इसलिए ISRO का ‘बाहुबली’ रॉकेट कहलाता है GSLV-MK3, 14 पेलोड लेकर रवाना

Mission Chandrayaan 2 भारत ने सोमवार को अंतरिक्ष में ऐतिहासिक छलांग लगाया। भारत के इस अभियान पर देश ही नहीं दुनिया भर की नजर है।

By Amit SinghEdited By: Publish:Mon, 22 Jul 2019 10:52 AM (IST) Updated:Mon, 22 Jul 2019 10:59 AM (IST)
इसलिए ISRO का ‘बाहुबली’ रॉकेट कहलाता है GSLV-MK3, 14 पेलोड लेकर रवाना
इसलिए ISRO का ‘बाहुबली’ रॉकेट कहलाता है GSLV-MK3, 14 पेलोड लेकर रवाना

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चंद्रयान-2 को अपने कंधे पर उठाकर चांद की ओर रवाना करने की जिम्मेदारी इसरो ने अपने ‘बाहुबली’ को दी। ‘बाहुबली’ इसरो का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। इसका वास्तविक नाम जिर्योंसक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल-मार्क 3 (जीएसएलवी-एमके 3) है। यह रॉकेट, चार टन वजनी सेटेलाइट ले जाने में सक्षम है। रॉकेट का अपना वजन 640 टन और ऊंचाई 43.43 मीटर है। आइये जानते हैं मिशन से जुड़े अन्य तकनीकी पहलुओं और उनकी भूमिका के बारे में...

ऑर्बिटर: 2,379 किलोग्राम वजन वाला ऑर्बिटर एक साल तक चांद की परिक्रमा करेगा। इसमें आठ पेलोड लगे हैं, जो अलग-अलग प्रयोगों को अंजाम देंगे। यह ऑर्बिटर बेंगलुरु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आइडीएसएन) से संपर्क साधने में सक्षम होगा। इसके अलावा यह लैंडर के संपर्क में भी रहेगा।

लैंडर विक्रम: 1,471 किलोग्राम वजनी लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के जनक कहे जाने वाले विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इस पर तीन पेलोड लगे हैं। यह दो मीटर प्रति सेकंड की गति से चांद की सतह पर उतरेगा। इसे चांद की एक दिन की अवधि तक काम करने के लिए तैयार किया गया है। धरती के हिसाब से यह अवधि 14 दिन की बनेगी। यह लैंडर बेंगलुरु में आइडीएसएन के साथ-साथ ऑर्बिटर और रोवर से संपर्क स्थापित कर सकेगा।

रोवर प्रज्ञान: रोवर प्रज्ञान का नाम संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ज्ञान। 27 किलोग्राम वजन वाले इस रोवर पर दो पेलोड लगे हैं। यह छह पहियों वाला एक रोबोटिक वाहन है। सौर ऊर्जा की मदद से यह एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से चल सकेगा। इसे भी चांद के एक दिन यानी धरती के 14 दिन के बराबर काम करने के लिए बनाया गया है। इस पूरी अवधि में यह चांद की सतह पर कुल 500 मीटर की दूरी तय करेगा।

अभियान के पेलोड

दूसरे चंद्र अभियान में कुल 14 पेलोड को शामिल किया गया है। इनमें से आठ पेलोड ऑर्बिटर पर, तीन पेलोड लैंडर पर और दो पेलोड रोवर पर हैं। हर पेलोड के हिस्से में एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग को अंजाम देने की जिम्मेदारी रहेगी। इनके अलावा एक लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे (एलआरए) पेलोड भी होगा। इससे चांद की आंतरिक बनावट को लेकर जानकारी मिलेगी।

ऑर्बिटर के पेलोड

1. टेरैन मैपिंग कैमरा : यह कैमरा पूरे चांद का डिजिटल एलिवेशन मॉडल तैयार करेगा।

2. लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर : चांद की सतह के घटकों का परीक्षण करेगा।

3. सोलर एक्स-रे मॉनीटर : सोलर एक्सरे स्पेक्ट्रम का इनपुट मुहैया कराएगा।

4. इमेजिंग आइआर स्पेक्ट्रोमीटर : खनिजों के आंकड़े जुटाएगा और बर्फ की मौजूदगी के प्रमाण तलाशेगा।

5. सिंथेटिक अपर्चर रडार एलएंडएस बैंड्स : ध्रुवीय क्षेत्र को खंगालेगा और सतह के नीचे बर्फ की उपस्थिति के प्रमाण जुटाएगा।

6. एटमॉस्फेरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर-2 : चांद के वातावरण का अध्ययन करेगा।

7. ऑर्बिटर हाई रेजोल्यूशन कैमरा : चांद की सतह की तस्वीरें लेगा।

8. डुअल फ्रिक्वेंसी रेडियो साइंस एक्सपेरिमेंट : चांद के आयनोस्फेयर का अध्ययन करेगा।

लैंडोर के पेलोड

1. इंस्ट्रूमेंट फॉर लुनार सिस्मिक एक्टिविटी : लैंडिंग साइट पर भूकंपीय गतिविधियों का पता लगाएगा।

2. सर्फेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट : चांद के थर्मल कंडक्टिविटी का अध्ययन करेगा।

3. लैंगम्यूर प्रोब : चांद की सतह का अध्ययन करेगा।

रोवर के पेलोड

1. अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर : चांद की सतह पर घटकों का विश्लेषण करेगा।

2. लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप : लैंडिंग साइट के आसपास विभिन्न घटकों की उपस्थिति जांचेगा।

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