अब आकाशीय बिजली की भविष्यवाणी संभव, हर साल वज्रपात से होती है हजारों मौतें
हर साल आकाशीय बिजली से हजारों लोगों की जान चली जाती है। वैज्ञानिकों की मानें तो 40 मिनट पहले ही बिजली गिरने की भविष्यवाणी संभव है। मौसम विभाग ने ऐसा करना शुरू कर दिया है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। हर साल मानसून सीजन के दौरान उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, झारखंड सहित देश के कई राज्यों में बिजली गिरने से 2000 से 2500 लोगों की जानें जाती हैं। कई लोग इसे ईश्वरीय आपदा मानते हैं। वहीं, कई लोगों में यह जानने की जिज्ञासा है कि आकाशीय बिजली कैसे उत्पन्न होती है और धरती से कैसे टकराती है? इसी पर गैर-लाभकारी संगठन क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल (सीआरओपीसी) ने अपनी तरह की पहली रिपोर्ट जारी की है।
बिजली गिरने की घटनाएं
रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल भारत में अप्रैल से जुलाई के बीच चार महीनों की अवधि में कम से कम 1,311 मौतें बिजली के गिरने से हुई हैं। इसी अवधि के दौरान 65.55 लाख बिजली गिरने की घटनाएं सामने आईं। इनमें से 23.53 लाख (36 फीसद) घटनाएं क्लाउड-टू-ग्राउंड लाइटनिंग के रूप में हुई, जो पृथ्वी पर पहुंचती है और 41.04 लाख (फीसद) घटनाएं इन-क्लाउड लाइटनिंग के रूप में हुईं, जो बादलों तक ही सीमित रहती है।
40 मिनट पहले भविष्यवाणी संभव
वैज्ञानिकों को क्लाउड-लाइटनिंग स्ट्राइक के अध्ययन और निगरानी से पता चला है कि धरती पर आकाशीय बिजली गिरने से 30-40 मिनट पहले भविष्यवाणी करना संभव है। इससे कई लोगों की जान बच सकती है। 16 राज्यों में एक पायलट प्रोजेक्ट को अंजाम देने के बाद भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस वर्ष से मोबाइल संदेशों के माध्यम से आकाशीय बिजली के पूर्वानुमान और चेतावनी प्रदान करना शुरू कर दिया है। हालांकि, यह अभी तक सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं है।
नौ लाख से अधिक घटनाएं
रिपोर्ट में बताया गया है कि ओडिशा में बिजली गिरने की नौ लाख से अधिक घटनाएं दर्ज की गईं, जो किसी भी राज्य के लिए सबसे अधिक है। वहीं, उत्तर प्रदेश में ऐसी 3.2 लाख घटनाएं दर्ज की गईं। इस रिपोर्ट को तैयार करने की पीछे कई उद्देश्य रहे। मसलन आकाशीय बिजली के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने की दिशा में ध्यान खींचना, जागरूकता फैलाना और इन घटनाओं से हो रहीं मौतों को रोकने में मदद करना।
धरती पर ऐसे गिरती है बिजली
पृथ्वी विद्युत का एक सुचालक है। विद्युत रूप से तटस्थ रहते हुए, यह बादल की मध्य परत की तुलना में अपेक्षाकृत सकारात्मक रूप से चार्ज होती है। इसके परिणामस्वरूप 20 से 25 फीसद बिजली धरती पर गिरती है।
आकाशीय बिजली कैसे बनती है?
वायुमंडल में विद्युत आवेश का डिस्चार्ज होना और उससे उत्पन्न कड़कड़ाहट को आकाशीय बिजली कहते हैं। ये सभी बिजली धरती से नहीं टकराती है। इनमें से बहुत सी बादलों में ही चमकती रहती है। बिजली उत्पन्न करने वाले बादल आमतौर पर लगभग 10-12 किमी की ऊंचाई के होते हैं, जिनका आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी होता है। शीर्ष पर तापमान -35 डिग्री सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है। चूंकि जल वाष्प बादल में ऊपर की ओर बढ़ती है, तापमान में कमी के कारण यह संघनित पानी में बदली जाती है।
बेहद अहम है संघनन की प्रक्रिया
संघनन की प्रक्रिया में भीषण गर्मी उत्पन्न होती है, जिससे पानी के अणुओं को और ऊपर धकेल दिया जाता है। जैसे-जैसे वे शून्य से नीचे के तापमान की ओर बढ़ते हैं, बूंदें बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती हैं। जब तक वे और ऊपर की ओर बढ़ते रहते हैं, वे बड़े पैमाने पर इकट्ठा होते हैं और फिर वे इतने भारी हो जाते हैं कि नीचे उतरना शुरू कर देते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया की ओर ले जाता है जहां छोटे बर्फ के क्रिस्टल ऊपर की ओर बढ़ते हैं, जबकि भारी और बड़े क्रिस्टल नीचे आते हैं। इस दौरान दोनों के टकराने से इलेक्ट्रॉन उत्पन्न होते हैं।
विपरीत ऊर्जा वाले बादलों की टक्कर से पैदा होती है बिजली
ये फ्री इलेक्ट्रॉन आपस में टकराते हैं और अधिक इलेक्ट्रॉन का कारण बनते हैं। इस निरंतर प्रक्रिया से एक चेन रिएक्शन बनती। इस प्रक्रिया से ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, जिसमें बादल की ऊपरी परत सकारात्मक रूप से चार्ज हो जाती है, जबकि मध्य परत नकारात्मक रूप से चार्ज होती है। इसके बाद दोनों विपरीत एनर्जी वाले बादल आपस में तेज गति से टकराते हैं और इनके टकराने की आवाज हमें सुनाई देती है। साथ ही इनके टकराने पर जो घर्षण होता है उसी से बिजली पैदा होती है।