भारत से रिश्तों में तल्खी खत्म करने को नेपाल तैयार

सूत्रों के मुताबिक नेपाल की नई सरकार ने ओली के कार्यकाल में चीन के साथ हुए समझौतों को आगे बढ़ाने से फिलहाल मना कर दिया है।

By Atul GuptaEdited By: Publish:Mon, 12 Sep 2016 10:30 PM (IST) Updated:Mon, 12 Sep 2016 10:43 PM (IST)
भारत से रिश्तों में तल्खी खत्म करने को नेपाल तैयार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भारत और नेपाल के रिश्तों में पिछले एक वर्ष के दौरान जो तल्खी आई थी उसे पूरी तरह से खत्म करने को दोनों देशों में सहमति बन गई है। भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर आए नेपाल के विदेश मंत्री प्रकाश शरण महत और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बीच सोमवार को हुई द्विपक्षीय बैठक में कई अहम मुद्दों पर सहमति बन गई है। अब सभी की नजर गुरुवार को भारत पहुंच रहे नेपाल के नए पीएम पुष्प कमल दहल प्रचंड की 16 सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली मुलाकात पर है। इस बैठक में आर्थिक सहयोग को लेकर कई अहम समझौते होने की उम्मीद है।

इस बीच, नेपाल ने संकेत दिए हैं कि उसकी कोई मंशा भारत और चीन के बीच अपने आपको स्थापित करने की नहीं है। भारतीय पक्ष ने भी नेपाल को आश्वासन दिया है कि नेपाल के हितों को सर्वोच्च वरीयता दी जाएगी और उसके आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोई कूटनीतिक मंशा नहीं है। पड़ोसी देश के साथ काफी बिगड़ चुके रिश्तों को जिस तरह भारत फिर से पटरी पर लाया वह मोदी सरकार की कूटनीति की अहम सफलता है। नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली ने जिस तरह भारत विरोधी रुख अख्तियार किया था कि उससे लगा था कि भारतीय कूटनीति को मंुह की खानी पड़ी है। लेकिन आंतरिक राजनीति की वजह से ओली को कुर्सी गंवानी पड़ी और पीएम का पदभार संभालने के बाद प्रचंड ने सबसे पहले भारत की यात्रा का फैसला कर यह संकेत दिया है कि वह भारत के साथ ऐतिहासिक रिश्ते की गंभीरता को समझते हैं।

सूत्रों के मुताबिक नेपाल की नई सरकार ने ओली के कार्यकाल में चीन के साथ हुए समझौतों को आगे बढ़ाने से फिलहाल मना कर दिया है। इससे चीन भी नाराज है। माना जाता है कि इसी वजह से चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अक्टूबर में प्रस्तावित काठमांडू की अपनी यात्रा फिलहाल स्थगित कर दी है। ओली ने अपनी बीजिंग यात्रा के दौरान चीन और नेपाल के बीच रेल व सड़क मार्ग बनाने का समझौता किया था ताकि भारत पर निर्भरता को समाप्त किया जा सके। इसे भारतीय कूटनीति के लिए बड़ा धक्का माना गया था। विपक्षी दलों ने भी राजग सरकार पर आरोप लगाया था कि वह नेपाल को चीन की 'गोद' में जाने के लिए मजबूर कर रही है।

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