बस्तर दशहरा की छह सौ साल पुरानी परंपरा पर संकट, लकड़ी काटे जाने की परंपरा पर लगाई गई पाबंदी

दशहरा की शुरआत में ककागलुर के ग्रामीण लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा बैलगाड़ी में लादकर दंतेश्वरी मंदिर लाते हैं। इसे ठुरलू खोटला कहा जाता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Sun, 06 Sep 2020 08:29 PM (IST) Updated:Sun, 06 Sep 2020 08:29 PM (IST)
बस्तर दशहरा की छह सौ साल पुरानी परंपरा पर संकट, लकड़ी काटे जाने की परंपरा पर लगाई गई पाबंदी
बस्तर दशहरा की छह सौ साल पुरानी परंपरा पर संकट, लकड़ी काटे जाने की परंपरा पर लगाई गई पाबंदी

अनुराग शुक्ला, जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की 600 साल पुरानी रथ परंपरा पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दशहरा के नाम पर लकड़ी की तस्करी से नाराज ककागलुर पंचायत ने एक सितंबर को ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित कर रथ के लिए लकड़ी काटे जाने पर पाबंदी लगा दी है। बस्तर के इस आदिवासी इलाके में संविधान की पांचवीं अनुसूची और पेसा (पंचायत - अधिसूचित क्षेत्र में विस्तार) कानून लागू है। इसलिए ग्रामसभा के प्रस्ताव का संवैधानिक महत्व है। ग्रामीणों ने इसकी जानकारी बस्तर सांसद और दशहरा समिति के अध्यक्ष दीपक बैज को दे दी है।

दरभा ब्लॉक के वनाच्छादित गांव ककालगुर की पहचान बस्तर दशहरा से है। बस्तर दशहरा में रावण वध की परंपरा नहीं है। यहां आदिवासी आराध्य देवी माई दंतेश्वरी को समर्पित विश्व प्रसिद्ध उत्सव मनाते हैं। इसमें नवरात्र में ककागलुर की लकड़ी से बने विशाल रथ पर माता दंतेश्वरी नगर परिक्रमा करती हैं।

दशहरा की शुरआत में ककागलुर के ग्रामीण लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा बैलगाड़ी में लादकर दंतेश्वरी मंदिर लाते हैं। इसे ठुरलू खोटला कहा जाता है। इसी लकड़ी से रथ का निर्माण शुरू होता है। इसके बाद दशहरा समिति ढाई से तीन मीटर मोटाई वाले सौ वर्ष तक पुराने 60 से 70 वृक्ष कटवाती है।

ग्रामीणों का विरोध इस बात पर है कि दशहरा के नाम पर अनावश्यक वृक्षों की कटाई हो रही है और नए जंगल के विकास की कोई योजना नहीं है। इसकी वजह से जंगल सिमटता जा रहा है। ग्रामीणों ने कई बार दशहरा समिति को इस चिंता से अवगत कराया, पर ध्यान नहीं दिया गया।

पर्यावरण की चिंता

काकगलुर के ग्रामीण घटते जंगल और बिगड़ते पर्यावरण को लेकर जागरूक और चिंतित हैं। उनका कहना है कि हमारे जीवन का मुख्य आधार वनोपज ही है। ग्रामसभा की अनुमति लिए बिना ही रथ लिए लकड़ी काटी जाती है। बड़े पेड़ों का परिवहन करने के लिए बाहर से दो सौ ट्रक लाए जाते हैं। उन्होंने सांसद को बता दिया है कि इसबार जंगल काटने की कोशिश हुई तो विरोध किया जाएगा और उसकी जिम्मेदारी प्रशासन व दशहरा समिति की होगी।

बस्तर के सांसद और दशहरा समिति के अध्यक्ष दीपक बैज ने बताया कि बस्तर दशहरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। ग्रामीणों की समस्या का अकेले समाधान नहीं कर सकता। उनसे कुछ समय मांगा है। मांझी, चालकी, मुखिया, जिला प्रशासन, जनप्रतिनिधि व राज परिवार से चर्चा कर उचित समाधान निकाला जाएगा।  

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