हिम का हीरोः इस तरह जिंदा बच गए थे हनुमनथप्पा, जानिए इसके पीछे की कहानी

कोमा में पहुंच चुके हनुमनथप्पा का दिल्ली में सेना के रिसर्च एंड रेफरल (आरएंडआर) अस्पताल में शीर्ष डॉक्टर इलाज कर रहे हैं।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Publish:Wed, 10 Feb 2016 11:09 AM (IST) Updated:Thu, 11 Feb 2016 03:05 PM (IST)
हिम का हीरोः इस तरह जिंदा बच गए थे हनुमनथप्पा, जानिए इसके पीछे की कहानी

नई दिल्ली। दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में 35 फीट मोटी बर्फ के नीचे से छह दिन बाद सोमवार को चमत्कारिक ढंग से जीवित मिले लांस नायक हनुमनथप्पा कोप्पड़ की हालत बेहद नाजुक है। डॉक्टरों के मुताबिक, संभव है कि उन्होंने योग के तरीके अपनाकर अपने शरीर की जरूरतों को कम किया होगा और इस तरह छह दिन जिंदा रहे।

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कोमा में पहुंच चुके हनुमनथप्पा का दिल्ली में सेना के रिसर्च एंड रेफरल (आरएंडआर) अस्पताल में शीर्ष डॉक्टर इलाज कर रहे हैं। हनुमनथप्पा के लिए अब पूरा देश प्रार्थना कर रहा है। 3 फरवरी को सियाचिन में हुए हिमस्खलन में भारतीय सेना के 10 जवान बर्फ के नीचे दब गए थे।

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ऐसे बचे होंगे हनुमनथप्पाः

डॉक्टरों के मुताबिक, जिन विपरीत परिस्थितियों में लांसनायक ने खुद को जिंदा रखा, उसका जवाब चिकित्सा विज्ञान के पास नहीं है। लांसनायक की जगह सामान्य आदमी होता तो 2 घंटे में दम तोड़ देता। एक संभावना है कि हादसे के बाद बर्फ के भीतर एयर बबल बन गया होगा। ठंड से लांसनायक बेहोश हो गए होंगे और कार्डियोप्लेजिया की स्थिति में चले गए होंगे। इस स्थिति में शरीर के अंग न्यूनतम काम करते हैं। ऐसे में उनके शरीर ने न्यूनतम ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया होगा। एक संभावना यह भी है कि हनुमनथप्पा ने योग के तौरतरीके अपनाए हों।

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खोजी कुत्तों ने जगाई उम्मीद की किरण 3 फरवरी को 20,500 फीट की ऊंचाई पर 800 गुणा 400 फीट की बर्फ की दीवार टूटी और उत्तरी ग्लेशियर स्थित आर्मी पोस्ट पर भरभराकर गिर गई। सभी जवान करीब 30 फीट मोटी बर्फ की शिला के नीचे दबे हुए थे।150 से अधिक जवान और डॉट व मिशा नामक कुत्ते खोज अभियान में जुटे। उनके साथ ग्लेशियर में विशेष रूप से कार्य करने वाली टीम भी थी।जमीन के भीतर किसी चीज को ढूंढ लेने वाले राडार और विशेष आइस कटिंग मशीन भी लगाई गई। जवान इंच-दर-इंच इस बर्फ को काटने लगे। बचाव कार्य चौबीसों घंटे चला।इन दिनों यहां दिन का तापमान माइनस 30 डिग्री और रात का तापमान माइनस 55 डिग्री से भी कम है।चट्टान तोड़ देने वाली ड्रिल मशीनें, इलेक्ट्रिकल आरी और जमीन खोदने वाले बरमे वायुसेना के विमान और आर्मी एविएशन हेलिकॉप्टर से पहुंचाए गए। राडार और 20 मीटर गहराई तक शरीर की गर्मी पहचान सकने वाले यंत्रों, रेडियो सिग्नल डिटेक्टर की मदद से सटीक लोकशन जानी गई। बीच-बीच में तूफानी हवा ने भी बाधा पहुंचाई, लेकिन सैनिक नहीं डिगे।सोमवार तक टीम उस स्थान तक पहुंच गई थी, जहां सैनिक दबे थे।डॉट और मिशा नामक कुत्तों ने ही इंसानी शरीर की मौजूदगी को इंगित किया और एक सैनिक के शव के बाद हनुमनथप्पा को निकाला गया। हनुमनथप्पा के जिंदा होने की खबर मिलते ही टीम में स्फूर्ति आ गई।वहां मौजूद डॉक्टरों की टीम ने उनके शरीर में गर्म फ्लूड और गर्म ऑक्सीजन पहुंचाई। पहले उन्हें बेस कैंप और फिर दिल्ली लाया गया।

ऐसा है सियाचिन पृथ्वी पर सबसे ऊंचा युद्धस्थल है। दुश्मन से लड़ने के बजाय सैनिक खराब मौसम की वजह से ज्यादा जान गंवाते हैं।1984 के बाद से पिछले 30 सालों में 846 जवान यहां जान गवां चुके हैं।माइनस 60 डिग्री तक तापमान और 5,400 मीटर तक ऊंचाई। वायुमंडलीय दबाव और ऑक्सीजन की भयंकर कमी। मौटे तौर पर आप समझ सकते हैं कि सामान्य क्षेत्रों में मौजूद ऑक्सीजन की सिर्फ 10 प्रतिशत ऑक्सीजन सियाचीन में उपलब्ध होती है।यहां हवा एक सेकंड में 100 मील प्रति घंटे की रफ्तार पार कर जाती है।76 किमी के दायरे में फैला है सियाचिन ग्लेशियर।यहां यदि आप नग्न हाथों से बंदूक के ट्रिगर या नली को 15 सेकंड तक छू लें तो हाथ सुन्न पड़ जाएंगे या आपको शीतदंश हो जाएगा। यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें अत्यधिक ठंड के कारण अंगुलियां या शरीर के अंग गल कर गिर जाते हैं। यही नहीं, ऐसी आप अंगुलियां या अंगूठा भी गवां सकते हैं।मानव शरीर 5400 मीटर से अधिक ऊंचाई पर खुद को अनुकूल नहीं बना पाता। यदि इस ऊंचाई पर आप अधिक समय तक रहते हैं तो आपका वजन कम होने लगता है। आपकी याद्दाश्त खोने लगती है। आपको भूख नहीं लगती, नींद नहीं आती। यानी आपका शरीर क्षय होने लगता है।ताजे फल खाना यहां दुर्लभ है। संतरे या सेब यहां क्रिकेट की बॉल की तरह कठोर हो जाते हैं। यहां सिर्फ डिब्बाबंद भोजन ही खाया जाता है।

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