तकनीक के विकास को रोक दिया गया तो सभ्यता के विकास में पीछे रह जाएगा समाज
वर्तमान में देश में एक वर्ग ऐसा है जो आधार का विरोध निजी गोपनीयता के भंग होने के डर से कर रहा है। इस वर्ग की चिंता है कि आधार डाटा की गोपनीयता यदि सुरक्षित नहीं रह पाती है तो इसका गैर वैधानिक प्रयोग हो सकता है।
इन संघर्षो के चलते यदि तकनीक के विकास को रोक दिया जाता है तो समाज सभ्यता के विकास में पीछे रह जाता है एवं नए समाज के निर्माण में उसकी दर बहुत धीमी हो जाती है। पद्रंहवीं शताब्दी के मध्य में जब यूरोप में गुटेनबर्ग ने किताब को छापने की प्रिंटिंग तकनीक को ईजाद किया तो उसके प्रसार के चलते तुर्की के आटोमन साम्राज्य ने इसे धर्म विरुद्ध बताकर रोक लगा दी। इसका परिणाम यह हुआ कि मध्य पूर्व एशिया और उसके पूर्वी देशों में किताब को छापने की प्रिंटिंग तकनीक का काफी देर से प्रसार तब हुआ, जब इन क्षेत्रों में से कई इलाकों में यूरोपीय शक्तियों ने अपने उपनिवेश बना लिए और ऐसे में पूरा मध्य पूर्व एशिया किताब छापने की तकनीक से करीब 300 साल तक पिछड़ा रहा, इसका नतीजा ये देश आज भी भुगत रहे हैं।
अभिव्यक्ति की आजादी या निजी आजादी के लिए तकनीकी विकास की आजादी को रोका नहीं जा सकता है और यह किसी एक देश और प्रशासन के हाथ में भी नहीं है। यह एक वैश्वीकरण से उपजी स्वाभाविक सामाजिक प्रक्रिया है, इसके बावजूद यदि कोई देश तकनीकी विकास को कानून बनाकर रोकता है तो उसे पिछड़ेपन को ङोलना होगा और विकास की दौड़ में मात खानी होगी, उस देश की अर्थव्यवस्था एवं प्रशासनिक तंत्र भंयकर गंभीर चुनौतियों से गुजरेगा। इसलिए साधारण तौर पर समझना होगा कि तकनीक का विकास अनिवार्यता है और इसके साथ तादातम्य बनाए रखने के लिए आधार जैसे बायोमीटिक डिजिटल यूनीफाइड डाटा को निर्मित करना किसी भी राष्ट्रीय सरकार के लिए एक अनिवार्य पहलू है न कि विकल्प। यही कारण है कि मोदी सरकार ने भी इस योजना को जारी रखा एवं डीबीटी जैसे प्रक्रियाओं में, रुपये-पैसे के लेन-देन में, टैक्स के भुगतान में अनिवार्य कर दिया है। आधार की तरह ही दुनिया भर के देशों में बायोमीटिक पहचान सुनिश्चित करने वाले डाटा बेस का प्रयोग सामान्य के साथ विशेष लक्ष्य पर आधारित करके भी किया जा रहा है। प्रमुख चुनौतियां यह बात सही है कि वैश्विक स्तर पर बायोमीटिक डाटा में चोरी एवं सेंध, वायरस या फिशिंग अटैक प्रमुख चुनौतियां हैं। इसका मतलब यह भी नहीं है कि तकनीकी विकास के लिए निजी स्वतंत्रता को ताक पर रखना पड़ेगा, लेकिन यह अवश्य है कि तकनीकी विकास आपकी निजी स्वतंत्रता का अतिक्रमण करने की पर्याप्त क्षमता रखता है। इसलिए सरकार को ही एक ऐसा सुरक्षा तंत्र विकसित करना होगा जो नागरिकों की निजी स्वंतत्रता को पर्याप्त सुरक्षा दे। भारत जैसे विविधता से भरे विशाल देश में बायोमीटिक पहचान का निर्माण एवं उसकी सुरक्षा दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कंप्यूटर में वायरस के आने से उसकी हार्ड डिस्क या मदर बोर्ड करप्ट हो सकता है, इस डर से कोई कंप्यूटर प्रयोग करना नहीं छोड़ देता है। एंटीवायरस और अन्य सुरक्षात्मक उपाय अपनाए जाते हैं। यूआइडीएआइ जैसी संस्था को भी आधार डाटा बेस को सुरक्षित रखने का बेहतर कानूनी एवं तकनीकी मैकेनिज्म निर्मित करते हुए उसे लगातार अपडेट रखना होगा ताकि नागरिकों की स्वतंत्रता एवं आधार डाटाबेस दोनों की सुरक्षा पूरी तरह से सुनिश्चित हो सके।
(बिहार राज्य सिविल सेवा के अधिकारी)