स्नातक चपरासी की बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर, ग्रेजुएट होने की बात छुपाकर बैंक में हुआ था भर्ती
स्नातक होने की बात छुपाकर पंजाब नेशनल बैंक में चपरासी के पद पर भर्ती होने वाले अभ्यर्थी की बर्खास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। इस पद पर भर्ती के लिए बैंक ने 12 वीं पास या उसके समकक्ष पढ़ाई करने वालों को ही आमंत्रित किया था।
नई दिल्ली, प्रेट्र। स्नातक होने की बात छुपाकर पंजाब नेशनल बैंक में चपरासी के पद पर भर्ती होने वाले अभ्यर्थी की बर्खास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। इस पद पर भर्ती के लिए बैंक ने 12 वीं पास या उसके समकक्ष पढ़ाई करने वालों को ही आमंत्रित किया था। जस्टिस अशोक भूषण, आर.सुभाष रेड्डी और एमआर शाह ने इस मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के दो आदेशों को दरकिनार कर दिया, जिसमें बैंक को इस चपरासी की सेवाएं जारी रखने को कहा गया था।
शैक्षिक योग्यता छुपाने को कोर्ट ने शरारतपूर्ण कृत्य बताया
पीठ ने कहा कि इस व्यक्ति ने बैंक में भर्ती होने के लिए बड़ी चालाकी से स्नातक (बीए) होने की बात छुपाई और खुद को बारहवीं पास बताया। पीठ ने कहा कि यदि बैंक को पता होता कि वह स्नातक है तो उसे इस पद पर भर्ती करने पर विचार न किया गया होता। वास्तव में अमित कुमार दास पद की योग्यता से अधिक पढ़ा लिखा था और इस कारण पद के लिए उपयुक्त नहीं था। उसके इस शरारतपूर्ण कृत्य से एक योग्य आदमी को उसका हक नहीं मिला।
ग्रेजुएट होने की बात छुपाकर बैंक में हुआ था भर्ती
पीठ ने कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट ने 3 अक्टूबर 2016 को दिए अपने आदेश में बैंक को इस चपरासी की सेवाएं जारी रखने की हिदायत देकर गलती की। पीठ ने कहा कि दास ने जानबूझकर अपने बारे में जानकारी छुपाई। इससे उसके चरित्र और पिछले जीवन का पता चलता है। पीठ ने कहा कि जानबूझकर जानकारी छुपाने वाला अपनी सेवाएं जारी रखने का दावा नहीं कर सकता। दास ने कोर्ट में अपनी बात के पक्ष में शीर्ष अदालत के एक फैसले को उद्धृत किया, जिसमें अधिक शिक्षित होने को नौकरी से हटाने का आधार नहीं बनाने की बात कही गई थी। इसी आधार पर उसने उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराने की कोशिश की।
इस पर पीठ ने कहा कि बैंक के भर्ती विज्ञापन में यह स्पष्ट कहा गया था कि अभ्यर्थी को एक जनवरी 2016 को किसी हालत में स्नातक नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने दास पर कोई हर्जाना नहीं लगाया लेकिन इतना जरूर कहा कि उसके शरारतपूर्ण कृत्य से एक योग्य व्यक्ति को नौकरी से वंचित होना पड़ा। पीठ ने कहा कि किसी पद के लिए शैक्षिक योग्यता उस संस्था या उद्योग की जरूरतों और हितों को देखते हुए तय की जाती है। इन योग्यताओं को तय करने का काम कोर्ट का नहीं है। लेकिन नियोक्ता भी मनमानेपन या सनक के अनुसार योग्यता तय नहीं कर सकते।