बाबरी मस्‍जिद के मालिकाना हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में शिया वक्‍फ बोर्ड

बाबरी मस्‍जिद का हक सुन्‍नी बोर्ड को सौंपने के फैसले को शिया बोर्ड ने 71 साल बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

By Monika minalEdited By: Publish:Thu, 10 Aug 2017 10:54 AM (IST) Updated:Thu, 10 Aug 2017 10:54 AM (IST)
बाबरी मस्‍जिद के मालिकाना हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में शिया वक्‍फ बोर्ड
बाबरी मस्‍जिद के मालिकाना हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में शिया वक्‍फ बोर्ड

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। बाबरी मस्‍जिद के मालिकाना हक के लिए कानूनी जंग हारने के 71 सालों बाद उत्‍तर प्रदेश का शिया वक्‍फ बोर्ड बुधवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 30 मार्च 1946 को दिए गए उस ट्रायल कोर्ट आर्डर को चुनौती दी जिसके अनुसार मस्‍जिद को सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का संपत्‍ति बताया गया था।

बोर्ड ने अपनी याचिका में स्‍वीकार किया है कि बाबरी मस्‍जिद का निर्माण मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई होगी और शिया वक्फ बोर्ड ने अदालत को अन्य याचिकाओं के साथ अपनी अपील की सुनवाई का अनुरोध किया है। याचिका दायर करने से एक दिन पहले ही वक्फ बोर्ड ने सहमति जताई थी कि वह विवादित मस्जिद को दूसरी जगह शिफ्ट किए जाने के लिए तैयार है ताकि इस विवाद को खत्म किया जा सके।

वकील एमसी ढिंगरा के जरिए दाखिल किए गए अपनी याचिका में बोर्ड ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट ने बाबरी मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित करके गंभीर गलती की है, क्योंकि इस मस्जिद को शिया मुस्लिम ने बनवाया था। मस्जिद को मुगल बादशाह बाबर ने बनवाया था, इस आम धारणा को चुनौती देते हुए बोर्ड ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर के एक मंत्री अब्दुल मीर बाकी ने अपने पैसों से करवाया था। बाकी एक शिया मुस्लिम थे, जबकि बाबर एक सुन्नी मुसलमान। शिया वक्फ बोर्ड की याचिका में कहा गया है, 'बाबर अयोध्या के नजदीक 5 या 6 दिन ही ठहरे क्योंकि मस्जिद बनवाने में ज्यादा वक्त (मंदिर को तोड़ना और मस्जिद बनाना) लगना था। ट्रायल कोर्ट यह समझने में असफल रहा कि सिर्फ मस्जिद बनने का आदेश दे देना भर ही किसी शख्स को उस प्रॉपर्टी का वाकिफ नहीं बना देता। बाबर ने शायद बाकी को मस्जिद बनवाने कहा हो, लेकिन बाकी ही वह शख्स थे, जिन्होंने जगह की पहचान की और मंदिर गिरवाया ताकि मस्जिद का निर्माण करवाया जा सके।'

शिया बोर्ड का आरोप है कि मस्जिद के बनने के बाद से उसकी देखरेख शिया समुदाय ही कर रहा था लेकिन ब्रिटिश सरकार ने गलत ढंग से 1944 में इसे सुन्नी वक्फ बता दिया। इसके बाद वह 1945 में फैजाबाद सिविल कोर्ट पहुंचे, जिसने उसका दावा खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों को चुनौती देते हुए बोर्ड ने कहा कि मस्जिद में ऐसे शिलालेख मौजूद हैं, जिनपर विस्तार से यह बताया गया है कि बाकी ही इस मस्जिद के निर्माता थे और कोर्ट ने उसके दावे को खारिज करके गंभीर गलती की है।

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