SC में दोषी साबित होने तक यौन उत्पीड़न के आरोपित की पहचान छिपी रहने को लेकर याचिका

याचिका में कहा गया है कि यौन उत्पीड़न के झूठे मामलों में निर्दोष को संरक्षित करने के लिए बचाव उपायों की जरूरत है। दोषी ठहराए जाने तक आरोपित की पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए।

By TaniskEdited By: Publish:Sun, 28 Apr 2019 10:03 PM (IST) Updated:Sun, 28 Apr 2019 10:03 PM (IST)
SC में दोषी साबित होने तक यौन उत्पीड़न के आरोपित की पहचान छिपी रहने को लेकर याचिका
SC में दोषी साबित होने तक यौन उत्पीड़न के आरोपित की पहचान छिपी रहने को लेकर याचिका

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है जिसमें यौन उत्पीड़न के आरोपी की ट्रायल पूरा होने और दोषी ठहराए जाने तक पहचान उजागर न करने की मांग की गई है। याचिका में जीवन जीने के मौलिक अधिकार में सम्मान से जीने के अधिकार के शामिल होने के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला दिया गया है।

यह याचिका वकील रीपक कंसल ने दाखिल की है, जिसमें कहा है कि क्रिमिनल लॉ का सिद्धांत है कि जबतक व्यक्ति अदालत से दोषी नहीं ठहरा दिया जाता उसे निर्दोष माना जाता है। इससे साबित होता है कि ट्रायल पूरा होने तक अभियुक्त की छवि नहीं खराब की जानी चाहिए क्योंकि ऐसा न होने से दोषी साबित होने तक निर्दोष होने का सिद्धांत बेकार हो जाता है। 

याचिका में केन्द्र व सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया गया है। मांग है की सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वे दिशानिर्देश और नियम तय करें जिसमे विचाराधीन व्यक्ति की ट्रायल पूरा होने और दोषी ठहराए जाने तक पहचान उजागर न की जाए। साथ ही ट्रायल पूरा होने तक इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया में इस पर बहस और सोशल वेबसाइट पर चर्चा पर भी रोक लगाई जाए। आरोपी व्यक्ति को अभियुक्त कहने के बजाए आरोपी अभियुक्त कहा जाए। यह भी मांग है कि जिन मामलों में अभियुक्त झूठे आरोपों के कारण अदालत से बरी होता है उनमें उस व्यक्ति को मुआवजा दिया जाए।

याचिका में कहा गया है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो कानून बनाये गये हैं उनका महिला दुरुपयोग भी कर सकती है, लेकिन पुरुषों को झूठे मामलों से संरक्षित करने के लिए कोई कानून या दिशानिर्देश नहीं हैं। अगर कोई व्यक्ति झूठे आरोप में फसाया जाता है तो बाद में उसकी प्रतिष्ठा वापस कायम करने या उसने जो शर्मिन्दगी अथवा आर्थिक और मानसिक पीड़ा झेली होती है उसकी कोई भरपाई नहीं हो सकती। यौन उत्पीड़न के झूठे मामलों में निर्दोष को संरक्षित करने के लिए बचाव उपायों की जरूरत है। मुकदमें का ट्रायल पूरा होने और दोषी ठहराए जाने तक आरोपी की पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए। 

इसके कई लाभ होंगे जैसे कि अगर अदालत उसे दोषी नही पाती तो वह बाद में समाज में सम्मान के साथ रह सकता है। इससे पीड़ित महिला की पहचान भी ज्यादा गोपनीय रह सकेगी क्योंकि अगर अभियुक्त का नाम और स्थिति छप गयी तो पीडि़ता की पहचान भी आसानी से लीक हो सकती है। इसके अलावा कोई भी व्यक्ति किसी की छवि धूमिल करने के उद्देश्य से झूठे आरोप नहीं लगा पाएगा। कहा गया है कि झूठे और बदले की भावना से यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वालों को दंडित किया जाना चाहिए। कानून का उद्देश्य वास्तविक पीडि़त को न्याय और मुआवजा देना है न कि उनके लिए जो निजी हित और बदले के लिए कानून का इस्तेमाल करे।

chat bot
आपका साथी