छत्तीसगढ़ में लाल आतंक से मुक्ति, ई-रिक्शा की स्टेयरिंग संभालकर महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

दंतेवाड़ा में रफ्तार पकड़ते विकास की नई तस्वीर, ई-रिक्शा चला गृहस्थी चला रहीं आदिवासी महिलाएं, जुड़ रहीं मुख्य धारा से

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 13 Jan 2018 08:59 AM (IST) Updated:Sat, 13 Jan 2018 03:25 PM (IST)
छत्तीसगढ़ में लाल आतंक से मुक्ति, ई-रिक्शा की स्टेयरिंग संभालकर महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर
छत्तीसगढ़ में लाल आतंक से मुक्ति, ई-रिक्शा की स्टेयरिंग संभालकर महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

योगेंद्र ठाकुर, दंतेवाड़ा।आदिवासी महिलाओं का जिक्र आते ही जेहन में तस्वीर उभर आती है, जिसमें जंगल होता है, पगडंडियां होती हैं, और उन पर लकड़ियों का बोझा सिर पर रख कदमताल करतीं कुछ महिलाएं...। लेकिन अब आप दंतेवाड़ा पहुंचेंगे तो नई तस्वीर देखने को मिलेगी। दंडकारण्य में रफ्तार पकड़ते विकास की मुकम्मल तस्वीर।

नक्सलवाद से बुरी तरह प्रभावित रहे दंतेवाड़ा में आपको सैकड़ों ई-रिक्शे दौड़ते मिल जाएंगे। गांवों से ब्लाक को, ब्लाक से तहसील को और तहसीलों से शहर को।

हर दूसरे ई-रिक्शे की ड्राइविंग सीट पर आदिवासी महिला को देखा जा सकता है, जो विकास की मुख्य धारा संग फर्राटे भरने को आतुर हैं। कुछ दशकों से नक्सलवाद इनकी इस राह में बाधा डाल रहा था। यह उस बाधा के टूट जाने का पुख्ता संकेत है।

यही है विकास की मुख्यधारा
यहां इन सैकड़ों आदिवासी महिलाओं का इस तरह अपने पैरों पर खड़े होना कोई मामूली बात नहीं क्योंकि बात हो रही है घनघोर जंगलों के बीच नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा की। लेकिन इन महिलाओं ने सभी प्रतिकूलताओं को मानो पीछे छोड़ दिया है। वे स्वावलंबी बन अपने परिवार को विकास की मुख्यधारा से जोड़ पाने में सक्षम हुई हैं। अपने बच्चों को समुचित शिक्षा दिलाना चाहती हैं।

तमाम नागरिक सुविधाओं को समझ पाने और उनका लाभ उठाने को जागरूक हो रही हैं। विकास की मुख्य धारा से जुड़ना इसे ही कहते हैं, जो अब यहां शुरू हो चुका है। यह दरअसल नक्सलवाद के खात्मे का स्पष्ट संकेत है।

बन गई बात

कुछ समय पहले तक ये आदिवासी महिलाएं घरेलू कामों के अलावा, खेतों-खलिहानों में हाड़तोड़ मेहनत करती थीं। पसीना बहाने के बाद बमुश्किल चूल्हा जलता था।

लेकिन ई-रिक्शा ने उनकी जिंदगी में बहार ला दी। आज हाल यह है कि जिला मुख्यालय हो या फिर अंदरूनी इलाका, दंतेवाड़ा की सड़कों पर हर ओर ई-रिक्शा दौड़ाती महिलाएं नजर आ जाएंगी। तीन माह में ही जिले की 100 से अधिक महिलाओं ने स्वरोजगार के रूप में यह काम संभाला है।

महिलाओं की सफलता में जिला प्रशासन की अहम भूमिका है। ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सबसे पहले प्रशासन ने उनका समूह बनाया।

प्रत्येक समूह को अनुदान पर दो-दो ई-रिक्शा उपलब्ध कराए और चलाने का प्रशिक्षण दिया। आज महिलाएं रोजाना पांच सौ से हजार रुपए तक की आमदनी कर घर-परिवार चला रही हैं।

क्या कहती हैं सरिता: ई-रिक्शा चलाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रशंसा पाने वाली ग्राम भोगाम की सरिता बताती हैं कि पहले साइकिल चलाने में भी संकोच लगता था, लेकिन प्रशिक्षण के बाद जब ई-रिक्शे को दौड़ाया तो सब ठीक हो गया। वाहन हल्का होने से कच्चे व संकरे रास्तों तक भी आसानी से पहुंच जाता है। इससे प्रदूषण भी नहीं होता।

वे बताती हैं, प्रशासन ने समूह बना दिया, समूह की महिलाओं के दिन तय हैं। दिन भर की कमाई का एक निश्चित हिस्सा समूह को जाता है। सरिता कहती हैं कि सैलानी महिलाओं को ई-रिक्शा में बैठाना उन्हें ज्यादा पसंद है। महिलाओं की ड्राइविंग पर उन्हें भी अधिक भरोसा है। प्रधानमंत्री से दिल्ली में मिली थी।

सराहना: अक्टूबर 2016 में दिल्ली में लगी एक प्रदर्शनी में दंतेवाड़ा का ई-रिक्शा भी शामिल था। इस मौके पर वहां मौजूद सरिता से पीएम मोदी रू-ब-रू हुए थे। उन्होंने इस समूह की महिलाओं को जमकर सराहा था। इस दौरान सरिता ने उन्हें बताया था कि नीति आयोग से पहुंचे सलाहका

नारी सशक्तीकरण के लिए जिले में कृषि, मधुमक्खी व कुक्कुट पालन के साथ ई-रिक्शा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आदिवासी महिलाएं ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रही हैं। इस तरह के प्रयासों को और तेज किया जाएगा। इन महिलाओं की सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है।

-सौरभ कुमार, कलेक्टर, दंतेवाड़ा

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