निर्मल वर्मा जयंती: जिनके विचारों, संवेदना और भाषा शैली पर लगातार शोध होते रहेंगे

परिंदे कहानी से प्रसिद्धि पाने निर्मल वर्मा को साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। निर्मल वर्मा का जन्म 3 अप्रैल 1929 को शिमला में हुआ था।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Wed, 03 Apr 2019 03:08 PM (IST) Updated:Wed, 03 Apr 2019 03:19 PM (IST)
निर्मल वर्मा जयंती: जिनके विचारों, संवेदना और भाषा शैली पर लगातार शोध होते रहेंगे
निर्मल वर्मा जयंती: जिनके विचारों, संवेदना और भाषा शैली पर लगातार शोध होते रहेंगे

स्मिता। इन दिनों चुनावी सभाओं में राजनेता देशभक्ति पर चीख-चीखकर भाषण दे रहे हैं, पर जनता है कि उनकी बातों में आना नहीं चाहती है। पर आज से सालों पहले महान कहानीकार निर्मल वर्मा ने देश को आजादी मिलने के 50 वर्ष होने के उपलक्ष्‍य पर एक लेख लिखा- मेरे लिए भारतीय होने का अर्थ।

इस लेख के माध्‍यम से जो उन्‍होंने बताया, उसे पढ़ने वाले हर पाठक के मानस पटल पर आज भी वह अंकित है। 'रात का रिपोर्टर', 'एक चिथड़ा सुख', 'अंतिम अरण्‍य' जैसे कालजयी उपन्‍यासों के रचनाकार निर्मल वर्मा की आज जयंती है। साहित्‍यकार कमल किशोर गोयनका कहते हैं कि मेरे समय के सबसे प्रतिष्ठित लेखक थे निर्मल वर्मा। आलोचक नामवर सिंह ने भी उन्‍हें श्रेष्‍ठ कहानीकार के रूप में स्‍वीकार किया था। निर्मल वर्मा के समान प्रतिभाशाली लेखक आधुनिक काल में बहुत कम दिखाई देते हैं। उनकी कहानियों, उपन्‍यासों और लेखों में दिखाई देने वाली वैचारिकता और भारतीयता उन्‍हें बहुत बड़ा लेखक बनाती हैं।

निर्मल वर्मा और कमल किशोर गोयनका ने मिलकर 'प्रेमचंद संचयन' का संपादन किया था, जिसे साहित्‍य अकादमी ने प्रकाशित किया। यह पुस्‍तक इतनी लो‍कप्रिय साबित हुई कि इसके अब तक नौ संस्‍करण आ चुके हैं। कमल किशोर गोयनका पुरानी यादों को टटोलते हुए बताते हैं, 'प्रेमचंद संचयन' के माध्‍यम से मेरा उनसे साहचर्य हुआ था। मैं उन्‍हें जितना जान पाया, उसके अनुसार वे बेहद विनम्र स्‍वभाव के थे। एक बड़े लेखक होने के साथ-साथ वे मनुष्‍य के रूप में भी बड़े थे। रूस के कई देशों पर कब्‍जा कर लेने के कारण विरोधस्‍वरूप उन्‍होंने प्रगतिशील लेखक संघ की सदस्‍यता छोड़ दी। वे सही मायने में भारतीय विचारधारा के लेखक थे। आने वाले समय में उनके विचारों, संवेदना और भाषा शैली पर लगातार शोध होते रहेंगे।'

निर्मल वर्मा का न सिर्फ हिंदी, बल्कि अंग्रेजी भाषा पर भी समान अधिकार था। झीनी झीनी बीनी चदरिया के लेखक अब्‍दुल बिस्मिल्‍लाह निर्मल वर्मा के साथ हुआ एक मजेदार वाकया सुनाते हैं। वे कहते हैं कि निर्मल वर्मा जरूरत भर ही बोलते थे। एक बार जर्मनी के किसी साहित्यिक कार्यक्रम में उनके साथ अब्‍दुल बिस्मिल्‍लाह भी गए थे। चूंकि कार्यक्रम रात में होते थे, इसलिए दिन में लेखकों का घूमने-टहलने का कार्यक्रम होता था। एक बार निर्मल वर्मा और मैं एक पार्क के किसी बेंच पर बैठे थे। तभी एक जर्मन महिला हमारे पास आई और अंग्रेजी में हम लोगों से बातें करने लगी। हमलोग भी उनकी बातों का उत्‍तर अंग्रेजी में ही दे रहे थे।

अचानक उस जर्मन महिला ने हिंदी में अपने बारे में बताया कि वह जर्मनी में हिंदी पढ़ाती है और फिर आगे हमलोगों से पूछा कि आपलोग अपनी मातृभाषा में बात क्‍यों नहीं करते। क्‍या आप लोग अपनी मातृभाषा का सम्‍मान नहीं करते। निर्मल वर्मा ने तपाक से कहा, हमें अपनी मातृभाषा के प्रति बेहद सम्‍मान है। हमारी मातृभाषा ने ही हमें सिखाया है कि अपने साथ-साथ दूसरी भाषाओं का भी सम्‍मान करो।

निर्मल वर्मा को आधुनिक युग का प्रेमचंद भी कहा जाता था। उनका जन्म 3 अप्रैल 1929 को शिमला में हुआ था और 25 अक्टूबर 2005 को राजधानी दिल्ली में उनका देहांत हो गया था।

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