24 घंटे रासायनिक हमले से सैनिकों की हिफाजत करेगा एनबीसी सूट-बूट

रबर फैब्रिक व कॉटन ड्रिल से ऐसे जूते भी बनाए गए हैं जो सैनिकों के पैरों को गलन से बचाएंगे। एनबीसी सूट अब 24 घंटे तक रासायनिक हमले से सैनिकों की हिफाजत करेगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 24 Mar 2019 08:30 PM (IST) Updated:Sun, 24 Mar 2019 08:30 PM (IST)
24 घंटे रासायनिक हमले से सैनिकों की हिफाजत करेगा एनबीसी सूट-बूट
24 घंटे रासायनिक हमले से सैनिकों की हिफाजत करेगा एनबीसी सूट-बूट

जागरण संवाददाता, कानपुर। न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल, केमिकल (एनबीसी) सूट अब छह घंटे नहीं बल्कि 24 घंटे तक रासायनिक हमले से सैनिकों की हिफाजत करेगा। रासायनिक हथियारों से निकलने वाली तबून, सरीन, सल्फर मस्टर्ड व क्लोराइड जैसी विषाक्त गैसों को बेअसर करने के लिए डीआरडीओ ने एनबीसी वॉरकेयर प्रोटेक्शन सूट, बूट और ग्लब्स तैयार किए हैं। प्राथमिक ट्रायल सफल होने के बाद अब इसका परीक्षण अंतिम चरणों में चल रहा है।

रविवार को राजकीय चर्म संस्थान के पूर्व छात्र सम्मेलन में शिरकत करने आए डीआरडीओ में टेक्निकल ऑफीसर मनोज सिंह ने बताया कि एनबीसी सूट का नया वर्जन मार्क-6 न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल व केमिकल वारफेयर प्रोटेक्शन सूट 'एक्टिवेट कार्बन' 'फाइबर', 'पोलिस्टर' व 'फैब्रिक' से बना है। यह ज्यादा प्रभावी है और परीक्षण में बेहतर परिणाम मिले हैं।

उन्होंने बताया कि कंप्रेशर मोल्डिंग तकनीक से तैयार मार्क-2 बूट ब्रोमोबुटाइल रबर से बनाए गए हैं। यह पहले से अधिक क्षमतावान है। रसायन व गैसों से बचाव करने के साथ यह बूट हल्की एल्फा व बीटा किरणों को भी रोकता है। ब्रोमोबुटाइल रबर के अलावा यह बूट कार्बन कंटेंट, सिल्वर पार्टिकल व नैनो पार्टिकल से बनाया गया है। जिसका वजन महज नौ सौ ग्राम है।

यह बूट डीएमएस शूज के ऊपर पहना जाता है। यह फ्लेक्सिबल भी है। बूट के अलावा मार्क-2 एनबीसी दस्ताने भी बनाए गए हैं जिसमें कॉटन फैब्रिक व ब्रोमोबुटाइल रबर की दो लेयर का इस्तेमाल किया गया है।

-40 डिग्री में गलन से महफूज सैनिकों के हाथ-पैर

उन्होंने बताया कि बेहद ठंडे सरहदी इलाकों में व्हाइट नापा लेदर से बने दस्ताने सैनिकों के हाथों को -40 डिग्री न्यूनतम तापमान पर भी सुरक्षित रख रहे हैं। टेक्सटाइल, पीयू कोटेड फैब्रिक, नायलॉन व पायल फैब्रिक से यह दस्ताने बनाए गए हैं। वहीं रबर फैब्रिक व कॉटन ड्रिल से ऐसे जूते भी बनाए गए हैं जो सैनिकों के पैरों को गलन से बचाएंगे। इन जूतों को शू एंड शू कहा जाता है जिसकी प्रतिवर्ष 125 लाख जोडि़यों की जरूरत होती है और इसकी जरूरत को पूरा भी किया जा रहा है।

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