अदालत से बाहर भी तलाक ले सकेंगी मुस्लिम महिलाएं, केरल हाई कोर्ट ने अपना 1972 का फैसला पलटा

केरल हाई कोर्ट ने अपने करीब 50 साल पुराने फैसले को पलटते हुए अदालती प्रक्रिया से इतर तलाक देने के मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को बहाल कर दिया है। केरल हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 06:06 PM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 06:06 PM (IST)
अदालत से बाहर भी तलाक ले सकेंगी मुस्लिम महिलाएं, केरल हाई कोर्ट ने अपना 1972 का फैसला पलटा
केरल हाई कोर्ट ने अदालती प्रक्रिया से इतर तलाक देने के मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को बहाल कर दिया है।

कोच्चि, पीटीआइ। केरल हाई कोर्ट ने अपने करीब 50 साल पुराने फैसले को पलटते हुए अदालती प्रक्रिया से इतर तलाक देने के मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को बहाल कर दिया है। केरल हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। परिवार अदालतों में दायर विभिन्न याचिकाओं में राहत की मांग की गई थी। पीठ ने अदालत की एकल पीठ के 1972 के फैसले को पलट दिया है, जिसमें न्यायिक प्रक्रिया के इतर अन्य तरीकों से तलाक लेने के मुस्लिम महिलाओं के अधिकार पर पाबंदी लगा दी गई थी।

पीठ ने रेखांकित किया कि पवित्र कुरान में पुरुषों और महिलाओं के तलाक देने के समान अधिकार को मान्यता दी गई है। पीठ ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं की दुविधा, विशेष रूप से केरल राज्य में, समझी जा सकती है जो 'केसी मोईन बनाम नफीसा एवं अन्य' के मुकदमे में फैसले के बाद उन्हें हुई।

इस फैसले में मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 समाप्त होने के मद्देनजर न्यायिक प्रक्रिया से इतर तलाक लेने के मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को नजरअंदाज कर दिया गया था। एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि किसी भी परिस्थिति में कानूनी प्रक्रिया से इतर एक मुस्लिम निकाह समाप्त नहीं हो सकता।

वहीं, जस्टिस ए. मुहम्म्द मुश्ताक और जस्टिस सीएस डियास की खंडपीठ ने अपने फैसले में इस्लामी कानून के तहत निकाह समाप्त करने के विभिन्न तरीकों और शरीयत कानून के तहत महिलाओं को मिले निकाह समाप्त करने के अधिकार पर विस्तृत टिप्पणी की। इनमें तलाक-ए-तफविज, खुला, मुबारत और फस्ख शामिल हैं।

अदालत ने नौ अप्रैल के अपने फैसले में कहा, 'शरीयत कानून और मुस्लिम निकाह समाप्ति कानून के विश्लेषण के बाद हमारा विचार है कि मुस्लिम निकाह समाप्ति कानून मुस्लिम महिलाओं को अदालत के हस्तक्षेप से इतर फस्ख के जरिये तलाक लेने से रोकता है।' अदालत ने कहा, 'शरीयत कानून के प्रविधान दो में जिन सभी न्यायेतर तलाक के तरीकों का जिक्र है, वे सभी अब मुस्लिम महिलाओं के लिए उपलब्ध हैं। इसलिए हम मानते हैं कि केसी मोईन मामले में घोषित कानून, सही नहीं है।' 

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