गैर-जरूरी था ऑपरेशन ब्लूस्टार, भिंडरवाले को दूसरे तरीकों से बाहर निकाला जा सकता था!

ऑपरेशन ब्लूस्टार के कागजातों को सार्वजनिक करना होगा, क्योंकि समय गुजरने के साथ ही महसूस हुआ है कि यह एक ऐसा ऑपरेशन था जिसे नहीं होना चाहिए था।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Wed, 21 Mar 2018 11:18 AM (IST) Updated:Wed, 21 Mar 2018 06:02 PM (IST)
गैर-जरूरी था ऑपरेशन ब्लूस्टार, भिंडरवाले को दूसरे तरीकों से बाहर निकाला जा सकता था!
गैर-जरूरी था ऑपरेशन ब्लूस्टार, भिंडरवाले को दूसरे तरीकों से बाहर निकाला जा सकता था!

नई दिल्ली [कुलदीप नैयर]।ब्रिटेन की सरकार ने ऑपरेशन ब्लूस्टार संबंधित कागजातों को सार्वजनिक करने की लंदन के सिख समुदाय की एक अर्जी खारिज कर दी है। ब्रिटेन की उस समय की प्रधानमंत्री मारगेट्र थैचर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काफी करीब थीं और कहा जाता है कि उग्रवादी धार्मिक नेता जरनैल सिंह भिंडरवाले और उसके समर्थकों को हरमंदिर साहिब परिवार से बाहर निकालने के लिए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर 3 जून से आठ जून, 1984 के बीच हुई सैनिक कार्रवाई की योजना बनाने में उन्होंने मदद की। यह जानकारी अब आई है कि एक ब्रिटिश अफसर खुफिया जानकारी के लिए अमृतसर आया था और उसने सारी जानकारी इकट्ठा की जो स्वर्ण मंदिर में छिपे उग्रवादियों पर हमला करने में काम आई। अब यह महसूस किया जा रहा है कि ऑपरेशन गैर-जरूरी था और भिंडरवाले को अकाल तख्त से दूसरे तरीकों से बाहर निकाला जा सकता था।

लेकिन 34 साल के बाद भी, लोग यह नहीं जानते कि यह ऑपरेशन क्यों किया गया? बेशक भिंडरवाले ने अकाल तख्त समेत स्वर्ण मंदिर परिसर को राज्य के भीतर राज्य के रूप में बदल दिया था और इसकी किलेबंदी कर दी थी। वह एक सत्ता बन गया था और उसने सिख समुदाय को आदेश जारी किए। इसके बाद जो ऑपरेशन हुआ था उसमें टैंक का इस्तेमाल भी करना पड़ा। मुङो याद है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मध्य रात्रि में जगाना पड़ा था, क्योंकि भिंडरवाले और उसके मानने वालों की योजनाबद्घ गोलीबारी के कारण भारतीय सेना के पहले जत्थे को पीछे हटना पड़ा। आज भी लोग हरमंदिर साहिब में गोलियों के निशान देख सकते हैं। भारत सरकार की सैन्य कार्रवाई ने उदार सिखों को नाराज किया, क्योंकि स्वर्ण मंदिर को अपना वेटिकन समझते हैं।

ब्रिटिश सरकार के पास जो जानकारी है उसे पाए बगैर यह जानना कठिन है कि भारतीय सेना को अव्वल तो हर मंदिर साहिब में दाखिल क्यों होना पड़ा? सैनिक कार्रवाई के कारण पूरी दुनिया के सिख समुदाय में कोहराम मच गया। उस कार्रवाई के बाद पैदा हुए तनाव के कारण भारत में सिख समुदाय के लोगों पर हमले शुरू हो गए। कई सिख सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और कई सिख अधिकारियों ने सैनिक तथा नागरिक प्रशासन की सेवा से इस्तीफा दे दिया। कुछ सिखों ने तो सरकार से मिले पुरस्कार और सम्मान भी लौटा दिए।1इंदिरा गांधी इस बारे में सचेत थीं कि सिख समुदाय बदले की कार्रवाई करेगी। उन्होंने भुवनेश्वर की एक जनसभा में कहा था कि उन्हें अंदर से लग रहा है कि उनकी हत्या कर दी जाएगी। लेकिन उन्होंने जो सोचा वह सरकार के रोब बनाए रखने के लिए था। चार महीने के बाद सुरक्षा गार्डो ने उनकी हत्या कर दी जिसे एक बदले की कार्रवाई के रूप में देखा गया।

यह यहीं नहीं रुका। सरकारी बयान के मुताबिक इसके बाद हुए सिख दंगों में सिर्फ दिल्ली में तीन हजार सिख मारे गए। मैं उस टीम का सदस्य था जिसमें जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, एयरमार्शल अर्जुन सिंह तथा इंद्र कुमार गुजराल, जो बाद में प्रधानमंत्री बने थे। हमारा निष्कर्ष था कि सैनिक अभियान जरूरी नहीं था और भिंडरवाले से दूसरे तरीके से निपटा जा सकता था। यह हमने पंजाबी ग्रुप को दी गई रिपोर्ट में बताया। ग्रुप ने हमें सिख विरोध दंगे की जांच के लिए नियुक्त किया था। उस समय पीवी नरसिंहा राव गृहमंत्री थे और जब सरकार की कार्रवाई की समीक्षा के लिए हमारी टीम उनसे मिली तो उन्होंने गोलमोल जवाब दिया। बाकी जिन लोगों, जिनमें गवाह भी शामिल थे, से हमलोग मिले उन्होंने इसे सरकार की ओर से जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया का मामला बताया।

आज स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश करने के तीन दशक बाद, हाल में सार्वजनिक हुए ब्रिटिश दस्तावेजों ने यह दिखा कर है कि सिखों के ऐतिहासिक स्थल को फिर से अधिकार में लेने के लिए ब्रिटेन ने भारत को सैनिक सलाह दिए थे, दिल्ली तथा लंदन में एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। ब्रिटिश सरकार ने इन खुलासों की जांच करने के आदेश दिए हैं तथा भाजपा ने इसकी सफाई मांगी है। लेकिन तब कार्रवाई में लगे खुफिया अधिकारियों और ऑपरेशन ब्लूस्टार का नेतृत्व करने वाले सैनिक अधिकारियों ने किसी ब्रिटिश योजना का इस्तेमाल करने की बात से इन्कार किया है। उन्होंने कहा है कि जहां तक उनका संबंध है, सारे ऑपरेशन की योजना बनाने और अंजाम देने का काम भारतीय सेना ने किया था। खुलासे ब्रिटेन के राष्ट्रीय अभिलेखागार की ओर से 30 साल की गोपनीयता के नियम के तहत सार्वजनिक किए गए पत्रों की एक श्रंखला में दिए गए हैं।

तारीख 23 फरवरी, 1984 के एक सरकारी पत्रचार, जिसका शीर्षक ‘सिख समुदाय’ है, में विदेश मंत्री के एक अधिकारी ने गृहमंत्री के एक निजी सचिव को कुछ पृष्ठभूमि से अवगत कराने की इच्छा जाहिर की है।1पत्र के अनुसार ‘भारतीय अधिकारियों ने हाल ही में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को बाहर निकालने की योजना को लेकर ब्रिटिश सरकार से सलाह मांगी है। विदेश मंत्री ने भारत के आग्रह का सकारात्मक जवाब देने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री की सहमति से स्पेशल एयर सर्विस के एक अधिकारी ने भारत की यात्र की है और एक योजना बनाई है जिसे इंदिरा गांधी ने स्वीकृति दे दी है।

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विदेश मंत्री का मानना है कि भारत की सरकार इस योजना के अनुसार जल्द ही ऑपरेशन करेगी।’ हालांकि किसी भी पत्र में इसका कोई सुबूत नहीं है कि ब्रिटिश योजना को आखिरकार जून 1984 के ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल में लाया गया। ब्रिटिश सरकार ने लंदन में कहा कि वह इस मामले से अपने संबंधों की जांच कराएगी। इन घटनाओं के कारण दुखद रूप से लोगों की जानें गई हैं और इन पत्रों से उठने वाले एकदम जायज चिंताओं को हम समझते हैं। जाहिर है ऑपरेशन ब्लूस्टार के कागजातों को सार्वजनिक करना होगा, क्योंकि समय बीतने के साथ यह महसूस होता है कि यह एक ऐसा ऑपरेशन था जिसे नहीं होना चाहिए था

(लेखक जाने मानें स्तंभकार हैं)

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