दिलवालों की दिल्ली में अलग-अलग संस्कृतियों की रंगोली से रोशन होगी दिवाली

दिल्ली में बसी कई राज्यों की रवायतों से...उनकी दीपों के इस त्योहार से जुड़ी रीतियों से...खास अवसर पर बनाए जाने वाले व्यंजनों की खुशबू से...संस्कृति से रूबरू करा रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 26 Oct 2019 12:56 PM (IST) Updated:Sun, 27 Oct 2019 07:56 AM (IST)
दिलवालों की दिल्ली में अलग-अलग संस्कृतियों की रंगोली से रोशन होगी दिवाली
दिलवालों की दिल्ली में अलग-अलग संस्कृतियों की रंगोली से रोशन होगी दिवाली

संजीव कुमार मिश्र/रितू राणा। जैसे-जैसे दीपों का उत्सव करीब आता है मन में मिठास सी घुलने लगती है। घर को सजाने के लिए, त्योहार के दिन को कुछ खास बनाने के लिए, शिद्दत से परंपरागत चीजों की खरीदारी हो रही है। घर-आंगन में दीपों की लौ भले सब अपनी रीतियों से जलाएं पर रोशनी अंधेरे को ढक...घरों को उज्ज्वल बनाती है...रिश्तों को प्रगाढ़ करती है। दिल्ली में बसी कई राज्यों की रवायतों से...उनकी दीपों के इस त्योहार से जुड़ी रीतियों से...खास अवसर पर बनाए जाने वाले व्यंजनों की खुशबू से...संस्कृति से रूबरू करा रहे हैं।

उत्तराखंडी समाज...यूं तो बरसों से दिल्ली में रहते हुए इसी शहर का समावेश आ गया लेकिन कुछ परंपरागत चीजें हैं जो आज भी पीढ़ियों से चले आ रही रीतियों के साथ मनाई जाती हैं। अलका ममगई बताती हैं कि अब दीपों के इस उत्सव पर यूं तो कई चीजें खास होती हैं मसलन इस दिन हम उड़द की दाल के पकोड़े और पूड़ी जरूर बनाते हैं। और जिन लोगों के यहां दीवाली नहीं होती है उन्हें भी ये दोनों चीज जरूर देते हैं। त्योहार से एक दिन पहले अनाज के पिंड बनाए जाते हैं और सुबह को गाय बैल के सींग में तेल लगाया जाता है। उन्हें धूप-दीप दिखाकर पूजा की जाती है और फूलों की माला पहनाकर अनाज के पिंड खिलाए जाते हैं। भगवान से प्रार्थना की जाती है कि हमारे अनाज भंडार में हमेशा बरक्कत रहे। रात का सबसे खास आकर्षण होता है भैलो खेलने का। हालांकि दिल्ली में इसका चलन कम होता जा रहा है। वहीं अपने प्रदेश में इगास-बग्वाल यानी दीवाली के दिन भैलो खेलने का भी रिवाज है। हां, अब यहां भैलो नहीं लेकिन नृत्य परंपरा के जरिए खुशियां बांटी जाती हैं। भैलो का मतलब एक रस्सी से है, जो पेड़ों की छाल से बनी होती है। बग्वाल के दिन लोग रस्सी के दोनों कोनों में आग लगा देते हैं और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेलते हैं। लोग समूहों में एकत्रित होकर पारंपरिक गीतों पर नृत्य करते हैं।

केले के पत्ते से विशेष सजावट

राम जी की घर वापसी का त्योहार...यानी दीवाली इस पावन दिन हम अपने समस्त परिवार के साथ, जिसमे हमारे साथ काम करने वाले आफिस के कर्मचारी भी होते हैं, सब साथ मिलकर भोजन करते हैं। यही तो इस त्योहार की खासियत है। मराठी समुदाय श्रीगणेश सेवा मंडल के अध्यक्ष महेंद्र लड्डा बताते हैं कि हमारे घर मे विशेष रूप से सजावट होती है। जिसमें केले के पत्ते का जरूर उपयोग किया जाता है। यह पत्ते भगवान विष्णु और लक्ष्मी को अतिप्रिय हैं। और पूजा सिंह लग्न में होती है जो कि अर्ध रात्रि में 12-1 के बीच होता है। लक्ष्मीजी वहां होती हैं, जहां सफाई हो। इसलिए दीवाली वाले दिन हम घर और कार्यालय का कोना-कोना साफ करते हैं। लक्ष्मी पूजन में 16 तरह से स्नान कराया जाता है। जैसे चीनी का स्नान, घी, दही, दूध, सहेड, गन्ने का रस, इत्र, गोल्ड इत्यादि।

मिंसाई निकालने की खास परंपरा

दिल्ली के खालिस अग्रवाल परिवार से संबंध रखती मधु कहती हैं कि अहोई अष्टमी पर्व पर घर की साफ-सफाई के साथ दीवाली पर्व की शुरुआत हो जाती है। इस दिन पूजा में जिस पात्र में जल रखा जाता है उसे छोटी दीवाली के लिए भी बचाकर रखा जाता है उस दिन घर की औरतें इसी पानी से स्नान करती हैं। धनतेरस वाले दिन चांदी का बर्तन खरीदा जाता है। जबकि बड़ी दीवाली के दिन सुबह मीठे पूड़े बनाए जाते हैं। इस पर हल्दी का छींटा लगाया जाता है। पूजा के बाद इसे मंदिर में दान कर देते हैं। शाम के समय खील, बताशा, मिठाई और पैसे बतौर मिंसाई अलगअलग निकालते हैं। ये मिंसाई दुर्गा, हनुमान देव समेत पितरों के लिए निकाली जाती है। अगले दिन देवी-देवताओं समेत पितरों वाली मिंसाई दान दे दी जाती है जबकि कुम्हार एवं जमादार घर पर आकर ले जाते हैं।

मिटेगा अज्ञान, फैलेगा ज्ञान

माना जाता है कि दीवाली के दिन, भगवान महावीर (युग के अंतिम जैन तीर्थकर) ने 15 अक्टूबर 527 ईसा पूर्व को पावापुरी में कार्तिक के महीने (अमावस्या की सुबह के दौरान) की चतुर्दशी पर निर्वाण प्राप्त किया था। पुरानी दिल्ली निवासी रवि जैन बताते हैं कि हटरी खरीदकर लाते हैं और फिर भगवान महावीर की आरती होती है। रात के समय निर्वाण कांड का पाठ किया जाता है। रोशनी और दीये के साथ मंदिरों, कार्यालयों, घरों, दुकानों को सजाते हैं जो ज्ञान को फैलाने और अज्ञान को हटाने का प्रतीक है। कुछ लोग नए साल के रूप में भी मनाते हैं। कैलाश नगर, गांधी नगर, कृष्णा नगर, रिषभ विहार, ग्रेटर कैलाश, चांदनी चौक में बड़ी धूमधाम से दीवाली मनाते हैं। मंदिर में मिष्ठान चढ़ाकर पूजा की जाती है।

सिर्फ मिट्टी के दीपक ही जलाते हैं

दिल्ली में राजस्थान समुदाय भी बसा है। राजस्थानियों की दीवाली बनाने का अलग ही तरीका होता है। यही कोई एक पखवाड़े तक दीपों के पर्व का आयोजन होता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक सेलिब्रेशन होता है। धनतेरस को नए बर्तन खरीदते हैं। सोने-चांदी के आभूषण खरीदते हैं एवं धन्वंतरि महाराज की पूजा करते हैं। गोपेंद्र नाथ भट्ट बताते हैं कि दीवाली की तैयारियां साफ सफाई से शुरू होती हैं। बस अंतर यह होता है कि मिट्टी के दीपक जलाते हैं। दीवाली के दिन राजस्थनी गुझिया, मीठी और नमकीन पूड़ी, गुड़ से बनी चीजें बनाकर खाते हैं। इस दिन कारोबारी लोग बही की पूजा करते हैं। पेन और बही के पास दीपक जलाकर रखते हैं एवं दीवाली के बाद से नया बही खाता शुरू हो जाता है। दीवाली के दूसरे दिन अन्नकूट करते हैं। यह 56 भोग होता है। इसके अगले दिन दाल बाटी चूरमा बनाकर खाया जाता है। इसे बनाकर खाना शुभ माना जाता है।

लक्ष्मी एवं गणेश की कथा सुनकर करते हैं पूजा: श्रीवास्तव परिवार आज भी चमक दमक से दूर सादगी भरी दीवाली मनाना पसंद करते हैं। रिमझिम बताती हैं कि दीवाली पर घरों की सफाई होती है। शाम में होने वाली पूजा में हम सिर्फ मिट्टी के दीये ही इस्तेमाल करते हैं। मसलन, मटकी, मिट्टी के दीप, हटरी, बड़े दीये खरीदते हैं। हमारे यहां, गणेश जी के बाद हनुमान जी की पूजा होती है। जो शायद अपने आप में अनोखी है। दीवाली वाले दिन हम लक्ष्मी एवं गणेश की कहानी सुनते हैं। सभी परिवार के सदस्य पूजा वाले स्थान पर बैठ जाते हैं एवं तन्मयता से कहानी खत्म होने तक बैठे रहते है। पूजा के बाद बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है एवं फिर मिठाइयां खाई जाती हैं। लेकिन दीवाली यहीं पूरी नहीं होती है। तड़के सुबह खील, बताशे, फूल लेकर महिलाएं घर के बाहर जाती हैं एवं थोड़ी दूर एक जलते दीपक के साथ रख देती हैं। इसे तड़के सुबह तारों की छांव में रखना होता है।

सूप बजाने की रवायत

दिल्ली में पूर्वाचल के लाखों लोग रहते हैं। अपने घरों से दूर इन्होंने दिल्ली को दिल से अपना लिया है। हां, घर की दीवाली याद आती है लेकिन ये लोग अब यहीं अपनी परंपराओं संग त्योहार मनाना पसंद करते हैं। छठ पूजा आयोजन समिति के अध्यक्ष गोरखपुर निवासी शिवराम पांडेय कहते हैं कि दीवाली पर हम मिट्टी के दीप, मोमबत्ती प्रयोग करते हैं। घर की सफाई के अलावा छोटी दीवाली के दिन हम यम के लिए दीप जलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी और दरिद्र भाई-बहन है। जो अमावस्या के दिन ही मिलते हैं एवं सुबह ही बिछड़ भी जाते हैं। दीवाली की शाम लक्ष्मी, गणेश की पूजा होती है एवं फिर नजदीकी मंदिर में हम दीपक जलाते हैं। इसके बाद पूड़ी, सब्जी समेत अन्य मिष्ठान खाते हैं। तड़के सुबह सूप को किसी लोहे या लकड़ी से बजाते हुए महिलाएं घर के बाहर जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसे बजाने से घर से दरिद्रता भाग जाती है। यह तड़केसुबह ही किया जाता है।

हर गुजराती के घर बनता है मोहनथाल

दीवाली पर पूड़ी, सब्जी, खीर मिठाई रंगोली बनाते हैं। दीवाली की तैयारियां गुजराती समाज में लगभग 15 दिन पहले शुरू हो जाती है। सभी लोग नए-नए कपड़े खरीदते हैं और घर की साफ-सफाई करते हैं। उसके बाद घर में अपने हाथों से सारी मिठाइयां बनाई जाती हैं। प्रीत विहार निवासी गुजराती वंदना पुरानी बताती हैं चकरी, बेसन सेव, मठिया व अलग-अलग प्रकार के नमकीन बनाते हैं। और सबसे खास मोहनथाल (बेसन की मिठाई), बनाने का रिवाज भी है। यह मिठाई हर गुजराती के घर में बनती है। सभी व्यापारी अपने सारे पुराने हिसाबों को निपटाकर नए की शुरुआत करते हैं। उसके बाद आती है धनतेरस। धनतेरस के दिन हरेक घर में लक्ष्मीपूजन होता है और माताजी को छप्पन भोग लगते हैं। सारे घर के लोग एकत्र होकर मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं। मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा उन पर बनी रहे, ऐसी कामना करते हैं। दीवाली के साथ ही गुजरातियों के नए साल की शुरुआत हो जाती है। इसलिए इस दिन को बड़े खास तरीके से उल्लास के साथ मनाते हैं।

बाजार हैं तैयार...

चांदनी चौक की चांदनी आज कल और निखर गई है। किसी भी समय जाओ पैदल चलने की जगह के लिए मशक्कत करनी पड़ जाएगी। लेकिन किसी को भी भीड़ की बेफिक्री नहीं है। हर कोई खुशी-खुशी दीपों के उत्सव के लिए शापिंग करने में मशगूल है। पास ही स्थित दरीबा कलां चांदी की गहनों के लिए जानी जाती है। एक अन्य बाजार पहाड़गंज का जिक्र जरूरी है। पुरानी दिल्ली में रेलवे स्टेशन से नजदीक पर स्थित पहाड़गंज मार्केट खरीदारी के लिए अच्छी ठौर है। यहां पर आपको सस्ते दामों पर सिल्वर के गहने भी मिलेंगे। दीवाली के दौरान यहां के बाजार में आपको खूबसूरत लैंप, डिजाइनर दीये, खुशबूदार कैंडल्स बेहद सस्ते दामों में मिल रहे हैं। यदि आप डिजाइनर दीये खरीदना चाहते हैं तो तिब्बती मार्केट भी बेहतरीन है। दीवाली के मौके पर डिजाइनर दीयों, लैंप्स, डेकोरेटिव आइटम्स और खूबसूरत लाइट्स खरीदी जा सकती हैं। यहां आप हैंडिक्राफ्ट का खूबसूरत सामान भी खरीद सकते हैं। वहीं दिल्ली हाट में अलग-अलग राज्यों के हथकरघा उत्पाद मिलते हैं। इसके अलावा दिल्ली में दीवाली र्शांपग के लिए दीवाली मेले भी लगे हुए हैं।

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