छग में नक्सल मोर्चे पर तैनात पुलिस जवानों को अवकाश देने का प्रस्ताव

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि नक्सल इलाकों में पदस्थ जवानों को हर तीन महीने में एक बार आठ दिन की एकमुश्त छुट्टी दी जानी चाहिए।

By Manish NegiEdited By: Publish:Tue, 29 Jan 2019 10:12 PM (IST) Updated:Tue, 29 Jan 2019 10:12 PM (IST)
छग में नक्सल मोर्चे पर तैनात पुलिस जवानों को अवकाश देने का प्रस्ताव
छग में नक्सल मोर्चे पर तैनात पुलिस जवानों को अवकाश देने का प्रस्ताव

नई दुनिया, रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार नक्सल इलाकों में पदस्थ जवानों की बेहतरी के लिए कई विशेष सहूलियतें देने पर विचार कर रही है। पुलिस कर्मियों की मांगों पर विचार करने के लिए गठित नेहा चंपावत कमेटी ने 17 जनवरी को अपनी रिपोर्ट डीजीपी डीएम अवस्थी को सौंपी है। इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि नक्सल इलाकों में पदस्थ जवानों को हर तीन महीने में एक बार आठ दिन की एकमुश्त छुट्टी दी जानी चाहिए।

दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन नई दुनिया ने पहले ही बताया था कि नक्सल मोर्चे पर तैनात जवान साप्ताहिक अवकाश की बजाय हर महीने एकमुश्त चार दिन का अवकाश चाहते हैं। एक दिन का अवकाश मिलने पर जंगल से जवान निकल भी नहीं पाएंगे। जवानों की इस मांग को देखते हुए तीन महीने में एक बार में आठ दिन का अवकाश देने का प्रस्ताव दिया गया है। कमेटी ने मैदानी इलाकों और थानों में पदस्थ जवानों को वीकली ऑफ देने का प्रस्ताव दिया है।

गौरतलब है कि पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले पुलिसकर्मियों के परिवारों ने अपनी मांगों को लेकर बड़ा आंदोलन शुरू किया था। तब तत्कालीन सरकार ने उनके आंदोलन को कुचल दिया था। कई पुलिस कर्मियों के परिजनों को जेल भी भेजा गया था। इसके बाद नेहा चंपावत की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। पुलिस आंदोलन को देखते हुए कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में पुलिस कर्मियों के लिए कई वादे किए थे। अब नई सरकार को चंपावत कमेटी की रिपोर्ट भेजने की तैयारी की जा रही है। आगामी बजट में पुलिस कर्मियों की कई मांगों के संबंध में घोषणा हो सकती है।

चंपावत कमेटी की सिफारिशें
-चंपावत कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर जिले में एक साइकोलाजिस्ट की नियुक्ति की जानी चाहिए ताकि जवानों को तनाव से बचाया जा सके।

-रेंज मुख्यालय स्तर पर सरकारी अस्पताल में हर सप्ताह कम से कम दो दिन स्त्री रोग विशेषज्ञ और फिजियोथेरेपी विशेषज्ञ उपलब्ध हों। बाद में यह सुविधा जिला स्तर पर सुनिश्चित की जाए।

-माओवादी इलाकों में पदस्थ जवानों के लिए वर्तमान वेतन में अपने परिवार को शहर में रखना मुश्किल हो रहा है। उनके हाउस रेंट अलाउंस को सात से बढ़ाकर 15 फीसद करने की सिफारिश की गई है। कहा गया है कि आंध्र और तेलंगाना में माओवादी इलाकों में पदस्थ जवानों को 30 फीसद गृह भाड़ा भत्ता मिलता है। इन इलाकों में जवानों को 10 फीसद रिस्क अलाउंस भी दिया जाना चाहिए।

-वर्तमान में पुलिस बल में महिला कांस्टेबल और सब इंस्पेक्टर की संख्या करीब नौ फीसद है। इसे 30 फीसद तक बढ़ाने का प्रस्ताव है। हर थाने में महिला ट्रांजिट हास्टल और मेस की व्यवस्था हो। महिलाओं के लिए अलग टायलेट की सुविधा भी की जाए।

-जवानों का भोजन भत्ता और डेली अलाउंस बढ़ाने की सिफारिश की गई है। पुलिस कर्मियों के मेधावी बच्चों के लिए राजधानी रायपुर में स्कूल खोलने की जरूरत है।

-हर पुलिस थाने में एक सूचना और तकनीकी अधिकारी की नियुक्ति की जाए। जिलों में एसपी के साथ एक कानून अधिकारी की नियुक्ति का प्रस्ताव भी दिया गया है।

अब आगे क्या
पुलिस अफसरों के अनुसार, चंपावत कमेटी की सिफारिशें लागू हुई तो पुलिस सुधार की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। जो सिफारिशें की गई हैं उनका परीक्षण किया जा रहा है। कुछ सिफारिशें जैसे साप्ताहिक अवकाश ऐसी हैं जिन्हें डीजीपी स्तर से ही लागू किया जा सकता है, लेकिन जवानों की संख्या बढ़ाने या नए पद सृजित करने जैसी सिफारिशों को लागू करने के लिए वित्त विभाग की अनुमति की जरूरत होगी। डीजीपी इस रिपोर्ट का परीक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपेंगे। सरकार जो काम अभी करने की स्थिति में होगी उसे इसी साल के बजट में शामिल कर लिया जाएगा। 

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