जब चर्च ने अवैध तरीके से बेंगलुरु मेट्रो को बेच दी सेना की जमीन, जानें- फिर क्या हुआ

चर्च ऑफ साउथ एशिया (CSI) पर आरोप है कि बिना रक्षा मंत्रालय की जानकारी व सहमति के जमीन राज्य सरकार की बेंगलुरु मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (BMRCL) को बेच दी।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Sun, 01 Sep 2019 09:39 PM (IST) Updated:Sun, 01 Sep 2019 10:55 PM (IST)
जब चर्च ने अवैध तरीके से बेंगलुरु मेट्रो को बेच दी सेना की जमीन, जानें- फिर क्या हुआ
जब चर्च ने अवैध तरीके से बेंगलुरु मेट्रो को बेच दी सेना की जमीन, जानें- फिर क्या हुआ

बेंगलुरु, आइएएनएस। रक्षा मंत्रालय ने चर्च ऑफ साउथ एशिया (CSI) के खिलाफ सेना की जमीन अवैध तरीके से बेंगलुरु मेट्रो को बेचने तथा 60 करोड़ रुपये का मुआवजा हासिल करने की शिकायत की है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।

कब्बन पार्क थाने में 20 अगस्त को CSI के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई है। रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय ने CSI पर अपनी 7,426 वर्गमीटर जमीन को धोखे से बेचने का आरोप लगाया है। यह जमीन ऑल सेंट चर्च कांप्लेक्स में स्थित है। आरोप है कि बिना रक्षा मंत्रालय की जानकारी व सहमति के जमीन राज्य सरकार की बेंगलुरु मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (BMRCL) को बेच दी गई। दरअसल, BMRCL उस जमीन पर भूमिगत स्टेशन का निर्माण कर रही है और ऊपर की जमीन का इस्तेमाल पार्किग आदि के लिए करना चाहती है।

बेंगलुरु पुलिस कर रही हैं जांच
बेंगलुरु (मध्य) के पुलिस उपायुक्त चेतन सिंह राठौर ने कहा, 'हम लोग रक्षा मंत्रालय की उस शिकायत की जांच कर रहे हैं, जिसमें उसने कहा है कि CSI ने काफी पहले लीज पर दी गई उसकी जमीन का एक हिस्सा बेचकर मुआवजा हासिल कर लिया है।'

उन्होंने कहा, 'हमने दोनों पक्षों से जमीन के मालिकाना हक से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा है। दस्तावेज बताते हैं कि वर्ष 1860 के दौरान ब्रिटिश शासन में इस सार्वजनिक संपत्ति के मालिक मैसूरु के वोडेयार शासक थे।' राठौर ने कहा, 'प्रारंभिक जांच में पता चला है कि दोनों पक्षों ने जमीन के मालिकाना हक को लेकर शहर के दीवानी न्यायालय में वाद दाखिल किया है। इस मामले में कार्रवाई शुरू करने से पहले हम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे।'

खरीद से पहले जारी हुआ था नोटिस
BMRCL के प्रवक्ता का कहना है कि भूमि खरीद से पहले आपत्ति के लिए नोटिस जारी किया गया था। उधर, चर्च के अधिकारियों का कहना है कि ब्रिटिश शासन में ईस्ट इंडिया कंपनी छावनी क्षेत्र की जमीन की मालिक थी। उनका दावा है कि संबंधित जमीन ब्रिटिश काल में ही उन्हें दी गई थी।

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