यत्र-तत्र-सर्वत्र: श्रीराम अद्भुत सामरिक पराक्रम, व्यवहार कुशलता और विदेश नीति के स्वामी थे

Ayodhya Ram Templeश्री राम ने किसी देश पर अधिकार नहीं किया लेकिन विश्व के अनेकों देशों में उनकी प्रशंसा के विवरण मिलते हैं। इससे पता चलता है कि उनकी लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली हुई

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 08:10 AM (IST) Updated:Mon, 03 Aug 2020 02:57 PM (IST)
यत्र-तत्र-सर्वत्र: श्रीराम अद्भुत सामरिक पराक्रम, व्यवहार कुशलता और विदेश नीति के स्वामी थे
यत्र-तत्र-सर्वत्र: श्रीराम अद्भुत सामरिक पराक्रम, व्यवहार कुशलता और विदेश नीति के स्वामी थे

नई दिल्‍ली, जेएनएन। Ayodhya Ram Temple News भारत के इतिहास में श्रीराम जैसा विजेता कोई नहीं हुआ। उन्होंने रावण और उसके सहयोगी अनेक राक्षसों का वध करके न केवल भारत में शांति की स्थापना की बल्कि सुदूर पूर्व और ऑस्ट्रेलिया के कई द्वीपों तक में सुख और आनंद की लहर व्याप्त की। श्रीराम अद्भुत सामरिक पराक्रम, व्यवहार कुशलता और विदेश नीति के स्वामी थे। उन्होंने किसी देश पर अधिकार नहीं किया लेकिन विश्व के अनेकों देशों में उनकी प्रशंसा के विवरण मिलते हैं। इससे पता चलता है कि उनकी लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी।

मेडागास्कर द्वीप से लेकर ऑस्ट्रेलियाई द्वीप समूहों पर रावण का राज्य था। रावण विजय के बाद इस भाूभाग पर राम की र्कीित फैल गयी। राम के नाम के साथ रामकथा भी इस भाग में फैली और बरसों तक यहां के निवासियों के जीवन का प्रेरक अंग बनी रही।

श्रीलंका और बर्मा (अब म्यांमार) में रामायण का लोक गीतों व रामलीला की तरह के नाटकों का मंचन होता है। बर्मा में बहुत से नाम राम के नाम पर हैं। रामावती नगर तो राम नाम के ऊपर ही स्थापित हुआ था। अमरपुर के एक विहार में राम लक्ष्मण सीता और हनुमान के चित्र आज तक अंकित हैं।

हिंद चीन के अनाम में कई शिलालेख मिले हैं जिनमें राम का यशोगान है। यहां के निवासियों में ऐसा विश्वास प्रचलित है कि वे वानर कुल से उत्पन्न हैं और श्रीराम नाम के राजा यहां के सर्वप्रथम शासक थे। रामायण पर आधारित कई नाटक यहां के साहित्य में भी मिलते हैं।

मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। वहां मुस्लिम भी अपने नाम के साथ अक्सर राम, लक्ष्मण और सीता नाम जोड़ते हैं। यहां रामायण को ‘हिकायत सेरीराम’ कहते हैं। थाईलैंड के पुराने रजवाड़ों में भरत की भांति राम की पादुकाएं लेकर राज्य करने की परंपरा पाई जाती है। वे सभी अपने को रामवंशी मानते थे। यहां ‘अजुधिया’, ‘लवपुरी’ और ‘जनकपुर’ जैसे नाम वाले शहर हैं। यहां पर राम कथा को ‘रामकृति’ कहते हैं और मंदिरों में जगह-जगह रामकथा के प्रसंग अंकित हैं।

कंबोडिया में भी हिंदू सभ्यता के अन्य अंगों के साथ-साथ रामायण का प्रचलन आज तक पाया जाता है। छठी शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार वहां कई स्थानों पर रामायण और महाभारत का पाठ होता था।

जावा में रामचंद्र राष्ट्रीय पुरूषोत्तम के रूप में सम्मानित हैं। वहां की सबसे बड़ी नदी का नाम सरयू है। ‘रामायण’ के कई प्रसंगों पर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के

श्लोक जगह-जगह अंकित मिलते हैं।

सुमात्रा द्वीप का वाल्मीकि रामायण में ‘स्वर्णभूमि’ नाम दिया गया है। रामायण यहां के जनजीवन में वैसे ही अनुप्राणित है जैसे भारतवासियों के।

मेक्सिको और मध्य अमेरिका की मय और इंका सभ्यता पर भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है उसमें रामायण कालीन संस्कारों का आधिक्य है। पेरू में राजा अपने को सूर्यवंशी ही नहीं ‘कौशल्यासुत’ राम का वंशज भी मानते हैं। ‘रामसीतव’ नाम से आज भी यहां ‘राम सीता उत्सव’ मनाया जाता है।

पवित्र गुरु ग्रंथ साहब में लगभग 1700 से अधिक बार ‘राम’ का उल्लेख होता है। भवभूति, कालिदास, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राम के चरित्र से आदर्श भारतीय संस्कृति, समाज जीवन और राष्ट्रीय चेतना की स्थापना करना चाहते हैं।

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