निजी अस्पतालों ने सीजेरियन डिलीवरी को बनाया धंधाः मेनका गांधी

केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि आम लोगों को जागरूक होना होगा। महिलाओं को समानता का हक मिलना चाहिए।

By Srishti VermaEdited By: Publish:Mon, 24 Apr 2017 10:36 AM (IST) Updated:Mon, 24 Apr 2017 11:30 AM (IST)
निजी अस्पतालों ने सीजेरियन डिलीवरी को बनाया धंधाः मेनका गांधी
निजी अस्पतालों ने सीजेरियन डिलीवरी को बनाया धंधाः मेनका गांधी

नई दिल्ली (जेएनएन)। पशु-पक्षियों और पर्यावरण के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी इन दिनों महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर बेबाकी से बोल रही हैं। शनिवार को मेनका पक्षियों को तपतपाती गर्मी में दाना-पानी देने के लिए जागरूक करने के कार्यक्रम प्रोजेक्ट पंछी में फरीदाबाद पहुंची। यहां पर्यावरण मंत्री विपुल गोयल के निवास पर मेनका गांधी से फरीदाबाद के मुख्य संवाददाता बिजेंद्र बंसल ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर उनसे विस्तृत बातचीत की, प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:

-आपने निजी नर्सिंग होम व अस्पतालों में सीजेरियन डिलीवरी के बोर्ड लगाने की बात कही, क्या यह संभव हो पाएगा?

जवाब : क्यों नहीं, यह होगा, जरूर होगा। निजी अस्पतालों व नर्सिंग होम ने सीजेरियन डिलीवरी को धंधा बना लिया है। इसके दुष्प्रभाव यह आ रहे हैं कि सीजेरियन दो ही बच्चे हो पाते हैं। जो परिवार ज्यादा बच्चे करना चाहते हैं, उनके रास्ते बंद हो जाते हैं। मैंने तो प्रधानमंत्री जी से भी इस बाबत बात कर ली है। केंद्र सरकार चिकित्सा सेवा को सस्ता करने के प्रयास में जुटी है। डॉक्टरों से जेनरिक दवा लिखवाने और स्टेंट के दाम में कटौती करना इसी के तहत सार्थक प्रयास हैं। एक साल में कितनी सीजेरियन डिलीवरी की, इसके आंकड़े भी नर्सिंग होम व निजी अस्पतालों के प्रबंधकों को बोर्ड पर लिखवाने होंगे। ताकि वहां डिलीवरी करवाने आने वालों को डॉक्टरों की योग्यता का पता चले। मुझे दुख तमिलनाडु के आंकड़े देखकर हुआ। वहां गत वर्ष 70 फीसद डिलीवरी सीजेरियन हुईं जबकि यह आंकड़ा 10 फीसद से अधिक नहीं होना चाहिए।

-आपकी नजर में महिलाओं को समानता का दर्जा कैसे मिलेगा?

जवाब : इसके लिए एक नहीं अनेक कार्य करने होंगे। व्यवस्था में महिलाओं की वहां हिस्सेदारी करनी होगी जहां प्राथमिक स्तर पर न्याय होता है। मेरा मानना है कि प्राथमिक न्याय पुलिस में होता है। इसलिए मैं मानती हूं कि यदि पुलिस में महिलाओं की 33 फीसद हिस्सेदारी हो तो निश्चित तौर पर महिलाओं को समानता का हक मिलेगा। पुलिस में महिलाओं की संख्या तो मेरे हिसाब से जनप्रतिनिधियों में भी आरक्षण से ज्यादा जरूरी है।

-आपने फिल्मों में हिंसा को सीधे महिलाओं पर अत्याचार से जोड़ दिया, ऐसा क्यों?

जवाब : देखिए, जब फिल्मों में सलमान की नकली बहादुरी देखकर आज का युवा असल जीवन में नकल कर रहा है तो फिर तीन घंटे की फिल्म में हिंसा सीखकर व्यक्ति के दिलो-दिमाग पर हिंसा नहीं छाई रहेगी। हमेशा हिंसा कमजोर पर होती है। महिला समाज का कमजोर हिस्सा है, इसलिए घरेलू हिंसा के मामले ज्यादा बढ़ रहे हैं। मैंने तो फिल्मकारों को यह भी कहा है कि वे प्रेम-प्यार व वात्सल्य पर आधारित फिल्में बनाएं। ये फिल्में सदाबहार रहती हैं।

-आपने आवारा पशुओं खासतौर पर कुत्तों से निजात के लिए कुछ कारगर कदम नहीं उठाए।

जवाब : नहीं ऐसा नहीं है। मैंने हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग को केंद्र से 30 करोड़ रुपये कुत्तों की नसबंदी के लिए पायलट प्रोजेक्ट के लिए दिलवाए। फतेहाबाद जिला से शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को आगे अन्य जिलों में बढ़ाया ही नहीं गया। यदि केंद्र के इस पायलट प्रोजेक्ट को हरियाणा में उदाहरण बनाया जाता तो यह देश भर में लागू होता। खुले में घूमने वाली गाय व सांड से भी निजात के लिए राज्य व स्थानीय निकाय ही ज्यादा बेहतर काम कर सकती हैं। मेरा सवाल है कि खुले में घूम रही गाय को यदि एक बार पकड़कर स्थानीय निकाय मोटा जुर्माना लगाए तो क्या गाय का मालिक दोबारा उसे खुले में छोड़ेगा। अब हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी।

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