छत्तीसगढ़: इनके तो रोम-रोम में सुशोभित प्रभु श्रीराम का नाम, जानें वजह

छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के लोगों की। करीब 130 साल पहले छुआछूत व आडंबर से त्रस्त होकर अविभाजित बिलासपुर जिले के छोटे से गांव से इस पंथ की शुरुआत हुई।

By Pooja SinghEdited By: Publish:Tue, 19 Nov 2019 10:53 AM (IST) Updated:Tue, 19 Nov 2019 11:57 AM (IST)
छत्तीसगढ़: इनके तो रोम-रोम में सुशोभित प्रभु श्रीराम का नाम, जानें वजह
छत्तीसगढ़: इनके तो रोम-रोम में सुशोभित प्रभु श्रीराम का नाम, जानें वजह

रायपुर [कोमल शुक्ला]। न मंदिर, न मूर्ति, न ग्रंथ, बस राम नाम ही इनके लिए पर्याप्त है। प्रभु के नाम को इन्होंने रोम-रोम में सुशोभित किया है। हालांकि छत्तीसगढ़ में रामनामियों की आबादी अब नाममात्र को रह गई है। पूरे तन में राम नाम का गोदना, एक-दूसरे से मिले तो अभिवादन में राम-राम। जो वस्त्र धारण करते, उन पर भी लिखते राम का नाम। इन्हें मंदिर जाने और मूर्ति पूजने की आवश्यक्ता ही नहीं। यह पहचान है छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के लोगों की। करीब 130 साल पहले छुआछूत व आडंबर से त्रस्त होकर अविभाजित बिलासपुर जिले के छोटे से गांव से इस पंथ की शुरुआत हुई। बीती जनगणनाओं में टटोलें तो जो आबादी 12 हजार तक पहुंच गई थी, वह आज 150 के आंकड़े तक आ पहुंची है।

जानकार बताते हैं कि वर्ष 1890 के आसपास मालखरौदा क्षेत्र के चारपारा निवासी परशुराम भारद्वाज नामक युवक ने रामनामी पंथ की शुरुआत की थी। इस समाज के लोग प्रभु श्रीराम के प्रति अगाध आस्था रखते हैं, लेकिन न तो वे मंदिर जाते हैं, न ही मूर्ति पूजा करते हैं। वे तो प्रभु के निराकार रूप की भक्ति को ही जीवन का आधार मानते हैं। इसीलिए तन पर राम नाम का गोदना धारण करते हैं। बड़े-बुजुर्गो की मानें तो, ये संदेश देते हैं कि राम तो रोम-रोम और कण-कण में बसते हैं। जब आपस में मिलते हैं तो अभिवादन भी राम-राम कहकर ही कहते हैं।

मूलत: जांजगीर-चांपा, रायगढ़, बलौदाबाजार, भाठापारा, महासमुंद और रायपुर जिले के लगभग 100 गांवों में आज भी इनका बसेरा है, लेकिन गिनती के ही परिवार बचे हैं। दरअसल, राम नाम का गोदना तन पर, यहां तक कि चेहरे पर भी धारण करने की इनकी इस परंपरा का धीरे-धीरे लोप होता गया। सरकार ने भी इस परंपरा के संरक्षण पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। इस पंथ के प्रमुख प्रतीकों में जैतखांभ या जय स्तंभ, मोर पंख से बना मुकुट, शरीर पर राम-राम का गोदना, राम नाम लिखा कपड़ा और पैरों में घुंघरू धारण करना प्रमुख है। समाज के अध्यक्ष रामप्यारे का कहना है कि मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव और हमारे समाज के लोगों को निम्न समङो जाने के कारण पूजा आदि से वंचित रखने के फलस्वरूप रामनामी समाज की स्थापना की गई थी। समाज के लोग मांस-मदिरा का सेवन नहीं करते। उनका कहना है कि नई पीढ़ी के लोग गोदना गुदवाने से परहेज कर रहे हैं। कुछ आधुनिकता का भी प्रभाव है, जिससे रामनामी को मानने वालों की संख्या कम होने लगी है। फिर भी जितना संभव है, परंपराओं के संरक्षण का प्रयास समाज के लोगों द्वारा अपने स्तर पर जारी है।

जनवरी में लगेगा बड़े भजन मेला

रामनामी समाज का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन तीन दिवसीय बड़े भजन मेला होता है। यह आयोजन एक साल महानदी के उस पार और एक साल इस पार होता है। आगामी छह से आठ जनवरी तक इस मेले का आयोजन मालखरौदा के पिकरीपार में होगा। मेले के दौरान ही रामनाम का गोदना भी गुदवाते हैं। जय स्तंभ पर ध्वजा चढ़ाएंगे। वहीं, भजन के साथ विवाह भी होंगे। यह आयोजन खर्च रहित और आडंबर से दूर है। मेले के भंडारे में श्रद्धालु प्रसाद प्राप्त करते हैं। खास बात यह कि बड़े पैमाने पर भंडारा होने पर भी इसमें मक्खी कहीं नजर नहीं आती। यह मेले की पवित्रता और स्वच्छता का भी प्रतीक है।

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