Article 370, 35A को हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई

घाटी से अनुच्‍छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की गई। वकील राजू रामचंद्रन ने राज्‍य में बदलाव के लिए वहां के विधानमंडल की सहमति को जरूरी बताया।

By Monika MinalEdited By: Publish:Tue, 10 Dec 2019 01:10 PM (IST) Updated:Tue, 10 Dec 2019 05:15 PM (IST)
Article 370, 35A को हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई
Article 370, 35A को हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई

नई दिल्‍ली, माला दी‍क्षित। जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में सुनवाई शुरू हुई। बहस की शुरूआत पूर्व आइएएस और अब नेता बन चुके शाह फैजल की ओर से हुई। 

अनुच्छेद 370 हटाना गलत और असंवैधानिक

फैजल के वकील ने कहा कि केन्द्र सरकार का एकतरफा कार्यवाही में अनुच्छेद 370 हटाना गलत और असंवैधानिक है। केन्द्र जम्मू कश्मीर के लोगों की मंजूरी के बगैर एकतरफा बदलाव नहीं कर सकती। बहस बुधवार को भी जारी रहेगी। केन्द्र सरकार ने संसद से प्रस्ताव पारित कर जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35ए हटा दिया था।

राष्ट्रपति के 6 अगस्त के आदेश को चुनौती

इतना ही नहीं, संसद ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून पारित कर जम्मू कश्मीर और लद्दाख को दो अलग- अलग केन्द्र शासित राज्यों में बांट दिया था। राज्य से अनुच्छेद 370 और 35ए हटाए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। कुल 14 याचिकाएं इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं जिसमे ज्यादातर में अनुच्छेद 370 और 35ए समाप्त करने के राष्ट्रपति के गत 6 अगस्त के आदेश को चुनौती दी गई है। याचिकाओं में राष्ट्रपति के आदेश को असंवैधानिक बताते हुए रद किये जाने की मांग की गई है।

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है सुनवाई

शुरुआत में कोर्ट ने मामले में अंतरिम आदेश देने से इन्कार कर दिया था। मंगलवार को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले पर सुनवाई शुरू की। पीठ की अगुवाई सुप्रीम कोर्ट में दूसरे नंबर के वरिष्ठतम न्यायाधीश एनवी रमना कर रहे हैं। पीठ के अन्य सदस्य जस्टिस एसके कौल, आर सुभाष रेड्डी, बीआर गवई और सूर्यकांत हैं। 

शाह फैजल की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने राष्ट्रपति आदेश का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में मुख्य मुद्दा यह है कि क्या राष्ट्रपति शासन के अस्थाई आवरण की आड़ में संघीय ढांचे के तहत केन्द्र और राज्य के संबंधों में कोई ऐसा स्थाई बदलाव किया जा सकता है जिसे बाद में बदला न जा सकता हो।

लोगों की सहमति के बगैर एकतरफा बदलाव 
रामचंद्रन ने अपनी बहस की रूपरेखा बताते हुए कहा कि वह इस पर भी बहस करेंगे कि जम्मू कश्मीर राज्य के लोगों की सहमति के बगैर एकतरफा ऐसा बदलाव कैसे किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 में ही उसे बदलने का तंत्र दिया गया है।

राज्य की संविधान सभा की मंजूरी जरूरी 

सवाल उठता है कि स्थाई बदलाव करते वक्त क्या उसकी अवहेलना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इसमें बदलाव के लिए राज्य की संविधान सभा की मंजूरी चाहिए थी। राज्य की ओर राज्यपाल से सहमति लेना ठीक नहीं है क्योंकि राज्यपाल केन्द्र का ही प्रतिनिधि होता है ऐसे में एक प्रकार से केन्द्र का स्वयं से ही राय लेना हुआ। रामचंद्रन ने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय संधि और जम्मू कश्मीर संविधान के प्रावधानों का भी हवाला दिया।

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