परियोजना में तब्दील नहीं होते एक तिहाई सर्वे

रेल बजटों में घोषित एक तिहाई सर्वेक्षण कभी परियोजना की शक्ल नहीं ले पाते। दस साल में कुल 704 सर्वेक्षण हुए। इनमें 471 को परियोजना लायक समझा गया। बाकी सर्वे तकनीकी या वित्तीय रूप से व्यावहारिक नहीं पाए जाने के कारण रद करने पड़े। इसके बावजूद कोई भी रेल मंत्री खुद को सर्वेक्षणों की घोषणा से रोक नहीं पाता। यहां तक कि रेलमंत्री सदानंद गौड़ा भी इससे बच नहीं सके हैं। उन्होंने भी वर्ष 2014-15 के रेल बजट में नई लाइन के 1

By Edited By: Publish:Tue, 23 Sep 2014 08:48 AM (IST) Updated:Tue, 23 Sep 2014 08:48 AM (IST)
परियोजना में तब्दील नहीं होते एक तिहाई सर्वे

नई दिल्ली [संजय सिंह]। रेल बजटों में घोषित एक तिहाई सर्वेक्षण कभी परियोजना की शक्ल नहीं ले पाते। दस साल में कुल 704 सर्वेक्षण हुए। इनमें 471 को परियोजना लायक समझा गया। बाकी सर्वे तकनीकी या वित्तीय रूप से व्यावहारिक नहीं पाए जाने के कारण रद करने पड़े। इसके बावजूद कोई भी रेल मंत्री खुद को सर्वेक्षणों की घोषणा से रोक नहीं पाता। यहां तक कि रेलमंत्री सदानंद गौड़ा भी इससे बच नहीं सके हैं। उन्होंने भी वर्ष 2014-15 के रेल बजट में नई लाइन के 18 और दोहरीकरण के 10 सर्वेक्षणों का एलान कर डाला है।

रेल बजटों में सीधे तौर पर घोषित परियोजनाएं तो देर-सवेर पूरी हो जाती हैं, लेकिन सर्वे संबंधी एलानों का कोई सिर-पैर नहीं होता। ये विशुद्ध रूप से राजनीतिक विवशताओं और वोट बैंक संबंधी चिंताओं की उपज होते हैं। ज्यादातर रेल मंत्री इसे समझते भी हैं। फिर भी वे इन्हें अपनी लोकलुभावन घोषणाओं का हिस्सा बनाते हैं। कंजूसी के साथ ही सही, गौड़ा ने भी इसी परिपाटी को निभाया है। अन्यथा उनसे पहले संप्रग सरकार में रेलमंत्री रहे पवन बंसल ने तो 2013-14 के रेल बजट में नई लाइन के 59 और दोहरीकरण के 25 सर्वेक्षण घोषित कर डाले थे।

हालांकि, यह एक तथ्य है कि ज्यादातर सर्वेक्षणों को पूरा करने के बाद रेलवे अफसर इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इन्हें वित्तीय रूप से लाभप्रद अथवा तकनीकी रूप से व्यवहार्य परियोजनाओं में ढालना संभव नहीं है। उनकी इसी राय के आधार पर एक तिहाई से ज्यादा सर्वेक्षण परियोजना रिपोर्ट बनने से पहले ही रद हो जाते हैं। बाकी दो तिहाई में एक तिहाई की परियोजना रिपोर्ट बनने में ही दसियों साल लग जाते हैं। केवल शेष एक तिहाई सर्वेक्षणों पर आधारित परियोजनाओं में ही अगले पांच सालों में काम शुरू हो पाता है। यह अलग बात है कि यह आसानी से पूरा होने का नाम नहीं लेता। यह तो रहा सर्वेक्षणों का हाल। रेल बजटों में नई लाइन, दोहरीकरण और आमान परिवर्तन की सीधे तौर पर घोषित परियोजनाओं के क्रियान्वयन की स्थिति कैसी है, इसका ब्योरा खुद गौड़ा ने 2014-15 के रेल बजट में दिया है। उनके मुताबिक पहले के रेल मंत्रियों ने रेलवे की माली हालत की चिंता किए बगैर परियोजनाओं का एलान किया।

नतीजा यह हुआ कि तीस वर्षो के दौरान घोषित 676 परियोजनाओं में से महज 317 पूरी हो सकीं। पिछले दस सालों में घोषित 99 परियोजनाओं में से तो केवल एक को पूरा किया जा सका है। हालत यह है कि वर्ष 1984-85 से लेकर 2014-15 के बीच विभिन्न रेल बजटों में घोषित तमाम रेल परियोजनाओं में से अभी भी 359 अपूर्ण हैं। इन्हें पूरा करने के लिए एक लाख 82 हजार करोड़ रुपये चाहिए। खास बात यह है कि ऐसी सबसे ज्यादा परियोजनाएं पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे उन राज्यों में हैं, जहां से सबसे ज्यादा राजनेता रेलमंत्री हुए हैं।

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