Agriculture Bill : मंडी की खामियों ने ही बो दिए थे नए केंद्रीय कानून के बीज, बदलेगी किसानों की हालत

केंद्रीय कानून आने से कृषि क्षेत्र की पूरी सप्लाई चेन में उत्पादन से निर्यात तक के रास्ते किसानों के लिए आसान हो जाएंगे।

By Tilak RajEdited By: Publish:Fri, 18 Sep 2020 06:06 AM (IST) Updated:Fri, 18 Sep 2020 06:06 AM (IST)
Agriculture Bill : मंडी की खामियों ने ही बो दिए थे नए केंद्रीय कानून के बीज, बदलेगी किसानों की हालत
Agriculture Bill : मंडी की खामियों ने ही बो दिए थे नए केंद्रीय कानून के बीज, बदलेगी किसानों की हालत

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। नए केंद्रीय कृषि विधेयकों के खिलाफ कुछ राजनीतिक दल, कुछ किसान संगठन और नेता भले ही खड़े हों लेकिन सच्चाई यह है कि वर्तमान मंडी की खामियों ने ही इसके लिए आधार तैयार किया था। किसानों के भले के लिए जिन सिद्धांतों पर मंडियों की स्थापना की गई, वही बदलते समय के साथ विकृत होने लगे। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक तथा कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य विधेयक और आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक अगर सही तरीके से जमीन पर उतरा, तो मंडी किसानों की शर्त पर चलेगी आढ़तियों की शर्त पर नहीं।

मंडी के तीन प्रमुख आधार थे। कृषि उपज की खुले में बोली लगती थी, जिससे अधिकतम बोली ही कीमत का आधार बनता था। लेकिन हालात इतने बिगड़े कि जिस किसान और आढ़ती के बीच जबान, विश्वास और साख का रिश्ता होता था, उसे मंडियों में गिने-चुने आढ़तियों के कार्टेल ने सरेबाजार नीलाम कर दिया। दूसरा आधार, बोली में लगी कीमत के भुगतान की गारंटी होता था। उसे भी ज्यादातर बार उपज की क्वालिटी, बाजार में मांग नहीं, आज नहीं बिक पाएगा और ऐसे ही न जाने कितने बहाने के चलते औने-पौने मूल्य में बेचने की किसान की मजबूरी हो जाती है। भुगतान देने का कोई तयशुदा समय नहीं होता है। जल्दी हो तो 'नौ नगद न तेरह उधार' की शर्त पर लेकर लौटना पड़ता है।

तीसरा आधार, मंडियों में उपज के वजन की गारंटी थी। लेकिन खामियां इस कदर बढ़ीं कि इसमें भी धर्मकांटा चाहे जो वजन बताए, लेकिन आढ़ती की नजर में उपज में नमी का होना, कचरा व कंकड़ होना, उपज के दोयम दरजे की तोहमत के साथ कुछ फीसद की कटौती कर लेना आम हो गया। केंद्र के साथ राज्य सरकारें चाहकर भी इसका विकल्प नहीं तलाश पा रही थीं। लेकिन संसद में विचाराधीन कृषि क्षेत्र के दो प्रमुख सुधार वाले विधेयकों के पारित होने के साथ ही कृषि क्षेत्र में निजी निवेश के रास्ते खुल जाएंगे। देश के 86 फीसद लघु व सीमांत किसानों की हालत में सुधार के लिए यह शुभ संकेत भी है।

दरअसल, इससे मंडियों तक पहुंच न बना पाने वाले इन छोटे किसानों को भी उनकी उपज का अच्छा मूल्य प्राप्त हो सकेगा, क्योंकि निजी बाजार उनके खलिहानों तक पहुंच सकते हैं। कृषि क्षेत्र में होने वाले इन कानूनी सुधारों से निजी निवेशकों का आकर्षित होना तय है। कांट्रैक्ट फार्मिंग की छूट से उत्पादन में निजी निवेशक आ सकते हैं। छोटे किसानों के समूहों के साथ अनुबंध कर निजी कंपनियां अपनी जरूरत के मुताबिक, उत्पादन कराने के साथ पूर्व निर्धारित मूल्य पर खरीद कर सकती है।

निजी कंपनियों की ओर से उपज की खरीद की गारंटी से छोटे किसानों को सबसे ज्यादा लाभ होगा। कृषि क्षेत्र की पूरी सप्लाई चेन में उत्पादन से निर्यात तक के रास्ते उनके लिए आसान हो जाएंगे। इसके लिए कृषि कारोबार को मुक्त कर दिया गया है। मंडी के प्रावधानों से मुक्त होने से निर्यातक, प्रोसेसर और अन्य बड़े उपभोक्ता कंपनियों को राहत मिलेगी। कृषि उत्पादों की आयात निर्यात नीति में भी पर्याप्त सुधार की जरूरत होगी। उसकी भी तैयारियां की जा रही है।

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