हर सात में से एक भारतीय है मानसिक रूप से बीमार
लैंसेट साइकेट्रिस्ट में छपी स्टडी के मुताबिक राज्य स्तर पर तनाव में बढ़ोतरी और आत्महत्या की दर में महत्वपूर्ण संबंध है।
नई दिल्ली, एजेंसी। रोजाना की भागदौड़ में हम खुद को भूलते जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि धीरे-धीरे मानसिक बीमारियां हमें अपनी गिरफ्त में जकड़ रही है। हालिया एक शोध के आंकड़े बताते हैं कि सात में से एक भारतीय किसी न किसी मानसिक परेशानी से जूझ रहा है। लैंसेट साइकेट्रिस्ट में छपी स्टडी के मुताबिक, राज्य स्तर पर तनाव में बढ़ोतरी और आत्महत्या की दर में महत्वपूर्ण संबंध है। साथ ही यह संबंध औरतों की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा मजबूत होता जा रहा है।
दो गुना योगदान
सबसे पहले मानसिक परेशानी और उसकी बढ़ती प्रवृत्ति का आकलन 1990 में किया गया। सामने आया कि 1990 से 2017 के बीच मानसिक बीमारियों का योगदान कुल बीमारी में दो गुना हो गया है। इसमें अवसाद, चिंता, सीजोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर सहित कई बीमारियां शामिल हैं।
परेशान करने वाले आंकड़े
तनाव-चिंता सबसे आम
तनाव और चिंता सबसे आम मानसिक परेशानी है और इसके प्रचलन में देशभर में बढ़ोतरी हो रही है। यह अपेक्षाकृत दक्षिण भारतीय राज्यों और महिलाओं में काफी ज्यादा है। अधिक उम्र के वयस्कों में तनाव की स्थिति ज्यादा है, जिसमें भारत में ज्यादा आयु की जनसंख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
बच्चों में भी तनाव
बचपन में आइडियोपैथिक डेवलपमेंट, इंटेलेक्चुअल डिस्एबिलिटी, कंडक्ट डिसऑर्डर और ऑटिज्म जैसी मानसिक बीमारियां उत्तर भारत के राज्यों में बढ़ी है। हालांकि यह पूरे भारत में घटी हैं।
राज्य करें तैयारी
नीति आयोग के सदस्य प्रो. विनोद पॉल ने कहा कि इस रिसर्च पेपर के मुताबिक भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है। हर राज्य में मानसिक बीमारियों से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को तैयारी करनी चाहिए। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक प्रो. बलराम भार्गव के मुताबिक, रिसर्च ने जो बातें बताई हैं उनके द्वारा मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए हर राज्य अपनी रणनीति बना सकता है।