हिंदी के माध्यम से अनेक क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसरों का हो रहा सृजन

तमाम बातों के बीच हिंदी के विकास के लिए हमें यह स्वीकार करना होगा कि हिंदी हाशिये की भाषा नहीं है वह किसी एक वर्ग या क्षेत्र का संस्कार नहीं है वह हमारी राष्ट्रभाषा है और राष्ट्रभाषा की एक सर्वमान्य स्वीकृति होती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 10 Sep 2022 04:29 PM (IST) Updated:Sat, 10 Sep 2022 04:29 PM (IST)
हिंदी के माध्यम से अनेक क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसरों का हो रहा सृजन
अगले सप्ताह हिंदी दिवस का आयोजन किया जाएगा। प्रतीकात्मक

नरपतदान चारण। हिंदी को क्षेत्रीय भाषाओं की स्वीकार्यता के साथ राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की बात जब भी की जाती है, दक्षिण के हिंदीतर भाषी राज्यों से विरोध के स्वर उठने लगते हैं। असल में हिंदी राजनीति का शिकार होकर विवाद का विषय बन जाती है, जबकि हिंदी किसी का विरोध नहीं करती, यह सबसे जुड़ाव और राष्ट्रीयता का बोध कराने वाली भाषा है। किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रभाषा होना उसके विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

चीन की मंदारिन, इजराइल की हिब्रू इसके प्रमुख उदाहरण हैं। बहरहाल देश में ही गैर हिंदी भाषी राज्यों द्वारा हिंदी का विरोध किया जाना बड़ी विडंबना है। यह मिथ्या विरोध है, जो चंद राजनीतिक दलों द्वारा प्रायोजित है। हिंदी के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं के अतिक्रमण की झूठी अफवाह फैलाकर वोट बैंक को साधा जाता है, क्योंकि क्षेत्रीय भाषाएं प्रमुख राजनीतिक मुद्दा रही हैं। इसलिए प्रायोजित हिंदी विरोध का सच जानने के लिए दक्षिण के हिंदी विरोधियों को हिंदी के संदर्भ में अपनी आशंका और गलतफहमी दूर करने के लिए उन हिंदी तरभाषियों का स्मरण करना होगा जिन्होंने हिंदी के विस्तार में योगदान दिया।

दरअसल, तथ्य यह है कि आधुनिक हिंदी गद्य का जन्म भी दक्षिणी हिंदीतर क्षेत्र कलकत्ता (अब कोलकाता) के फोर्ट विलियम कालेज (1800) में हुआ, वहां हिंदुस्तानी भाषा विभाग के प्रमुख भी बांग्लाभाषी तारिणी चरण मित्र थे। वहीं, हिंदी का पहला साप्ताहिक समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ (1826) हिंदीतरभाषी क्षेत्र कलकत्ता से ही निकला। हिंदी का पहला दैनिक समाचार पत्र ‘समाचार सुधावर्षण’ (1854) बांग्लाभाषी श्यामसुंदर सेन ने ही कलकत्ता से निकाला था।

बांग्लाभाषी शारदाचरण मित्र ने देवनागरी लिपि के विस्तार के उद्देश्य से ‘देवनागर’ पत्रिका (1907) निकाली। इससे स्पष्ट है कि सभी की प्रिय भाषा हिंदी रही है और भारतवर्ष के सभी क्षेत्रों से हिंदी को सींचने का महत्वपूर्ण काम किया गया है। लेकिन कालांतर में हिंदीतर क्षेत्र के द्वारा हिंदी की अहमियत जाने बगैर इसका विरोध करना अनुचित है। स्वतंत्रता के दौर में हिंदी : स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी हिंदी को लेकर चिंता और चिंतन हुआ था।

महात्मा गांधी द्वारा आजादी की लड़ाई की संपर्क भाषा हिंदी स्वीकार की गई। हालांकि उससे पहले पुनर्जागरण के दौरान भी स्वामी दयानंद सरस्वती, राजा राममोहन राय, केशवचंद्र सेन, बालगंगाधर तिलक आदि ने भी इस तथ्य को समझा और रेखांकित किया कि अखिल भारतीय स्तर की संपर्क भाषा हिंदी ही हो सकती है। बाद में 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ही गुजरात में सर्वप्रथम राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को मान्यता प्रदान की थी। उनका कहना था, ‘राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए जरूरी है।’

आजादी के बाद भारत के नीति नियंताओं ने राजकाज की भाषा के रूप में लोक की भाषा यानी हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। आज के तकनीकी दौर में साहित्य, फिल्म, कला, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, संचार, बाजार सभी क्षेत्रों में हिंदी ने अपनी महत्ता कायम की है। भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के चलते हिंदी का व्यापक प्रसार हुआ है। हिंदी में कंटेंट का निर्माण भी अधिक हो रहा है। वहीं, हिंदी की प्रासंगिकता और उपयोगिता ने हिंदी में अनुवाद कार्य का मार्ग प्रशस्त किया है जिसके चलते हिंदी बाजार और रोजगार से जुड़ी है।

पूंजीवाद के इस दौर में बाजार के लिए हिंदी अनिवार्य बन गई है। हिंदी ने लाखों-करोड़ों भारतीयों को रोजगार दिया है। अनेक विश्वविद्यालयों में राजभाषा प्रशिक्षण का प्रमाणपत्र या डिप्लोमा पाठ्यक्रम अध्ययन क्षेत्र में शामिल किया गया है। इसके साथ हिंदी धीरे-धीरे अपना अंतरराष्ट्रीय स्थान ग्रहण कर रही है, क्योंकि बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था, बढ़ता बाजार, हिंदी भाषी उपभोक्ता, हिंदी सिनेमा, प्रवासी भारतीय, हिंदी का विश्व बंधुत्व भाव हिंदी को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार दुनिया में हिंदी समाज की जनसंख्या लगभग एक अरब है। विदेश में कई विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई हो रही है।

आक्सफोर्ड डिक्शनरी में हिंदी के कई शब्दों को शामिल किया गया है। इससे हिंदी का कद बढ़ा है। दुनिया में समाचार पत्रों में सबसे ज्यादा हिंदी के हैं। तमाम इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म भी हिंदी भाषा को बढ़ावा दे रहे हैं। इन सबके चलते हिंदी समर्थ हो रही है। चुनौतियां : हिंदी की विस्तार यात्रा में कुछ चुनौतियां अभी भी हैं। जैसे विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अनेक भाषाओं में विस्तृत अध्ययन, अनुसंधान, निरंतर चिंतन और लेखन कार्य हो रहा है, लेकिन उसकी तुलना में हिंदी में इसकी कमी दिखाई देती है। साथ ही, हिंदी में वैज्ञानिक, तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र के ज्ञानप्रधान साहित्य की वह रचनात्मक परंपरा कायम नहीं हो पाई, जो होनी चाहिए।

[हिंदी भाषा विशेषज्ञ]

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