सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से पीड़िता की जांच कराने का दिया आदेश

आलोक ने कहा कि चंडीगढ़ जिला अदालत ने गर्भपात की मांग खारिज कर दी क्योंकि कानून 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं देता।

By Manish NegiEdited By: Publish:Mon, 24 Jul 2017 08:52 PM (IST) Updated:Mon, 24 Jul 2017 08:52 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से पीड़िता की जांच कराने का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से पीड़िता की जांच कराने का दिया आदेश

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने छब्बीस सप्ताह की गर्भवती दस वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के गर्भपात की इजाजत मांगने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से बुधवार को पीड़िता के स्वास्थ्य की जांच कराने का आदेश दिया है। इस मामले में कोर्ट शुक्रवार को फिर सुनवाई करेगा।

ये आदेश मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर व न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने वकील अलख आलोक श्रीवास्तव की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिये। इस मामले में पीड़िता की ओर से कोई कोर्ट नहीं आया है बल्कि दिल्ली के रहने वाले वकील अलख आलोक ने जनहित याचिका दाखिल कर बच्ची की हालत की ओर कोर्ट का ध्यान खींचा है और कोर्ट से न सिर्फ दुष्कर्म पीड़िता बच्ची के गर्भपात की इजाजत मांगी है बल्कि इस तरह के मामलों में दिशानिर्देश तय करने की भी मांग की है। इसके अलावा याचिका में 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की इजाजत न देने वाली गर्भपात कानून की धारा 3 में भी संशोधन की मांग की है।

सोमवार को मामले की अर्जेन्सी बताते हुए आलोक ने कहा कि चंडीगढ़ जिला अदालत ने गर्भपात की मांग खारिज कर दी क्योंकि कानून 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं देता। उन्होंने कहा कि ये 10 वर्ष की दुष्कर्म पीड़िता है और डाक्टरों की राय में इसकी कम उम्र गर्भ बना रहने के लिए ठीक नहीं है। बच्ची का शरीर इस लायक नहीं है। कोर्ट तत्काल बच्ची की सेहत की जांच कराए और विशेष परिस्थितियों को देखते हुए गर्भपात की इजाजत दे।

कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के बाद केन्द्र सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन को नोटिस जारी किया साथ ही चंडीगढ़ लीगल सर्विस अथारिटी के सदस्य सचिव को भी मामले में पक्षकार बनाया। कोर्ट ने सदस्य सचिव को इस मामले में न्यायालय का मददगार नियुक्त किया है। कोर्ट ने सदस्य सचिव को निर्देश दिया कि वे बच्ची के माता पिता में से किसी एक की सहमति लेकर पीजीआइ चंडीगढ़ के मेडिकल बोर्ड से बच्ची की सेहत की जांच कराएंगे। मेडिकल बोर्ड जांच कर यह पता लगाएगा कि गर्भ का बच्ची की सेहत पर कितना बुरा असर पड़ रहा है। सदस्य सचिव सील बंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेंगे। इसके अलावा सदस्य सचिव जांच के लिए बच्ची और उसके माता पिता में से किसी एक को पीजीआइ तक ले जाने का भी प्रबंध करेंगे। इतना ही नहीं अगली सुनवाई 28 जुलाई को बच्ची और उसके माता पिता में से किसी एक के कोर्ट में आने का इंतजाम भी लीगल सर्विस अथारिटी के सदस्य सचिव करेंगे। 

क्या है मामला

याचिका के मुताबिक दस वर्ष की पीड़िता से उसके मामा ने करीब सात महीने तक दुष्कर्म किया। पेट में दर्द की शिकायत पर जब बच्ची डाक्टर के पास गई तब 26 सप्ताह के गर्भ का पता चला। पुलिस में शिकायत की गई आरोपी फिलहाल जेल में है। बच्ची के माता पिता ने गर्भपात की इजाजत मांगते हुए जिला अदालत में अर्जी दी थी लेकिन अदालत ने गत 18 जुलाई को अर्जी खारिज कर दी। अब एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है।

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