में महिलाअधिकारियों की नियुक्तियों में भेदभाव को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे का जवाब देते हुए कहा गया कि सेना में पुरुष जवान अभी भी महिला अधिकारियों से कमांड लेने में पूरी तरह से सहज नहीं है।

केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया गया कि उनका किसी भी तरह से यह मतलब नहीं है कि पुरुष महिलाओं से कमांड नहीं  ले सकते। टिप्पणी में आगे कहा गया कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर होने का प्रयास नहीं करना चाहिए, वास्तव में वो पुरुषों से ऊपर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सरकार को इसे लागू करते देखना चाहते हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह सेना के संदर्भ में सुनवाई करेंगे। वायु सेना और नौसेना के लिए दलीलें अगले सप्ताह सुनी जाएंगी।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की बातों पर सहमति जताते हुए कहा कि दलीलें रिपोर्ट की तुलना में अधिक बारीक और प्रासंगिक थीं।

SC का कहना है कि अगर सरकार की ओर से इच्छाशक्ति और मानसिकता में बदलाव होता है, तो महिला अधिकारियों को सेना में कमान के पद दिए जा सकते हैं, क्योंकि लड़ाकू अभियानों के अलावा कई अन्य सेवाएं हैं, जहां महिलाओं को तैनात किया जा सकता है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम उन सभी महिला अधिकारियों के आवेदन लेंगे जो सेवा में हैं और जो नहीं हैं। जो इस निर्णय द्वारा शासित होंगे, हमें अलग-अलग आदेश पारित नहीं करने होंगे।इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि दूसरी तरफ से तर्क यह है कि शुरू से ही भेदभाव होता है, इसलिए हमें नहीं दिया जाता है और भेदभाव है।

याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा ?

याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि एसएससी 2006 में पेश किया गया था और तब विकल्प दिया गया था कि वे पुरानी नीति द्वारा शासित होना चाहते हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि SSC (11 महीने)  में प्रशिक्षण में अंतर होता है और जब कोई भारतीय सैन्य अकादमी (18 महीने) से बाहर निकलता है तो वहां स्थायी प्रवेश होता है। जब आप एसएससी से स्थायी आयोग में जाते हैं तो वरिष्ठता में समायोजन होता है, इसलिए वे भारतीय सैन्य कमेटी से आने वालों से आगे नहीं निकल सकते हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी

इस पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आपकी याचिका को देखकर यह प्रतीत होता है कि वे स्थायी कमीशन के हकदार नहीं है। जवाब ये है कि क्या आपने एचसी के फैसले का अनुपालन किया है, तब तक इन महिलाओं ने 14 साल की सेवा पूरी नहीं की थी, वे स्थायी कमीशन के लिए विचार करने के हकदार हैं। लेकिन आपने इसका पालन नहीं किया।

उस आदेश पर कोई रोक नहीं थी, लेकिन अभी भी इसका अनुपालन नहीं किया गया था। केवल वे महिलाएं जो अब 24 वर्ष पार कर चुकी हैं, तब तक 14 वर्ष से कम की होंगी। सरकार उन पर विचार करने में इतनी क्यों आनाकानी कर रही है।

बता दें, जस्टिस चंद्रचूड़ ने आदेश पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। शुक्रवार तक सभी नोट और सबमिशन बेंच को सौंपे जा सकते हैं।

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