'लगभग टूट चुकी शादी में जबरदस्ती बांधे रखना भी क्रूरता'
विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर कोर्ट ने मंजूर की पति की तलाक अर्जी। इस मामले में पति-पत्नी दोनों हैं न्यायिक अधिकारी।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले मे कहा है कि तलाक की प्रक्रिया में शामिल होने से इन्कार करना और लगभग टूट चुकी (मृतप्राय) शादी में जबरदस्ती दूसरे पक्ष को बांधे रखना मानसिक क्रूरता है। कोर्ट ने इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 142 में दी गई विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पति की तलाक अर्जी मंजूर कर ली।
ये फैसला न्यायामूर्ति एसए बोबडे व एल. नागेश्वर राव की पीठ ने सुनाया है। इस मामले में पति-पत्नी दोनों न्यायिक अधिकारी हैं। कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने लिखित जवाब दाखिल करने के अलावा न तो ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही में हिस्सा लिया, न ही हाई कोर्ट के अनुरोध पर ध्यान दिया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में पेश होने में भी रुचि नहीं दिखाई। उसका यह व्यवहार दिखाता है कि वह याची (पति) के साथ नहीं रहना चाहती। कोर्ट ने कहा कि तलाक प्रक्रिया में भाग लेने से इन्कार करना और याची को लगभग खत्म हो चुकी शादी में जबरदस्ती बांधे रखना मानसिक क्रूरता है।
कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी 17 वर्षों से अधिक समय से अलग रह रहे हैं। दोनों के साथ रहने की कोई संभावना नहीं है और दोनों को जबरदस्ती शादी के बंधन में बांधे रखने का भी कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पहले भी कई बार जब कोर्ट ने पाया कि दोनों पक्षों के बीच शादी लगभग खत्म हो चुकी है और उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है। शादी भावात्मक रूप से खत्म है, ऐसी स्थिति में कानून में तलाक का यह आधार न होते हुए भी सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल करके तलाक दे चुका है। कोर्ट ने इस बारे में दो पूर्व फैसलों समर घोष और मनीष गोयल मामलों का उदाहरण भी दिया।
इस मामले में निचली अदालत ने तलाक अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि पति क्रूरता का आरोप साबित करने में नाकाम रहा है। हाई कोर्ट ने पाया कि दोनों के बीच समझौते के प्रयास नाकाम रहे और दोनों वर्ष 2000 से अलग रह रहे हैं, लेकिन लगभग टूट चुकी स्थिति में पहुंच गई शादी तलाक का आधार नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन पत्नी मध्यस्थता केंद्र में नहीं पेश हुई।
क्या है मामला
दोनों का विवाह 1992 में हुआ था। उनकी एक बेटी हुई इसके बाद वैवाहिक संबंध खराब होने लगे। पति का आरोप था कि पत्नी उसके बीमार पिता का सम्मान नहीं करती और अच्छा व्यवहार भी नहीं करती। पत्नी ने उसका त्याग कर दिया और बच्ची भी नहीं दी। यही नहीं, जब 2005 में उसने तलाक की कार्यवाही शुरू करनी चाही तो पत्नी ने धमकाया कि अगर तलाक की कार्यवाही जारी रखी तो वह उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दाखिल करेगी। हालांकि, निचली अदालत में पत्नी ने जवाब दाखिल कर आरोपों से इन्कार किया और तलाक का विरोध किया। लेकिन, इसके बाद पत्नी ने कभी भी तलाक के मुकदमे में हिस्सा नहीं लिया। निचली अदालत और हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद पति सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
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