सरकार के कामकाज से बेचैन होने लगा उद्योग

बैंकिंग क्षेत्र की प्रमुख हस्ती और एचडीएफसी के प्रमुख दीपक पारेख ने देश में कारोबार की सुगमता के लिए 'प्रशासनिक बंदिशों' में ढील देने की वकालत करते हुए कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले नौ माह के कार्यकाल में जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं दिखने से उद्यमियों

By Sudhir JhaEdited By: Publish:Wed, 18 Feb 2015 08:12 PM (IST) Updated:Wed, 18 Feb 2015 08:44 PM (IST)
सरकार के कामकाज से बेचैन होने लगा उद्योग

मुंबई। बैंकिंग क्षेत्र की प्रमुख हस्ती और एचडीएफसी के प्रमुख दीपक पारेख ने देश में कारोबार की सुगमता के लिए 'प्रशासनिक बंदिशों' में ढील देने की वकालत करते हुए कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले नौ माह के कार्यकाल में जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं दिखने से उद्यमियों में बेचैनी पैदा होने लगी है। उन्होंने कहा कि इन नौ महीनों में प्रधानमंत्री के लिए समय बहुत भाग्यशाली रहा है, क्योंकि वैश्विक जिन्स कीमतें अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं, जिसका भारत को सबसे अधिक फायदा हुआ है।

पारेख ने कहा कि भले ही उद्योग जगत मोदी सरकार से अपेक्षित बदलावों को लेकर अब भी आशावान है, लेकिन यह आशावादिता कारोबारियों के लिए राजस्व में नहीं बदल रही है और 'कारोबार को सुगम बनाने' के मोचे पर अभी बहुत कम सुधार देखने को मिला है।

पारेख को भारतीय उद्योग जगत के पथ-प्रदर्शकों के रूप में देखा जाता है। वह नीति व सुधारात्मक मुद्दों पर गठित अनेक प्रमुख सरकारी समितियों के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि 'मेक इन इंडिया' अभियान भी तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक लोगों के लिए कारोबार करना सुगम नहीं किया जाता और त्वरित फैसले नहीं किए जाते।

उन्होंने कहा, 'मेरी राय में देश के लोगों, उद्योगतिपयों व उद्यमियों को अब भी बहुत उम्मीद है कि मोदी सरकार कारोबार के लिए, उन्नति के लिए व भ्रष्टाचार कम करने के लिए अच्छी होगी, और उन्हें लगता है कि यह सरकार इन सभी मोर्चों पर काम करेगी।

पारेख ने कहा, 'नौ महीने के बाद थोड़ी-बहुत अधीरता सामने आने लगी है कि कोई बदलाव क्यों नहीं हो रहा और जमीनी स्तर पर असर दिखने में इतना समय क्यों लग रहा है। हालांकि उम्मीद तो बरकरार है, लेकिन इसकी झलक कमाई में नहीं दिख रही। आप किसी भी उद्योग को लें, जब वहां बहुत आशावाद होता है, तो वृद्धि भी तेज होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि पारेख बीते तीन दशकों में विभिन्न सरकारों के सुधारात्मक व नीतिगत कदमों को लेकर बहुत मुखर रहे हैं। वह 'नीतिगत मोर्चे पर ढिलाई' को लेकर पिछली यूपीए सरकार की आलोचना करने वाले पहले उद्योगपतियों में से थे।

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