पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों पर फैसले से पहले बहस बेहद जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों पर फैसला देने से पहले इस पर एक बहस होना जरूरी है।

By Kishor JoshiEdited By: Publish:Thu, 24 Aug 2017 09:19 AM (IST) Updated:Thu, 24 Aug 2017 09:19 AM (IST)
पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों पर फैसले से पहले बहस बेहद जरूरी: सुप्रीम कोर्ट
पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों पर फैसले से पहले बहस बेहद जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली (पीटीआई)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों पर फैसला देने से पहले समग्र बहस बेहद जरूरी है। ये मामला व्यापक प्रभाव वाला है। केंद्र व राज्य सरकारों ने इसमें अलग-अलग कानून बना रखे हैं। फैसले से पहले उनको देखना भी जरूरी है। अदालत ने इस मामले में गोपाल सुब्रमण्यम को न्याय मित्र बनाया है। अगली सुनवाई दस अक्टूबर को होगी।

सुप्रीम कोर्ट में एक स्वयंसेवी संस्था ने याचिका दायर की थी। आरोप है कि उप्र में अखिलेश सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराकर कानून बनाया था, जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास में रहने का हक मिल गया।

राजनाथ सिंह, अखिलेश यादव व मायावती अब सत्ता में नहीं हैं, लेकिन उनके पास सरकारी आवास अभी भी है। संस्था ने एक अन्य प्रस्ताव के विरोध में भी याचिका दायर की थी। इसमें सरकारी आवास गैर सरकारी लोगों को देने की बात कही गई है। ये याचिका भी विचाराधीन है। जस्टिस रंजन गोगोई व नवीन सिन्हा की बेंच ने कहा कि इस पर गंभीर सुनवाई की जरूरत है।

उल्लेखनीय है कि लोक प्रहरी संस्था की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में अपने फैसले में कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों का सरकारी आवास में रहना गैर कानूनी है। उन्हें दो माह के भीतर आवास खाली करने को कहा गया था। अदालत ने 1997 के उस कानून को खारिज कर दिया था, जिसमें सत्ता जाने पर भी ताउम्र नेताओं के सरकारी आवास में रहने की बात थी। अदालत ने उप्र सरकार के कानून को गलत करार देते हुए कहा था कि पद जाने के 15 दिन के बाद घर पर कब्जा गैरकानूनी है। अब अदालत सुनवाई कर रही है कि इस पर एक कानून कैसे बनाया जाए, जिसकी पालना सब करें।

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