कोरोना काल के कई नए प्रयोगों में से एक, ‘वर्केशन मॉडल’ लोगों को खूब लुभा रहा...

आइटी एवं अन्य क्षेत्रों से जुड़े पेशेवर उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश कश्मीर कर्नाटक आदि स्थित हिल स्टेशंस का रुख कर रहे हैं ताकि कुछ दिन सुकून के साथ कर सकें काम...।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sun, 30 Aug 2020 09:53 AM (IST) Updated:Sun, 30 Aug 2020 09:53 AM (IST)
कोरोना काल के कई नए प्रयोगों में से एक, ‘वर्केशन मॉडल’ लोगों को खूब लुभा रहा...
कोरोना काल के कई नए प्रयोगों में से एक, ‘वर्केशन मॉडल’ लोगों को खूब लुभा रहा...

नई दिल्ली, अंशु सिंह। घर की खिड़की से पहाड़ों का दृश्य दिखाई दे रहा हो। हल्की-हल्की, ठंडी हवाएं तन-मन को शीतल कर रही हों। आसपास अपेक्षाकृत शांति हो। बीच-बीच में पक्षियों की चहचहाट सुनाई दे रही हो। ऐसे वातावरण में कौन अपने ऑफिस का काम करना नहीं चाहेगा? तभी तो आइटी एवं अन्य क्षेत्रों से जुड़े पेशेवर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, कर्नाटक आदि स्थित हिल स्टेशंस का रुख कर रहे हैं, ताकि कुछ दिन सुकून के साथ कर सकें काम...। यही कारण है कि कोरोना काल के कई नए प्रयोगों में से एक, ‘वर्केशन मॉडल’ इन्हें खूब लुभा रहा है...

‘वर्क फ्रॉम होम’ तो सुना था, ये ‘वर्क फ्रॉम हिल’ क्या बला है? गुरुग्राम की आइटी कंपनी में कार्यरत निखिल ने जब सोशल मीडिया पर यह पोस्ट देखा, तो उनकी उत्सुकता एकदम से बढ़ गई। छानबीन से पता चला कि उत्तराखंड, हिमाचल में कई रिजॉर्ट्स एवं होम स्टेज हैं, जो पेशेवर लोगों को वर्केशन यानी वर्किंग वेकेशन की सुविधा दे रहे हैं। यानी वादियों, पहाड़ों के बीच कुछ दिन काम करने का एक अनूठा मौका मिल रहा। निखिल को अगले एक वर्ष तक वर्क फ्रॉम होम करना है, तो उन्होंने निश्चय किया कि कुछ समय के लिए वे इस नए प्रयोग को जरूर आजमाएंगे और निकल पड़े अपने चुने हुए गंतव्य की ओर...। वैश्विक महामारी के कारण जहां हॉस्पिटैलिटी सेक्टर को बड़ा धक्का लगा है। वहीं, अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से स्टेकेशन या वर्केशन जैसे मॉडल्स इंडस्ट्री के लिए किसी संजीवनी बुटी से कम नहीं रहे हैं। तभी तो उत्तर से लेकर दक्षिण भारत में होमस्टेज, रिजॉर्ट्स, होटल्स द्वारा आए दिन नई योजनाएं, स्कीम व पैकेज की पेशकश की जा रही है। पेशेवर उनका लाभ भी ले रहे हैं।

प्रकृति के बीच आनंदपूर्वक काम

उत्तराखंड के एक होमस्टे पहुंचे निखिल कहते हैं कि घर की चाहरदीवारी के बीच लंबा समय गुजारने के बाद पहाड़ों में आने का अलग ही अनुभव हो रहा है। पहले छुट्टियों में मन की शांति के लिए यहां आता था। इस बार काम करने के लिए आया हूं। फिर भी सुकून मिल रहा, क्योंकि शेष समय में प्रकृति का सुंदर संग मिल रहा। बीते महीनों में जो दबाव बन गया था, वह काफी हद तक कम हुआ है। बेहतर फोकस कर पा रहा हूं काम पर। होमस्टेज ऑफ इंडिया के संस्थापक विनोद वर्मा बताते हैं, ‘होमस्टेज में लोगों को प्राकृतिक वातावरण के बीच घर जैसा माहौल, शुद्ध भोजन सब मिलता है। इसलिए बीते वर्षों में इसकी लोकप्रियता बढ़ी है। जब परिस्थितियां बदलीं, तो हमने ऐसे मॉडल पर काम शुरू किया, जिससे पेशेवरों की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ ही होमस्टेज संचालकों की भी मदद की जा सके। इसके लिए हम उन्हें बाकायदा प्रशिक्षण दे रहे हैं कि वे कैसे अपने घरों की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। कमरों के सैनिटाइजेश के साथ-साथ डाइनिंग या बॉनफायर के समय निश्चित शारीरिक दूरी बनाकर रखें।‘ विनोद के अनुसार, उनके प्लेटफॉर्म से 150 से अधिक होमस्टेज जुड़े हुए हैं। इनमें से कुछ स्थानों पर ‘वर्केशन’ मॉडल को अपनाया गया है। सतर्कता बरतते हुए, एक बार में एक ही फैमिली बुकिंग की जा रही है। पहाड़ों के अलावा, कुर्ग एवं चिकमगलुर जैसे स्थानों के लिए लोग खास रुचि दिखा रहे हैं।

ताकि न हो कोई असुविधा

उत्तर भारत के एक प्रमुख हॉस्पिटैलिटी चेन लेजर ग्रुप ने भी ‘घर से घर तक’ पैकेज लॉन्च किया है, जिसके तहत लोगों को वर्केशन व स्टेकेशन की सुविधा के साथ ही एंड टु एंड यात्रा में सहयोग भी दिया जा रहा है। अर्थात् जो पेशेवर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश स्थित उनके रिजॉर्ट, होटल या विला बुक करते हैं, उन्हें यात्रा से 72 घंटे पहले उनके घर पर ही कोविड आरटी-पीसीआर टेस्ट कराने की सुविधा प्रदान की जा रही है। इसके लिए कंपनी ने दिल्ली-एनसीआर के डायग्नोस्टिक लैब से हाथ भी मिलाया है। समूह के निदेशक विभास प्रसाद बताते हैं, ‘हर राज्य ने अपने दिशा-निर्देश लागू किए हैं। उत्तराखंड सरकार ने पर्यटकों के लिए सीमाएं सबसे पहले खोलीं। लेकिन उनके लिए कोविड 19 निगेटिव टेस्ट सर्टिफिकेट, कोविड ई-पास को अनिवार्य बनाया है। इसलिए हमने उत्तराखंड सीमा पर हेल्प डेस्क भी स्थापित किए हैं, जिससे लोगों को परेशानी न हो। उनका समय बर्बाद न हो। यह अपने आपमें एक एक्सक्लूसिव सर्विस है, जो कंपनी दे रही है।‘

हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में दिखा परिवर्तन

रेड विंग ट्रेल्स की संस्थापक सुकन्या कहती हैं, ‘रिमोट वर्किंग कल्चर के कारण बिजनेस ट्रैवल के दोबारा से रफ्तार पकड़ने में समय लगेगा। ऐसे में जो लोग वर्केशन प्लान करते हैं, वे परिवार के साथ इन डेस्टिनेशंस पर रहने के साथ ही अपनी ड्यूटी भी कर सकते हैं।‘ सुकन्या खुद गढ़वाल एवं उत्तराखंड स्थित अपने होमस्टेज में जल्द ही ‘वर्केशन’ व ‘स्टेकेशन’ की सुविधा शुरू करने की योजना बना रही हैं। इसमें दो मत नहीं कि आने वाले समय में हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में कई स्तरों पर परिवर्तन होंगे। इसकी शुरुआत हो चुकी है। हालांकि स्वच्छता को हमेशा से प्राथमिकता दी जाती रही है, लेकिन नए परिदृश्य में मेहमानों की सुरक्षा, सैनिटाइजेशन, हाइजीन प्रोटोकॉल का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। संपर्क रहित चेक इन एवं चेक आउट के साथ ही थर्मल स्क्रीनिंग जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। इंटरनेट कनेक्टिविटी के अलावा तकनीकी उपक्रम उपलब्ध कराए जा रहे हैं। होमस्टे, होटल या रिजॉर्ट की लॉबी, रेस्टोरेंट, बैंकेट हॉल में उपयुक्त व्यवस्था की जा रही है, जिससे कि किसी को कोई दिक्कत न हो।

घरेलू पर्यटन को मिलेगा प्रोत्साहन

बिजनेस ट्रैवलर मोहित पांडा को लगता है कि वर्तमान दौर में घरेलू पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों की मदद करना एक जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है। सरकार ने भी ‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा दिया है। कहने का आशय है कि अगर अनलॉक 4 के बाद सरकारें होटल आदि को खोलने को हरी झंडी देती है, तो देशवासी विदेश बजाय देश के ही पर्यटक स्थलों पर जाने की योजना बना सकते हैं। होटल्स के अलावा होमस्टेज में ठहरने को प्राथमिकता दे सकते हैं। उससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को दोबारा से पुनर्जीवित होने का अवसर मिलेगा। क्योंकि अधिकांश होमस्टेज का संचालन ग्रामीण परिवारों द्वारा किया जाता है। और हाल के वर्षों में ग्रामीणों के लिए कृषि से इतर आमदनी का विकल्प बने हैं। ‘वर्केशन डॉट कॉम’ के सह-संस्थापक मनुज मानते हैं कि ‘वर्केशन’ जैसे मॉडल की स्वीकार्यता से घरेलू पर्यटन उद्योग को संकट से उबरने का अवसर मिलेगा। लेकिन इसके लिए होमस्टेज, कॉटेज या रिजॉर्ट्स संचालकों को भी स्थानीय स्तर पर अपने ढांचागत संरचना को मजबूत करना होगा। तभी वे लंबे तक इस मॉडल पर काम कर सकेंगे।

हर तकनीकी सुविधा कराते हैं उपलब्ध : लेजर होटल ग्रुप के निदेशक विभास प्रसाद ने बताया कि महामारी के बाद से लोग घरों में बंद रहने को विवश हो गए। ऑफिस भर घर से ही शुरू हो गया। ऐसे में वर्क फ्रॉम होम करने के दौरान जब प्रोफेशनल्स के सामने वर्केशन का विकल्प आया, तो उन्होंने उसे हाथों-हाथ लेना शुरू किया। हमारे पास दिल्ली-एनसीआर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाण एवं पंजाब से कई लोगों के कॉल आए, जिसके बाद ग्रुप ने ‘वरी फ्री स्टेकेशन’ पैकेज (सात रातों का) लॉन्च किया। हम वर्केशन पैकेज ऑफर कर रहे हैं, जिसके अंतर्गत पेशेवर लोगों को बिजनेस सेंटर का उपयोग करने का अधिकार दिया जाता है। वहां वे अपना मीटिंग रूम स्थापित कर सकते हैं। जो आउटडोर में काम करना चाहते हैं, उनके लिए खास स्थान निर्धारित किए गए हैं, जहां से वे बिना किसी बाधा के कॉन्फ्रेंस कॉल आदि कर सकें। उन्हें हाई स्पीड इंटरनेट, वाईफाई कनेक्टिविटी उपलब्ध करायी जाती है। इसके साथ ही उन्हें प्रिंटर्स, लैपटॉप या अन्य डिवाइस भी उपलब्ध कराए जाते हैं। इस प्रकार, तमाम प्रॉपर्टीज पर विशेष इंतजाम एवं मेहमानों की सुरक्षा व सुविधा के मद्देनजर एहतियातन कदम उठाए गए हैं।

इंटरनेट कनेक्टिविटी रही चुनौती

हो मस्टेज ऑफ इंडिया के संस्थापक विनोद वर्मा ने बताया कि होमस्टेज अमूमन शहर से दूर, दुर्गम क्षेत्रों या ऑफबीट लोकेशंस पर होते हैं। वहां इंटरनेट कनेक्टिविटी एवं वाईफाई की थोड़ी समस्या होती है। हमने भी जब जून महीने में वर्केशन मॉडल को एडॉप्ट किया, तो कई स्थानों पर यह एक चुनौती के रूप में सामने आई। दिलचस्प यह रहा कि उत्तराखंड के बहुत से गांवों में केबल ऑपरेटर्स ही वाईफाई का कनेक्शन दे रहे थे। लेकिन उसकी स्पीड इतनी कम थी कि लोगों का काम करना मुश्किल हो सकता था। लिहाजा, हमें डोंगल में निवेश करना पड़ा। हमने पावर बैकअप आदि का खयाल रखा। उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इस समय उत्तर भारत के पहाड़ों, राजस्थान के अलावा दक्षिण के केरल, कर्नाटक के कूर्ग आदि स्थानों के लिए आइटी प्रोफेशनल्स, बिजनसपर्सन, टीचर्स खास दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

वर्केशन से बढ़ती है कार्यक्षमता

धर्मशाला के वर्केशन सह-संस्थापक मनुज शर्मा ने बताया कि पश्चिमी देशों में ‘वर्केशन’ कॉन्सेप्ट अधिक लोकप्रिय रहा है। वहां कंपनियां फ्रीलांसर्स एवं अन्य लोगों को ऑफसाइट पर काम करने का मौका देती हैं। भारत में पहले इसे ऑफसाइट असाइनमेंट के समान माना जाता था, जो कि मुख्यत: एक टीम बिल्डिंग एक्सरसाइज होती है। वहां काम प्राथमिक नहीं होता। कोविड-19 के बाद ‘वर्केशन’ के प्रति स्पष्ट समझ विकसित हुई है कि इसमें काम को प्राथमिकता दी जाती है। एक नियमित ऑफिस सेटअप से दूर रहने एवं अनावश्यक ट्रैवल टाइम कम होने से भटकाव कम होता है। कर्मचारी एकाग्रता के साथ कार्य कर पाते हैं, जिससे अंतत: उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है। पहाड़ों में वह सुबह सात बजे भी काम शुरू कर, शहरों के मुकाबले 20 से 30 प्रतिशत कम समय में उसे पूरा कर सकते हैं। बचे समय में वे परिवार संग प्रकृति का आनंद उठा सकते हैं।

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