रेलवे बजट के विलय को जल्द आएगा कैबिनेट नोट

वित्त मंत्रालय रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाने के लिए पूरी कोशिश में है। इसको लेकर कैबिनेट नोट जारी किया जा सकता है।

By Manish NegiEdited By: Publish:Tue, 13 Sep 2016 01:29 AM (IST) Updated:Tue, 13 Sep 2016 06:07 AM (IST)
रेलवे बजट के विलय को जल्द आएगा कैबिनेट नोट

नई दिल्ली, (पीटीआई)। वित्त मंत्रालय रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाने के लिए जल्द ही कैबिनेट नोट जारी करेगा। इस नोट में आम बजट एक महीने पहले पेश करने और इसमें योजना व गैर-योजना व्यय की व्यवस्था को खत्म करने संबंधी प्रस्ताव भी शामिल होंगे। इस ड्राफ्ट नोट को कैबिनेट में लाने से पहले अंतर मंत्रालयी चर्चा के लिए पेश किया जाएगा। सितंबर के आखिर तक मंत्रिमंडल में इस पर विचार-विमर्श हो सकता है।

अगर केंद्रीय कैबिनेट वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव पर सहमति जताता है तो आम बजट फरवरी अंत के बजाय जनवरी में पेश किया जा सकता है। मंत्रालय योजना और गैर-योजना व्यय प्रणाली को समाप्त कर इसके स्थान पर पूंजी व राजस्व खर्च की व्यवस्था लाना चाहता है।

सूत्रों के मुताबिक, वित्त मंत्रालय तीनों प्रस्तावों पर इस मकसद से मंजूरी लेना चाह रहा है कि अगले वित्त वर्ष 2017-18 का बजट पेश करते समय इन्हें अमल में लाया जा सके। आम बजट पेश करने को लेकर संविधान में किसी खास तारीख का जिक्र नहीं किया गया है। मोदी सरकार की बजट को जनवरी के आखिरी हफ्ते में पेश करने की योजना है, ताकि बजट पास करने की पूरी प्रक्रिया मार्च के अंत तक पूरी की जा सके। मौजूदा प्रणाली में बजट पेश होने से पारित होने तक 2-3 महीने लग जाते हैं। इससे बजट मई में अमल में आ पाता है। फिलहाल वित्त वर्ष एक अप्रैल से शुरू होता है।

इसके अलावा रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अलग से रेल बजट पेश करने की प्रक्रिया के खात्मे कासमर्थन किया है। प्रभु चाहते हैं कि रेल बजट को आम बजट के साथ मिला दिया जाना चाहिए। इसके पीछे दलील यह है कि रक्षा मंत्रालय जैसे बेहद अहम मंत्रालयों का बजट भी आम बजट में ही शामिल होता है। अंग्रेजों के जमाने से ही भारत में एक अप्रैल से 31 मार्च की लेखा अवधि को अपनाया जा रहा है।

सरकार ने नए वित्त वर्ष की प्रणाली को अपनाने की संभावना को खंगालने के लिए पूर्व आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। इस समिति को अपनी रिपोर्ट 31 दिसंबर, 2016 तक सौंपनी है। इससे पहले मई, 1984 में इसी मुद्दे पर एलके झा कमेटी गठित की गई थी। इस समिति ने वित्त वर्ष की अवधि में बदलाव का सुझाव दिया था। मगर सरकार ने उसकी सिफारिश को स्वीकार नहीं किया था।

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