गरीब मछुआरों के बच्चों ने गांव के तालाब में तैरना सीख भरी ओलंपिक की ऊंची उड़ान

छत्तीसगढ़ में रायपुर के पुरई गांव के लिए इस बरस दिवाली बेहद खास थी। हर चेहरा उम्मीद की रोशनी से दमक रहा था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 13 Nov 2018 12:36 PM (IST) Updated:Tue, 13 Nov 2018 12:36 PM (IST)
गरीब मछुआरों के बच्चों ने गांव के तालाब में तैरना सीख भरी ओलंपिक की ऊंची उड़ान
गरीब मछुआरों के बच्चों ने गांव के तालाब में तैरना सीख भरी ओलंपिक की ऊंची उड़ान

दीपक शुक्ला, रायपुर। छत्तीसगढ़ में रायपुर के पुरई गांव के लिए इस बरस दिवाली बेहद खास थी। हर चेहरा उम्मीद की रोशनी से दमक रहा था। दुर्ग जिले का यह गांव गरीब मछुआरों का बसेरा है। गांव में एक तालाब भी। डोंगिया तालाब। छोटा सा यह तालाब मानो बच्चों का प्लेग्राउंड है। होश संभालते ही वे इसमें छलांग लगाते और तैराक बन जाते। अपनी इस प्रवीणता के बूते तैराकी में कुछ कर दिखाने का सपना देखते।

बात पिछले साल की है। ग्राम पंचायत ने तालाब में दो गंदे नाले जोड़ दिए। बच्चों का तैरना दूभर हो गया। विरोध किया, लेकिन किसी ने न सुनी। बच्चे आंदोलित हो उठे। तालाब किनारे ही जल सत्याग्रह पर बैठ गए। सत्याग्रह करीब सात दिनों तक चला। छोटे-छोटे बच्चों के इस बड़े जज्बे की गूंज दिल्ली तक पहुंची और नई राह खुल गई। आज गांव के एक दर्जन बच्चे गांधीनगर, गुजरात स्थित अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्वीमिंग अकादमी में दाखिला पा चुके हैं तो दूसरे बच्चों के लिए भी रास्ता बन गया है। अब वे ओलंपिक, एशियाड सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए दीर्घकालीन प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

आसान न था गांव छोड़कर गुजरात जाना...

दिवाली मनाने जब बच्चे गांव लौटे तो खुशियों का सैलाब उमड़ आया। गजब का उत्साह। गांव की महिलाएं और युवा ही नहीं, दादा-दादी भी होनहारों का भविष्य संवरता देख भावविभोर थे। गांव के बुजुर्ग बलीराम ओझा व कलीराम ओझा की खुशी को देख खुद परिजन भी दंग थे। बच्चों ने बताया कि दादा पहले पटाखे से दूर रहने की नसीहत देते थे। आज वे खुद हमारे साथ फुलझड़ियां छुड़ा रहे हैं। दादा को इतना खुश हमने पहले कभी नहीं देखा...। दरअसल, बाहरी दुनिया से अनजान इन बच्चों के लिए गांव छोड़कर गुजरात जाना उतना आसान नहीं था, लेकिन ये इनका जुनून ही था जो इन्हें वहां ले गया। परिवार वालों ने भावनाओं पर नियंत्रण रख इन्हें विदा किया था।

यह बच्चों के जज्बे की जीत...

ग्रामीण वंचित वर्गों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए छत्तीसगढ़ में सक्रिय स्वयंसेवी संस्था जनसुनवाई फाउंडेशन के राज्य समन्वयक संजय कुमार मिश्रा बताते हैं कि पुरई गांव में संस्था ने जनपंचायत व बालपंचायत कार्यक्रमों का आयोजन किया था। बालपंचायत में बच्चों ने तालाब के प्रदूषण को लेकर अपनी समस्या बताई। तब हमने बच्चों को बताया कि वे स्वत: कैसे इसका समाधान कर सकते हैं। उन्हें साथ लेकर जिलाधिकारी कार्यालय जाया गया। तालाब को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए बच्चों ने जिलाधिकारी को आवेदन दिया, किंतु जब कुछ न हुआ तो राज्य सरकार को आवेदन भेजा। फिर भी कुछ न हुआ तो प्रधानमंत्री कार्यालय को चिट्ठी भेजी। सोशल मीडिया पर भी बच्चों ने अपनी बात रखी। फिर भी कुछ न हुआ तो बच्चे निराश हो उठे। तब उन्हें गांधी के सत्याग्रह का पाठ पढ़ाना पड़ा।

दंग रह गई थी साई की टीम...

साई प्रभारी, छत्तीसगढ़ गीता पंत बताती हैं, जब हमारी टीम गांव पहुंची तो बच्चों ने तालाब में ही ट्रायल लेने की जिद की। तालाब गंदा था, लेकिन बच्चों की जिद पर हमने वहीं ट्रायल लिया। बच्चों ने ऐसी तैराकी दिखाई कि हम दंग रह गए। हमने अपनी रिपोर्ट खेल मंत्रालय को दिल्ली भेजी, जिस पर अमल हुआ। साई के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब साई ने खुद गांव पहुंचकर प्रतिभाओं को सेलेक्ट किया। गांव के ही युवा तैराक और बच्चों के प्रथम कोच ओम ओझा कहते हैं, उच्चस्तरीय प्रशिक्षण, खुराक और सुविधाएं पाकर बच्चों की प्रतिभा तेजी से निखर रही है। वे जल्द ही बड़ा कमाल कर दिखाएंगे।

नई दुनिया-दैनिक जागरण ने बुलंद की आवाज...

नई दुनिया और दैनिक जागरण बच्चों की आवाज बन कर सामने आए तो केंद्र सरकार को हरकत में आते देर न लगी। भारतीय खेल प्राधिकरण (स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया, साई) को निर्देश दिया गया कि गांव पहुंच कर बच्चों की प्रतिभा को परखें। संजय कहते हैं, यह भी सुंदर संयोग है कि गांधी के बताए रास्ते पर चलकर बच्चे गांधीनगर पहुंच गए। इन बच्चों ने ग्रामीण भारत के अपने जैसे करोड़ों बच्चों के सामने जिद, जज्बे और लगन के बूते एक अद्भुत मिसाल पेश की है। उन्होंने साबित किया है कि अगर ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है।

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