किशोरों के बड़े अपराधों पर सुप्रीम कोर्ट कठोर

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या और दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों में शामिल किशोरों के लिए 'जुवेनाइल' शब्द से जुड़े कानूनों पर पुनर्विचार शुरू कर दिया है। साथ ही केंद्र सरकार से इसमें प्रभावी बदलाव लाने के लिए एक माह के अंदर राय मांगी है।

By Rajesh NiranjanEdited By: Publish:Mon, 06 Apr 2015 09:59 PM (IST) Updated:Tue, 07 Apr 2015 12:32 AM (IST)
किशोरों के बड़े अपराधों पर सुप्रीम कोर्ट कठोर

नई दिल्ली [जेएनएन]। सुप्रीम कोर्ट ने हत्या और दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों में शामिल किशोरों के लिए 'जुवेनाइल' शब्द से जुड़े कानूनों पर पुनर्विचार शुरू कर दिया है। साथ ही केंद्र सरकार से इसमें प्रभावी बदलाव लाने के लिए एक माह के अंदर राय मांगी है।

सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि जिस तरह नाबालिगों के मामले सामने आ रहे हैं वह चिंताजनक है। ऐसे में वक्त आ गया है कि इस मुद्दे पर कोई कदम उठाया जाए। अदालत ने कहा है कि इन कानूनों की समीक्षा इसलिए जरूरी है क्योंकि समाज को यह संदेश जाना चाहिए कि पीडि़त की जिंदगी भी कानून के लिए उतनी ही अधिक महत्वपूर्ण है।

सर्वोच्च अदालत ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा कि वह सरकार से बात करें और सुप्रीम कोर्ट को बताएं कि जेजे एक्ट के लिए क्या सरकार गौर कर रही है। सर्वोच्च अदालत ने एक मई तक सरकार की राय मांगी है। दरअसल, निर्भया कांड के बाद चारों तरफ से जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव को लेकर आवाजें उठीं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब एक बार फिर ये मुद्दा उठा है और इस बार सुप्रीम कोर्ट ने इसे उठाया है।

जघन्य अपराधों में नाबालिगों के शुमार होने पर चिंता जताई :

एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हत्या और दुष्कर्म जैसे संगीन अपराधों में नाबालिगों की संलिप्तता पर चिंता जाहिर करते हुए केंद्र सरकार को कहा है कि वह एक बार फिर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट पर गौर करे। कोर्ट ने कहा है कि एक मई तक केंद्र इस मामले में अपना रुख साफ करे।

सुप्रीम कोर्ट हरियाणा में हुई एक हत्या के मामले में उम्रकैद की सजायाफ्ता की अपील पर सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी अपील में उसने कहा है कि जिस वक्त हत्या हुई थी तब वह नाबालिग था। इसके लिए उसने स्कूल का एक सर्टिफिकेट भी दिया है, लेकिन सरकार का कहना है कि वह वारदात के वक्त बालिग था।

गौरतलब है कि 16 दिसंबर 2012 को चलती बस में गैंगरेप और हत्या के मामले के बाद नाबालिगों के लिए कानून में बदलाव के लिए आंदोलन शुरू हुआ था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था और पीडि़ता के परिजनों ने भी मांग की थी कि एक नाबालिग को फांसी की सजा दी जाए। इस केस में चार लोगों को फांसी की सजा दी गई, जबकि नाबालिग को तीन साल के लिए सुधार गह भेजा गया।

याचिका में यह भी कहा गया था कि संगीन मामलों में 18 साल नहीं बल्कि 16 साल तक वालों को भी बालिग की तरह माना जाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। इधर, सरकार ने भी जेजे एक्ट में बदलाव करने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब अगली सुनवाई में तय होगा कि इस मामले में सरकार का रुख क्या है।

पिछले साल नए सिरे से व्याख्या की याचिकाएं खारिज की थीं :

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय कानून के तहत 'जुवेनाइल' शब्द की नए सिरे से व्याख्या के लिए दायर याचिकाएं खारिज कर दीं थीं। इनमें कहा गया था कि जघन्य अपराधों के आरोपी के किशोर होने का निर्धारण किशोर न्याय बोर्ड की बजाय फौजदारी की अदालत को करना चाहिए।

28 मार्च 2014 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पी. सत्यशिवम, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायूर्ति शिव कीर्ति सिंह की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी और 16 दिसंबर के सामूहिक दुष्कर्म की शिकार युवती के पिता की याचिकाएं खारिज की थीं। इन याचिकाओं में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून, 2000 के तहत 'किशोर' शब्द के प्रावधान को चुनौती दी गई थी।

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