POCSO Act 2019: बाल यौन शोषण पर मौत की सजा का प्रावधान पर डराते हैं ये आंकड़े

बाल यौन उत्पीड़न रोक (संशोधन) विधेयक (POCSO Act 2019) की मदद से बच्‍चों को भी यौन उत्पीड़न की घटनाओं से बचाया जा सकेगा। इस कानून के प्रावधानों पर एक नजर...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sun, 11 Aug 2019 02:58 PM (IST) Updated:Sun, 11 Aug 2019 03:58 PM (IST)
POCSO Act 2019: बाल यौन शोषण पर मौत की सजा का प्रावधान पर डराते हैं ये आंकड़े
POCSO Act 2019: बाल यौन शोषण पर मौत की सजा का प्रावधान पर डराते हैं ये आंकड़े

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। बाल यौन उत्पीड़न रोक (संशोधन) विधेयक (पोक्सो एक्ट) लोकसभा से 01 अगस्त को और राज्यसभा से 24 जुलाई को पारित हो गया है। इस कानून में बच्चों के साथ गंभीर यौन दुव्र्यवहार के दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा बच्चों के प्रति यौन अपराधों को लेकर नियमों को सख्त किया गया है। इस नये प्रावधान के तहत बच्चियों को ही नहीं बल्कि बालकों को भी यौन उत्पीड़न से बचाया जा सकेगा। आइये डालते हैं इस कानून के प्रावधानों पर एक नजर...

मिलेगी मौत की सजा
इस नये कानून के तहत बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वाले दोषियों को उम्रकैद के साथ मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। कानून में बच्चों का यौन उत्पीड़न करने के उद्देश्य से उन्हें दवा या रसायन आदि देकर जल्दी युवा करने को गैर जमानती अपराध बनाया गया है, जिसमें पांच साल तक की कैद का प्रावधान है। कानून में बच्चों का यौन उत्पीड़न करने के उद्देश्य से उन्हें दवा या रसायन आदि देकर जल्दी युवा करने को गैर जमानती अपराध बनाया गया है, जिसमें पांच साल तक की कैद का प्रावधान है।

क्या है पोक्सो एक्ट
2012 में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए पोक्सो एक्ट बनाया गया था। इस कानून के जरिए बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। यह कानून बच्चों को यौन शोषण, यौन दुव्र्यवहार और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई हैं। देश भर में लागू होने वाले इस कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष कोर्ट में कैमरे के सामने बच्चे के मातापिता की मौजूदगी में होती है।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी की परिभाषा तय
कानून में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की परिभाषा तय की गई है, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी की फोटो, वीडियो, कार्टून या फिर कंप्यूटर जेनरेटेड इमेज को इसके तहत दंडनीय अपराध की जद में लाया गया है। इससे जुड़ी सामग्री रखने पर 5 हजार से लेकर 10 हजार रुपये तक के जुर्माने के दंड की व्यवस्था की गई है। लेकिन अगर कोई ऐसी सामग्री का व्यवसायिक इस्तेमाल करता है तो उसे जेल की सख्त सजा होगी।

यूपी में सबसे गंभीर हालात
बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की पहल पर एक सूची तैयार कराई गई थी। इसमें उत्तर प्रदेश 3457 मुकदमों के साथ सबसे ऊपर है। मध्य प्रदेश 2389 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर जबकि नौ मुकदमों के साथ नगालैंड सबसे नीचे है। इससे इतर एनसीआरबी की 2016 रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के साथ शारीरिक दुर्व्यहार के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। साल 2016 में उत्तर प्रदेश में बच्चों के साथ शारीरिक दुर्व्यहार की 2,652 घटनाएं, महाराष्ट्र में 2,370 जबकि मध्य प्रदेश में 2,106 मामले सामने आए। जम्‍मू-कश्‍मीर में महज दो घटनाएं सामने आईं।   

सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे ये निर्देश  
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि वह हर जिले में POCSO न्यायालयों की स्थापना करें। इनकी स्थापना ऐसे जिलों में की जानी चाहिए जहां POCSO अधिनियम के तहत 100 या उससे अधिक मामले लंबित हैं। कोर्ट ने कहा कि विशेष अदालतों को 60 दिनों के अंदर-अंदर बच्चों पर यौन उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई शुरु करने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि वह चार हफ्तों में इसकी प्रगति रिपोर्ट दाखिल करें।

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