जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव, गन्ने की लोकप्रिय प्रजाति पर मंडरा रहा खतरा; दिखने लगे गंभीर बीमारी के लक्षण

गन्ने में हो रही इस बीमारी का सबसे ज्यादा प्रभाव पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश और बिहार में देखा गया है। इसकी रफ्तार अगर तेज हुई तो आने वाले दिनों में गन्ना किसानों के साथ चीनी उद्योग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Tue, 27 Oct 2020 08:13 PM (IST) Updated:Tue, 27 Oct 2020 08:13 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव, गन्ने की लोकप्रिय प्रजाति पर मंडरा रहा खतरा; दिखने लगे गंभीर बीमारी के लक्षण
जलवायु परिवर्तन और मानसून की अधिक बारिश ने पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश में बीमारी का प्रकोप देखा गया है

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। गन्ना किसानों और चीनी उद्योग की आंखों का तारा बन चुकी सीओ-0238 प्रजाति पर समय से पहले ही खतरा मंडराने लगा है। मानसून में जबर्दस्त बारिश और गन्ना खेतों में पानी जमा होने से इसमें रेड रॉट जैसी फंगल बीमारी के लक्षण दिखने लगे हैं। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश और बिहार में देखा गया है। इसकी रफ्तार अगर तेज हुई तो आने वाले दिनों में गन्ना किसानों के साथ चीनी उद्योग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अचानक बने हालात में गन्ने की वैकल्पिक प्रजाति के बीजों की मांग को पूरा करना आसान नहीं होगा, क्योंकि इस प्रजाति की कवरेज अधिक होने की वजह से अन्य वैकल्पिक प्रजाति वाले गन्ने की खेती कम हो रही है।

रेड रॉट फंगल बीमारी के बारे में सीओ-0238 के जनक डॉक्टर बख्शी राम का कहना है कि यह बीमारी मिट्टी, संक्रमित फसल वाले बीजों और पानी से फैलती है। वैसे तो यह प्रजाति रेड रॉट अवरोधी विकसित की गई है, लेकिन समय के साथ इसके फंगस अपना स्वरूप बदल लेते हैं। इस प्रजाति के एक दशक तक रोग अवरोधी होने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानसून की अधिक बारिश ने पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश में बीमारी का प्रकोप देखा गया है। डॉक्टर राम ने इस तरह की आशंका इस प्रजाति के रिलीज होने के समय ही जता दी थी।

वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक प्रजातियों को लेकर जारी की एडवाइजरी

गन्ने की फसल में इस खतरनाक रोग के लक्षण मिलते ही वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक प्रजातियों को लेकर एडवाइजरी जारी करनी शुरू कर दी है। जिन क्षेत्रों में इसके लक्षण मिले हैं, वहां इनके बीजों के उपयोग पर तत्काल रोक लगा दी गई है। लखनऊ स्थित गन्ना अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉक्टर एडी पाठक ने बताया कि इसकी जगह सीओ-एलके-1420 प्रजाति की खेती का सुझाव दिया गया है। इसकी पैदावार भी बहुत अच्छी है। हालांकि जरूरत के मुताबिक बीजों की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती होगी। डॉक्टर राम ने बताया कि उनके संस्थान ने भी यूपी की कुछ चीनी मिलों को वैकल्पिक प्रजातियां उपलब्ध करा दी हैं। किसानों को भी जागरूक कर साल दर साल नई प्रजातियों को अपनाने पर जोर देना होगा।

केंद्रीय मंत्री डॉक्टर संजीव बालियान का कहना है, 'चीनी उद्योग के रिसर्च एंड डेवलपमेंट से पल्ला झाड़ लेने से इस तरह की गंभीर समस्या पैदा हुई है। चीनी मिलों के पास उन्नतशील बीज तैयार करने के लिए बड़े फार्म और विज्ञानी होते थे, जो अब नहीं हैं। इसलिए आने वाले दिनों में गन्ना बीज बदलने की जरूरत पड़ी तो बहुत बड़ी समस्या हो सकती है। इस दिशा में उद्योग जगत को भी एक बार फिर सोचना होगा।'

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