कानूनी पेंच का सहारा लेकर फांसी से नहीं बच पाएंगे दोषी, सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

सुप्रीम कोर्ट फांसी की सजा के मामले में केन्द्र की पीड़ित और समाज के हितों का ध्यान रखते हुए गाइडलाइन तय करने की मांग पर विचार को राजी हो गया है।

By Tilak RajEdited By: Publish:Fri, 31 Jan 2020 12:44 PM (IST) Updated:Fri, 31 Jan 2020 07:39 PM (IST)
कानूनी पेंच का सहारा लेकर फांसी से नहीं बच पाएंगे दोषी, सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
कानूनी पेंच का सहारा लेकर फांसी से नहीं बच पाएंगे दोषी, सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लगता है आने वाले दिनों में मृत्युदंड पाए दोषी कानूनी पेंचीदिगियों का सहारा लेकर मौत को धता नहीं बता पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट मृत्युदंड के मामले में पीडि़त और समाज के पहलू को ध्यान मे रख कर दिशा निर्देश जारी करने और फांसी की सजा की समयसीमा तय करने पर विचार करने को राजी हो गया है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार की अर्जी पर विचार का मन बनाते हुए नोटिस जारी किया।

केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कोर्ट से 2014 में शत्रुघन चौहान के फैसले में मृत्युदंड के बारे में तय किये गए दिशानिर्देशों में संशोधन करने की मांग की है।

शुक्रवार को केन्द्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की पीठ के समक्ष दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह करते हुए कहा कि उस फैसले में कोर्ट ने दोषी के अधिकारों को केन्द्र मे रखते हुए दिशा निर्देश जारी किये थे अब पीडि़त और समाज को केन्द्र मे रखते हुए दिशा निर्देश जारी करने की जरूरत है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि बहुत से फैसलों मे कोर्ट कानूनी व्यवस्था तय कर चुका है कि सजा देते समय पीडि़त का पहलू ध्यान रखा जाए। जब कानून ही यह कहता है तो फिर अलग से दिशा निर्देश की क्या जरूरत है। तब मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में शत्रुघन चौहान के केस में दिए गए फैसले मे जो दिशा निर्देश तय किये हैं उसके कारण मृत्युदंड के केस की प्रक्रिया में देरी होती है। समय की मांग को देखते हुए जघन्य अपराध के दोषियों के बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश बहुत जरूरी है। कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद मामले पर विचार का मन बनाते हुए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया। हालांकि कोर्ट ने साफ किया कि शत्रुघन चौहान मामले में जिनके पक्ष में फैसला हुआ था वे मामले प्रभावित नहीं होंगे।

दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड व अन्य मामलों में दोषी ठहराए गए फांसी की सजा पाए दोषियों के कानूनी प्रक्रिया का लाभ उठा कर मामला लटकाने की प्रवृत्ति को देखते हुए केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह अर्जी दाखिल की है। केन्द्र सरकार ने अर्जी में मांग की है कि कोर्ट आदेश दे कि फांसी की सजा पाए दोषियों की दया याचिका खारिज होने के बाद सात दिन के भीतर डेथ वारंट जारी कर दिया जाएगा और उसके बाद सात दिन के भीतर उन्हें फांसी दे दी जाएगी। इस पर उनके साथी सह अभियुक्तों की पुनर्विचार याचिका, क्यूरेटिव याचिका या दया याचिका लंबित रहने का कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही सरकार ने शत्रुघन चौहान फैसले में फांसी के लिए तय की गई 14 दिन की समय सीमा को घटा कर 7 दिन करने का आग्रह किया है। केन्द्र सरकार ने अर्जी में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी 2014 को शत्रुघन चौहान मामले में दिये फैसले में कहा था कि दया याचिका खारिज होने के बाद अभियुक्त को 14 दिन का समय दिया जाएगा। सरकार का कहना है कि कोर्ट ने उस फैसले में यह भी कहा था कि फांसी की सजा पाए दोषी का मामला लटका रहना उस पर मानसिक अत्याचार है। कोर्ट ने वह फैसला दोषी के नजरिये से सुनाया था।

सरकार का कहना है कि देश में दुष्कर्म, हत्या आदि के दुर्दान्त अपराध बढ़ रहे हैं। फांसी की सजा पाए दोषी एक एक कर अर्जी दाखिल कर मामला लटकाते रहते हैं। कोर्ट को न्याय का इंतजार कर रहे अपराध के पीडि़त परिवार के बारे में भी सोचना चाहिए। सरकार की मांग है कि कोर्ट आदेश दे कि पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय समय सीमा के ही भीतर दोषी को क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने की इजाजत होगी। यह भी आदेश दे कि अगर दोषी दया याचिका देना चाहता है तो वह डेथ वारंट जारी होने के सात दिन के भीतर ही ऐसा कर सकता है। सरकार की मांग है कि कोर्ट सभी सक्षम अथारिटी जैसे राज्य, जेल अथारिटी तथा अन्य को आदेश दे कि वे दया याचिका खारिज होने के बाद सात दिन के भीतर डेथ वारंट जारी करेंगे और उसके बात सात दिन के भीतर उन्हें फांसी दे दी जाएगी।

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